SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 320
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तुष्ट श.९: उ.३३ : सू. १८५-१८८ २९८ भगवई १८५. तए णं ते कोडुबियपुरिसा ततः ते कौटुम्बिकपुरुषाः जमालेः क्षत्रिय- १८५. कौटुम्बिक पुरुष क्षत्रियकुमार जमालि जमालिस्स खत्तियकुमारस्स पिउणा कुमारस्य पित्रा एवमुक्ताः सन्तः हृष्टतुष्टाः के पिता के इस प्रकार कहने पर हष्टएवं वुत्ता समाणा हट्टतुट्ठा करयल• करतलगृहीतं दशनखं शिर-सावर्त्त मस्तके तुष्ट हो गए। दोनों हथेलियों से निष्पन्न परिग्गहियं दसनहं सिरसा-वत्तं मत्थए अजलिं कृत्वा एवं स्वामिन ! तथेति आज्ञया संपुट आकार वाली दस-नखात्मक अंजलिं कट्ट एवं सामी! तहत्ताणाए विनयेन वचनं प्रतिश्रृण्वन्ति, प्रतिश्रुत्य अंजलि को सिर के सम्मुख घुमाकरविणएणं वयणं, पडि-सुणेति, पडिसुणेत्ता क्षिप्रमेव श्रीगृहात् त्रीणि शतसहस्राणि 'स्वामी ! आपकी आज्ञा के अनुसार ऐसा खिप्पामेव सिरिघराओ तिण्णि गृहणन्ति, गृहीत्वा द्वाभ्यां शतसहस्राभ्यां ही होगा, यह कहकर विनयपूर्वक वचन सयसहस्साई गिण्हति, गिणिहत्ता दोहिं कुत्रिकापणात रजोहरणं च प्रतिग्रहं च को स्वीकार करते हैं। स्वीकार कर शीघ्र सय-सहस्सेहि कुत्तियावणाओ रयहरणं आनयन्ति, शतसहस्रेण काश्यपकं ही श्रीगृह से तीन लाख मुद्राएं ग्रहण च पडिग्गहं च आणेति, सय-सहस्सेणं शब्दयन्ति। करते हैं। ग्रहण कर दो लाख मुद्राओं के कासवगं सद्दावेंति॥ द्वारा कुत्रिकापण से रजोहरण और पात्र लाते हैं, एक लाख मुद्रा के द्वारा नापित को बुलाते हैं। १८६. तए णं से कासवए जमालिस्स । ततः सः काश्यपकः जमालेः क्षत्रियकुमारस्य १८६. वह नापित क्षत्रियकुमार जमालि के खत्तियकुमारस्स पिउणा कोडु- पित्रा कौटुम्बिकपुरुषः शब्दायितः सन् पिता के निर्देशानुसार कौटुम्बिक पुरुषों बियपुरिसेहिं सद्दाविए समाणे हट्टतुढे हृष्टतुष्टः स्नातः कृतबलिकर्मा कृत- द्वारा बुलाए जाने पर हृष्ट-तुष्ट हो गया। पहाए कयबलिकम्मे कयकोउय-मंगल- कौतुक-मंगल-प्रायश्चित्तः शुद्धप्रवेश्यानि उसने बलि-कर्म किया. कौतुक, मंगल पायच्छित्ते सुद्धप्पावेसाई मंगल्लाई मंगलानि वस्त्राणि प्रवरं परिहितः और प्रायश्चित्त किया, शुद्धप्रवेश्य (सभा वत्थाई पवर परिहिए अप्पमहग्या- अल्पमहाभिरणालंकृतशरीरः यत्रैव में प्रवेशोचित), मांगलिक वस्त्रों को भरणालंकिय-सरीरे, जेणेव जमालिस्स। जमालेः क्षत्रियकुमारस्य पिता तत्रैव विधिवत् पहना, अल्पभार और बहुमूल्य खत्तिय कुमारस्स पिया तेणेव उपागच्छति, उपागम्य करतलपरिगृहीतं वाले वस्त्रों से शरीर को अलंकृत किया। उवागच्छइ, उवागच्छित्ता करयल- दशनखं शिरसावर्त मस्तके अञ्जलिं कृत्वा जहां क्षत्रियकुमार जमालि के पिता हैं, परिग्गहियं दसनहं सिरसावत्तं मत्थए जमालेः क्षत्रियकुमारस्य पितरं जयेन वहां आया, वहां आकर दोनों हथेलियों से अंजलिं कट्ट जमालिस्स खत्तिय- विजयेन वर्धयति वर्धयित्वा एवमवादीत् - निष्पन्न संपुट आकार वाला दस. कुमारस्स पियरं जएणं विजएणं संदिशन्तु देवानुप्रियाः यत् मया करणीयम्। नखात्मक अंजलि को सिर के सम्मुख वद्धावेइ वद्धावेत्ता एवं वयासी-संदिसंतु घुमाकर क्षत्रियकुमार जमालि के पिता को णं देवाणुप्पिया! जं मए करणिज्ज? 'जय हो-विजय हो' के द्वारा वर्धापित किया। वर्धापित कर इस प्रकार बोला-देवानुप्रिय! मुझे जो करणीय है, उसका संदेश दें। १८७. तए णं से जमालिस्स खत्तिय- ततः तस्य जमालेः क्षत्रियकुमारस्य पिता तं कुमारस्स पिया तं कासवगं एवं काश्यपकम् एवमवादीत-त्वं देवानुप्रिय! वयासी-तुमं देवाणुप्पिया! जमालि-स्स जमालेः क्षत्रियकुमारस्य परेण यत्नेन खत्तियकुमारस्स परेणं जत्तेणं चउ- चतुरङ्गलवान् निष्क्रमणप्रायोग्यान् रंगुलवज्जे निक्खमणपाओग्गे अग्ग- अग्रकेशान् कल्पस्व। केसे कप्पेहि॥ १८७. क्षत्रियकुमार जमालि के पिता नापित को इस प्रकार बोले-देवानुप्रिय! तुम परम यत्न से क्षत्रियकुमार जमालि के चार अंगुल छोड़कर निष्क्रमण-प्रायोग्य अग्र केशों को काटो। १८८. तए णं से कासवगे जमालिस्स खत्तियकुमारस्स पिउणा एवं वुत्ते समाणे हठ्ठतुढे करयलपरिग्गहियं दसनहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्ट एवं सामी! तहत्ताणाए विणएणं वयणं ततः सः काश्यपकः जमालेः क्षत्रिय- १८८. क्षत्रियकुमार जमालि के पिता के इस कुमारस्य पित्रा एवमुक्ते सति हृष्टतुष्टः प्रकार कहने पर नापित हृष्ट-तुष्ट हो करतलपरिगृहीतं दशनखं शिरसावल गया। दोनों हथेलियों से निष्पन्न संपुट मस्तके अंजलिं कृत्वा एवं स्वामिन् ! तथेति आकार वाली दस-नखात्मक अंजलि को आज्ञया विनयेन वचनं प्रतिश्रृणोति, सिर के सम्मुख घुमाकर 'स्वामी! आपकी Jain Education International www.jainelibrary.org For Private & Personal Use Only
SR No.003595
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages600
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy