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भगवई
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धवलाओ चामराओ गहाय सलीलं वीयमाणीओ-वीयमाणीओ चिट्ठति।।
श.९ : उ. ३३ : सू. १९६-२०० मथित फेनपुञ्ज जैसे चामरों को लेकर लीला के साथ वीजन करती हुई, वीजन करती हुई खड़ी हो गई।
१९७. तए णं तस्स जमालिस्स खत्तिय- ततः तस्य जमालेः क्षत्रियकुमारस्य १९७. क्षत्रियकुमार जमालि के उत्तरकुमारस्स उत्तरपुत्थिमे णं एगा उत्तरपौरस्त्ये एका वरतरुणी शृङ्गाराकार- उत्तरपौरस्त्ये एका वरतरुणी श्रङाराकार- पश्चि
पश्चिम में एक प्रवर तरुणी मूर्तिमान वरतरुणी सिंगारागारचारुवेसा संगय. चारुवेषा सङ्गत-गत-हसित-भणित-चेष्टि- श्रृंगार और सुन्दर वेश वाली, चलने गय-हसिय भणिय-चेट्ठिय-विलास- त विलास-सललित-संलाप निपुण- हंसने, बोलने और चेष्टा करने में निपुण, सललिय - संलाव - निउणजुत्तोवयार- युक्तोपचारकुशला सुन्दरस्तन जघन विलास और लालित्यपूर्ण संलाप में कुसला सुंदरथण-जघण-बयण-कर- वदन-कर - चरण - नयन - लावण्य-रूप- निपुण, समुचित उपचार में कुशल, सुन्दर चरण-नयण-लावण्ण - रूव - जोव्वण- यौवन-विलासकलिता श्वेतं रजतमयं स्तन, कटि, मुख, हाथ, पैर, नयन, विलास कलिया सेतं रययामयं विमल- विमल-सलिलपूर्ण मत्तगजमहामुखाकृति- लावण्य, रूप, यौवन और विलास से सलिलपुण्णं मत्तगयमहामुहाकिति- समानं भृङ्गारं गृहीत्वा तिष्ठति।
कलित, श्वेत, रजतमय विमल सलिल से समाणं भिंगारंगहाय चिट्ठइ।
परिपूर्ण, मत्त हार्थी के विशाल मुख की आकृति के समान झारी लेकर खड़ी हो गई।
१९८. तए णं तस्स जमालिस्स ततः तस्य जमालेः क्षत्रियकुमारस्य १९८. क्षत्रियकुमार जमालि के दक्षिण
खत्तियकुमारस्स दाहिणपुरस्थिमे णं दक्षिणपौरस्त्ये एका वरतरुणी शृंङ्गाराकार- पश्चिम में एक प्रवर तरुणी मूर्तिमान एगा वरतरुणी सिंगारागार-चारुवेसा चारवेषा सङ्गत-गत-हसित-भणित- शृंगार और सुन्दर वेश वाली, चलने, संगय - गय - हसिय - भणिय-चेट्ठिय- चेष्टित - विलास - सललित - संलाप- हंसने, बोलने और चेष्टा करने में निपुण, विलास - सललिय - संलाव - निउण- निपुणयुक्तोपचारकुशला सुन्दरस्तन- बिलास और लालित्यपूर्ण संलाप में जुत्तोवयार-कुसला सुंदरथण-जघण. जघन - वदन - कर - चरण-नयन-लावण्य- निपुण, समुचित उपचार में कुशल, सुन्दर वयण - कर - चरण-नयण - लावण्ण- रूप-यौवन-विलासकलिता चित्रकनकदण्डं स्तन, कटि, मुख, हाथ, पैर, नयन. रूव-जोव्वण-विलास कलिया चित्तः । तालवृन्तं गृहीत्वा तिष्ठति।
लावण्य, रूप, यौवन और विलास से कणगदंडं तालवेंट गहाय चिट्ठइ।।
कलित, विचित्र स्वर्णदण्ड वाले तालवृंत (वीजन ) लेकर खड़ी हो गई।
१९९. तए णं तस्स जमालिस्स खत्तिय- कुमारस्स पिया कोडुबिय-पुरिसे सहावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी- खिप्पामेव भो देवाणु-प्पिया! सरिसयं सरित्तयं सरिव्वयं सरिसलावण्ण-रूवजोव्वण-गुणोववेयं, एगाभरणवसणगहिय-निज्जोयं कोडुबियवरतरुणसहस्सं सद्दावेह॥
ततः तस्य जमालेः क्षत्रियकुमारस्य पिता १९९. क्षत्रियकुमार जमालि के पिता ने कौटुम्बिकपुरुषान् शब्दयति, शब्दयित्वा कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया, बुलाकर एवमवादीत्-क्षिप्रमेव भो देवानुप्रियाः! इस प्रकार कहा-देवानुप्रिय! शीघ्र ही सदृशकं सदृक्त्वग् सदृग्वयः सदृश- सदृश, समान त्वचा वाले. समान वय लावण्य-रूप-यौवन-गुणोपपेतम्, एका- वाले, सदृश लावण्य रूप और यौवन गुणों भरण-वसन-गृहीतनिर्योगं कौटुम्बिक- से उपेत, एक जैसे आभरण, वेश और वरतरुणसहस्रं शब्दयत।
कमर-बंध धारण किए हुए एक हजार प्रवर तरुण कौटुम्बिक पुरुषों को
बुलाओ।
२००. तए णं ते कोडुंबियपुरिसा जाव ततः ते कौटुम्बिकपुरुषाः यावत् प्रतिश्रुत्य २००. कौटुम्बिक पुरुषों ने यावत् विनयपडिसुणेत्ता खिप्पामेव सरिसयं सरित्तयं क्षिप्रमेव सदृशकं सदृक्त्वग् सदृग्वयः पूर्वक वचन को स्वीकार कर शीघ्र ही सरिव्वयं सरिसलावण्ण-रूव-जोव्वण- सदृशलावण्य - रूप - यौवन - गुणोपपेतम् सदृश, समान त्वचा वाले, समान वय गुणोववेयं एगाभरण-बसणगहिय- एकाभरणवसन-गृहीतनिर्योगं कौटुम्बिक- वाले, समान लावण्य, रूप और यौवन निज्जोयं कोडुबियवर-तरुणसहस्सं वरतरुणसहसं शब्दयन्ति।
गुणों से उपेत, एक जैसे आभरण, वेश
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