SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 292
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तेत्तीसइमो उद्देसो : तेतीसवां उद्देशक मूल संस्कृत छाया हिन्दी अनुवाद उसभदत्त-देवाणंदा-पदं ऋषभदत्त-देवानन्दा-पदम् १३७. तेणं कालेणं तेणं समएणं माहण- तस्मिन् काले तस्मिन् समये माहनकुण्डग्रामं कुंडग्गामे नयरे होत्था-वण्णओ। बहु- नगरम् आसीत्-वर्णकः बहुशालकं चैत्यम्सालए चेइए-वण्णओ। तत्थ णं माहण- वर्णकः। तत्र माहन-कुण्डग्रामे नगरे ऋषभकुंडग्गामे नयरे उसभदत्ते नामं माहणे । दत्तः नाम माहनः परिवसति-आढ्यः दीप्तः परि-वसइ-अड्ढे दित्ते वित्ते जाव बहुज- वित्तः यावत् बहुजनस्य अपरिभूतः ऋग्वेदणस्स अपरिभूए रिव्वेद-जजुव्वेद- यजुर्वेद-सामवेद-अथर्ववेद-इतिहासपंचसामवेद · अथव्वणवेद - इतिहास- मानां निघण्टुषष्ठानां-चतुर्णां वेदानां साङ्गो- पंचमाणं निघंदुछट्ठाणं-चउण्हं वेदाणं । पाङ्गानां सरहस्यानां सारकः धारकः पारगः संगोवंगाणं सरहस्साणं सारए धारए षडङ्गविद् षष्ठितन्त्रविशारदः, संख्याने पारए सडंगवी सद्वितंतविसारए, संखाणे । शिक्षाकल्पे व्याकरणे छन्दे निरुते ज्यौतिसिक्खा-कपे वागरणे छंदे निरुत्ते षायणे, अन्येषु च बहषु ब्राह्मण्यकेषु नयेषु जोति-सामयणे, अण्णेसु य बहसु सुपरिनिष्ठितः श्रमणोपासकः अभिगत- बंभण्ण-एसु नयेसु सुपरिनिट्ठिए समणो- जीवाजीवः उपलब्धपुण्यपापः यावत् यथावासए अभिगयजीवाजीवे उवलद्ध- परिगृहीतैः तपःकर्मभिः आत्मानं भावयन् पुण्णपावे जाव अहापरिग्गहिएहिं तवो- विहरति। तस्य ऋषभदत्तस्य माहनस्य देवाकम्मेहि अप्पाणं भावे-माणे विहरइ। नन्दा नाम माहनी आसीत्-सुकुमारपाणितस्स णं उसभदत्तस्स माहणस्स पादाः यावत् प्रियदर्शना सुरूपा श्रमणोदेवाणंदा नाम माहणी होत्था- पासिका अभिगतजीवाजीवा उपलब्धपुण्यसुकुमालपाणिपाया जाव पियदंसणा पापा यावत् यथापरिगृहीतैः तपःकर्मभिः सुरूवा समणोवासिया अभिगय आत्मानं भावयती विहरति। जीवाजीवा उवलद्धपुण्ण-पावा जाव अहापरिग्गहिएहिं तवोकम्मेहिं अप्पाणं भावेमाणी विहरइ॥ ऋषभदत्त देवानंदा-पद १३७. 'उस काल उस समय ब्राह्मणकुंडग्राम नामक नगर था-वर्णक। बहुशालक चैत्य-वर्णक। उस ब्राह्मणकुंडग्राम नगर में ऋषभदत्त नामक ब्राह्मण रहता है-वह संपन्न, दीप्तिमान और विश्रुत है यावत् बहूजन के द्वारा अपरिभवनीय है। ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद-ये चार वेद, पांचवां इतिहास, छठा निघण्टु इनका सांगोपांग रहस्य सहित सारक (प्रवर्तक) धारक और पारगामी है। वह छह अंगों का वेत्ता, षष्टितंत्र का विशारद, संख्यान, शिक्षा, कल्प, व्याकरण, छन्द, निरुक्त, ज्योतिष शास्त्र, अन्य अनेक ब्राह्मण और परिव्राजक संबंधी नयों में निष्णात है। वह श्रमणोपासक जीव-अजीव को जानने वाला, पुण्य-पाप के मर्म को समझने वाला, यावत् यथा परिगृहीत तपःकर्म के द्वारा आत्मा को भावित करते हुए रह रहा है। उस ऋषभदत्त ब्राह्मण के देवानंदा नाम की ब्राह्मणी थी-सुकुमाल हाथ-पैर वाली यावत् प्रियदर्शिनी, सुरूप श्रमणोपासिका, जीव अजीव को जानने वाली, पुण्य पाप का मर्म समझने वाली यावत् यथा परीगृहीत तपःकर्म के द्वारा आत्मा को भावित करते हुए रह रही है। भाष्य १.सूत्र-१३७ इस सूत्र में दो बिन्दु विमर्शनीय हैं। क्या ऋषभदत्त ब्राह्मण पहले ब्राह्मण नय का पारगामी विद्वान था फिर बाद में श्रमणोपासक, श्रमणनय का अनुयायी बना? प्रथम वर्णन ब्राह्मण - नय का है। अभिगयजीवाजीवे-यह वर्णन श्रमण-नय का है। जैसे गौतम आदि ग्यारह गणधर पहले ब्राह्मण-नय के पारंगत थे, फिर महावीर के शिष्य बने। दूसरा विमर्शनीय बिन्दु यह है कि आगम रचना में एक शैलीगत वर्णन होता है। जहां भी ब्राह्मण परंपरा में निष्ठा रखने वाले व्यक्ति का वर्णन है, वहां ऋग्वेद से लेकर 'जोतिसामयणे' तक का पाठ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003595
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages600
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy