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________________ भगवई पडिसुणेइ, पडिसुणेत्ता सुरभिणा गंधोदणं हत्थपादे पक्खालेइ, पक्खालेत्ता सुद्धा अपडला पोत्तीए मुहं बंधइ, बंधित्ता जमालिस खत्तियकुमारस्स परेण जत्तेणं चउरंगुलवज्जे निक्खमणपाओगे अग्गकेसे कप्पेइ ॥ १८९. त णं सा जमालिस्स खत्तियकुमारस्स माया हंसलक्खणेणं पडसाडणं अग्गकेसे पडिच्छर, पडिच्छित्ता सुरभिणा गंधोदणं पक्खालेइ, पक्खालेत्ता अग्गेहिं वरेहिं गंधेहिं मल्लेहिं अच्चेति, अच्चेत्ता सुद्धे वत्थे बंधइ, बंधित्ता रयणकरंडगंसि पक्खिवति, पक्खि वित्ता हारवारिधारसिंदुवार - छिण्णमुत्ता वलिप्पगासाई सुयवियोगदूसहाई अंसूई विणिम्मुयमणीविणिम्यमाणी एवं क्यासी- एस णं अम्हं जमालिस्स खत्तिय कुमारस्स बहू तिहीसु य पव्वणीसु य उस्सवेसु य जण्णेसु य छणेसु य अपच्छिमे दरिसणे भविस्सतीति कट्टु ऊसीसगमूले ठवेति ॥ १. सूत्र १८८ अग्रकेशों को काटने की परंपरा दक्षिण भारत के पुजारियों में आज भी प्रचलित है। अभिनिष्क्रमण के समय केश कर्तन की दो १. सूत्र - १८९ शब्द-विमर्श प्रतिश्रुत्य सुरभिणा गन्धोदकेन हस्तपादौ प्रक्षालयति, पक्षाल्य शुद्धया अष्टपटलया 'पोत्तीए' मुखं बध्नाति, बद्ध्वा जमालेः क्षत्रियकुमारस्य परेण यत्नेन चतुरङ्गुलवर्ज्यान् निष्क्रमणप्रायोग्यान् अग्रकेशान कल्पते। हंस लक्षण - वृत्तिकार ने इसके दो अर्थ किए हैं१. सफेद २. हंस से चिह्नित । " १. पज्जो. सू. ७५ । २. (क) नाया० १/१/१२५। हार........प्पगासाई - आंसू की श्वेतिमा बतलाने के लिए चार उपमाओं का प्रयोग किया गया है Jain Education International २९९ (ख) भ. ९/१८७ । ३. भ. वृ. ९ / ९८० - हंसलक्खणेणं शुक्लेन हंसचिह्नेन वा । ४. वही, १/१८९ - तिहीसु य नि मदनत्रयोदश्यादि तिथिषु । भाष्य ततः सा जमालेः क्षत्रियकुमारस्य माता हंसलक्षणेन पटशाटकेन अग्रकेशान प्रतीच्छति, प्रतीष्य सुरभिणा गन्धोदकेन प्रक्षालयति, प्रक्षाल्य अग्रैः वरैः गन्धैः माल्यैः अर्चति, अर्चित्वा 'शुद्धे वस्त्रे' बध्नाति, बद्ध्वा रत्नकरण्डके प्रक्षिपति, प्रक्षिप्य हार - वारिधारा- सिन्दुवारछिन्नमुक्तावलि - प्रकाशानि सुतवियोगदुस्सहानि अश्रूणि विनिर्मुञ्चतीविनिर्मुञ्चती एवमवादीत् एतद् अस्माकं जमालेः क्षत्रियकुमारस्य बहुषु तिथिषु च पर्वणीषु च उत्सवेषु च यज्ञेषु च क्षणेषु च अपश्चिमं दर्शनं भविष्यतीति कृत्वा उच्छीर्षकमले स्थापयति । भाष्य परंपराएं मिलती हैं १. पंच मुष्टिक लोच की परंपरा । * २. चतुरंगुल वर्ज अग्रकेश काटने की परंपरा । " श. ९ : उ. ३३ : सू. १८८, १८९ आज्ञा के अनुसार ऐसा ही होगा।' यह कहकर विनयपूर्वक वचन को स्वीकार किया। स्वीकार कर सुरभित गंधोदक से हाथ पैर का प्रक्षालन किया। प्रक्षालन कर आठ पट वाले शुद्ध वस्त्र से मुख को बांधा, बांधकर परम यत्न से क्षत्रियकुमार जमालि के चार अंगुल छोड़कर निष्क्रमण प्रायोग्य अग्रकेशों को काटा। १८९. क्षत्रियकुमार जमालि की माता ने हंसलक्षण पटशाटक में अग्रकेशों को ग्रहण किया। ग्रहण कर सुरभित गंधोदक से प्रक्षालन किया। प्रक्षालन कर प्रधान और प्रवर गंध माल्य से अर्चा की, अर्चित कर शुद्ध वस्त्र में बाधा | बांधकर रत्नकरंडक में रखा। रख कर हार, जलधारा, सिंदुवार (निर्गुण्डी) के फूल और टूटी हुई मोतियों की लड़ी के समान दुःस्सह पुत्र वियोग के कारण बार-बार आंसू बहाती हुई इस प्रकार बोली- बहुत तिथि, पर्वणी (पूर्णिमा आदि) उत्सव, नाग पूजा, यज्ञ, इन्द्रोत्सव आदि के अवसर पर क्षत्रियकुमार जमालि का यह अंतिम दर्शन होगा। यह चिन्तन कर उस रत्नकरंडक को अपने सिरहाने के नीचे रखा । १. हार २. वारिधारा ३. सिंदुवार ४. छिन्नमुक्तावलि । तिथि - मदन त्रयोदशी आदि । * पर्वणि - कार्तिक पूर्णिमा आदि। " उत्सव- प्रिय-संगम आदि। यज्ञ - नागपूजा आदि । ' क्षण - इन्द्रोत्सव आदि । ' For Private & Personal Use Only ५. वही, ९ / ९८९ -- पर्व्वणीषु च कार्तिक्यादिषु । ६. वही, ९ / ९८९ - उस्सवेसु ति य प्रियसंगमादिमहेषु । ७. वही, ९/१८९ - जन्नेसु यत्ति नागादि पूजासु । ८. वही, ९ / १८० - छणेसु यत्ति इन्द्रोत्सवादि लक्षणेषु । www.jainelibrary.org
SR No.003595
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages600
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size15 MB
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