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________________ भगवई १९१. तए णं से जमालिस्स खत्तियकुमारस्स पिया कोडुंबियपुरिसे सहाas, सहावेत्ता एवं वयासी - खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया! अणेगखंभसयसण्णिविट्ठ लीलट्ठियसालभंजियागं जहा रायप्पसेणइज्जे विमाणवण्णओ जाव मणिरयणघंटिया जालपरिक्खित्तं पुरिससहस्सवाहिणि सीयं उबट्टवेह, उववेत्ता मम एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह । तए णं ते कोडुंबियपुरिसा जाव पच्चप्पिणंति ॥ १. सूत्र - १९१ सालभंजिया - पुतली । ' १९२. तए णं से जमाली खत्तिय कुमारे केसालंकारेणं, वत्थालंकारेणं, मल्लालंकारेणं, आभरणा लंकारेणंचउव्विहेणं - अलंकारेणं अलंकारिए समाणे पडिपुण्णालंकारे सीहासणाओ अब्भुट्ठेइ, अब्भुट्ठेत्ता सीयं अणुप्प - दाहिणीकरेमाणे सीयं दुरुहइ, दुरुहित्ता सीहासणवरंसि पुरत्थाभिमुहे सण्णिसण्णे । १९३. तए णं तस्स जमालिस्स खत्तियकुमारस्स माता पहाया कयबलि-कम्मा जाव अप्पमहग्घाभरणा-लंकियसरीरा हंसलक्खणं पड साडगं गहाय सीयं अणुप्पदाहिणी- करेमाणी सीयं दुरुहइ, दुरुहित्ता जमालिस्स खत्तियकुमारस्स दाहिणे पासे भद्दासणवरंसि सण्णिसण्णा ॥ १९४. तए णं तस्स जमालिस्स खत्तियकुमारस्स अम्मधाती पहाया कयबलिकम्मा जाव अप्पमहग्घाभरणालंकियसरीरा रयहरणं पडिग्गहं च गाय सीयं अणुप्पदाहिणी- करेमाणी सीयं दुरुहइ, दुरुहित्ता जमालिस्स १. भ. वृ. ९ / १९१ - शालभञ्जिकाः पुत्रिका विशेषा । Jain Education International ३०१ ततः तस्य जमालेः क्षत्रियकुमारस्य पिता कौटुम्बिकपुरुषान् शब्दयति, शब्दयित्वा एवमवादीत् क्षिप्रदेव भो देवानुप्रियाः ! अनेकस्तम्भशतसन्निविष्टां, लीलास्थिकशालभञ्जिकां यथा राजप्रश्नीये विमानवर्णकः यावत् मणिरत्नघण्टिका जालपरिक्षिप्तां पुरुषसहस्रावाहिनीं शिबिकाम् उपस्थापयत, उपस्थाप्य माम् एतामाज्ञप्तिकां प्रत्यर्पयत । ततः कौटुम्बिकपुरुषाः यावत् प्रत्यर्पयन्ति । भाष्य सीयं शिविका । ततः सः जमालिः क्षत्रियकुमारः केशालं - कारेण, वस्त्रालंकारेण, माल्यालंकारेण, आभारणालंकारेण चतुर्विधेनालंकारेण अलंकारितः सन् प्रतिपूर्णालंकारः सिंहानात् अभ्युत्तिष्ठति, अभ्युत्थाय शिबिकाम् अनुप्रदक्षिणीकुर्वन् शिबिकाम् आरोहति आरुह्य सिंहासनवरे पुस्तादभिमुखः संनिषण्णः । ततः सः जमालेः क्षत्रियकुमारस्यः माता स्नाता कृतबलिकर्मणी यावत् अल्पमहार्घ्या - भिरणालंकृतशरीरा हंसलक्षणं पट्टशाटकं गृहीत्वा शिबिकाम् अनुप्रदक्षिणी कुर्वती शिबिकाम् आरोहति, आरुह्य जमालेः क्षत्रियकुमारस्य दक्षिणे पार्श्वे भद्रासनवरे संनिषण्णः । ततः सः तस्य जमालेः क्षत्रियकुमारस्यः अम्बधात्री स्नाता कृतबलिकर्मणी यावत् अल्पमहार्घ्याभरणालंकृतशरीरा रजोहरणं प्रतिग्रहं च गृहीत्वा शिबिकाम् अनुप्रदक्षिणी कुर्वती शिबिकाम् आरोहति, आरुह्य जमालेः क्षत्रियकुमारस्य वामे पार्श्वे For Private & Personal Use Only श. ९ : उ. ३३ : सू. १९१-१९४ १९१. क्षत्रियकुमार जमालि के पिता ने कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया, बुलाकर इस प्रकार कहा- देवानुप्रिय ! शीघ्र ही अनेक सैकड़ों खंभों से युक्त, नृत्य करती हुई पुतलियों से उत्कीर्ण, जैसे रायपसेणीय के विमान वर्णक में वक्तव्य है यावत् मणिरत्न जटित घंटिका जाल से घिरी हुई हजार पुरुषों द्वारा वहन की जाने वाली शिविका उपस्थित करो। उपस्थित कर मेरी इस आज्ञा को मुझे प्रत्यर्पित करो। तब कौटुम्बिक पुरुषों ने वैसा कर यावत् आज्ञा का प्रत्यर्पण किया। १९२. क्षत्रियकुमार जमालि को केशालंकार, वस्त्रालंकार, माल्यालंकार, आभरणालंकार- इस चतुर्विध अलंकार से अलंकृत किया गया। वह प्रतिपूर्ण अलंकृत होकर सिंहासन से उठा । उठकर शिविका की अनुप्रदक्षिणा कर शिविका पर आरूढ़ हो गया। आरूढ़ होकर प्रवर सिंहासन पर पूर्वाभिमुख आसीन हुआ। १९३. क्षत्रियकुमार जमालि की माता ने स्नान किया, बलिकर्म किया, अल्पभार और बहुमूल्य वाले आभरणों से शरीर को अलंकृत किया। वह हंसलक्षण वाला पटशाटक ग्रहण कर शिविका की अनुप्रदक्षिणा करती हुई शिविका पर आरूढ़ हो गई। आरूढ़ होकर वह क्षत्रियकुमार जमालि के दक्षिण पार्श्व में प्रवर भद्रासन पर आसीन हुई। १९४. क्षत्रियकुमार जमालि की धायमाता ने स्नान किया, बलिकर्म किया यावत् अल्पभार और बहुमूल्य वाले आभरणों से शरीर को अलंकृत किया। वह रजोहरण और पात्र को लेकर शिविका की अनुप्रदक्षिणा करती हुई शिविका पर www.jainelibrary.org
SR No.003595
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages600
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size15 MB
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