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________________ भगवई २६५ निव्वुडे नाणे केवलिस्स, निव्वुडे दंसणे निर्वृतं ज्ञानं केवलिनः निर्वृतं दर्शनं केवलिस्स । केवलिनः । से तेणद्वेणं गंगेया! एवं वुच्चइ-सयं एतेवं जाणामि, नो असयं असोच्चा एतेवं जाणामि, नो सोच्चा-तं चैव जाव नो असतो वेमाणिया चयंति ॥ सयं असयं उववज्जणा-पदं १२५. सयं भंते! नेरइया नेरइएस उववज्जंति? असयं नेरइया नेरइएस उववज्जंति ? १. सूत्र - १२३-१२४ गांगेय ने पूछा- भंते! सत् उत्पन्न होता है, असत् उत्पन्न नहीं होता । यह आपका स्वयं का ज्ञान है या किसी दूसरे से प्राप्त ज्ञान है ? यह आप आगम का अध्ययन किए बिना जानते हैं अथवा आगम का अध्ययन कर जानते हैं? गंगेया ! सयं नेरइया नेरइएसु उववज्जंति, नो असयं नेरइया नेरइएसु उववज्जति ॥ १२६. से केणट्टेणं भंते! एवं 'वुच्चइ- सयं नेरइया नेरइएस उववज्जंति, नो असयं रइया नेरइएस उवव-ज्जंति ? गंगेया! कम्मोदएणं, कम्मगुरुयत्ताए, कम्मभारियत्ताए, कम्मगुरु-संभारियत्ताए; असुभाणं कम्माणं उदएणं, असुभाणं कम्माणं विवा-गेणं, असुभाणं कम्माणं फलविवा- गेणं सयं नेरइया नेरइएस उववज्जंति, नो असयं नेरइया नेरइएस उववज्जति । से तेणेट्टेणं गंगेया! एवं वच्चइ सयं नेरइया नेरइएस उववज्जंति, नो असयं नेरइया नेरइएसु उववज्र्ज्जति ॥ १२७. सयं भंते! असुरकुमारा- पुच्छा । Jain Education International तत् तेनार्थेन गाङ्गेय! एवम् उच्यते स्वयं एतद् एवं जानामि, नो अस्वयम् अश्रुत्वा एतद् एवं जानामि, नो श्रुत्वा तच्चैव यावत् नो असतः वैमानिकाः च्यवन्ते । भाष्य 1 है। उत्तरवर्ती दर्शन के ग्रंथों में स्वतः और परतः प्रामाण्य की चर्चा हुई है। उसका बीज इस प्रश्न में मिलता है। स्वयम् अस्वयम् उपपदना-पदम् स्वयं भदन्त ! नैरयिकाः नैरयिकेषु उपपद्यन्ते ? अस्वयं नैरयिकाः नैरयिकेषु उपपद्यन्ते ? स्वतः ज्ञान हेतु निरपेक्ष होता है। परतः ज्ञान हेतु सापेक्ष होता गाङ्गेय! स्वयं नैरयिकाः नैरयिकेषु उपद्यन्ते, नो अस्वयं नैरयिकाः नैरयिकेषु उपपद्यन्ते । तत् केनार्थेन भदन्त ! एवम् उच्यते स्वयं नैरयिकाः नैरयिकेषु उपपद्यन्ते, नो अस्वयं नैरयिकाः नैरयिकेषु उपपद्यन्ते । श. ९ : उ. ३२ : सू. १२४-१२७ गाङ्गेया! कर्मोदयेन, कर्मगुरुकत्वेन कर्मभारिकत्वेन कर्मसम्भारिकत्वेन अशुभानां कर्मणाम् उदयेन, अशुभानां कर्मणां विपाकेन, अशुभानां कर्मणां फलविपाकेन स्वयं नैरयिकाः नैरयिकेषु उपपद्यन्ते, नो अस्वयं नैरयिकाः नैरयिकेषु उपपद्यन्ते । तत् तेनार्थेन गाङ्गेयाः ! एवम् उच्यते - स्वयं नैरयिकाः नैरयिकेषु उपपद्यन्ते, नो अस्वयं नैरयिकाः नैरयिकेषु उपपद्यन्ते। गांगेय ! इस अपेक्षा से यह कहा जा रहा है - मैं स्वयं इस प्रकार जानता हूं, किसी अन्य से प्राप्त ज्ञान के आधार पर नहीं जानता। मैं सुने बिना आगम आदि का अध्ययन किए बिना जानता हूं, सुनकर, आगम आदि का अध्ययन कर नहीं जानता। इसी प्रकार यावत् असत् वैमानिक च्युत नहीं होते। स्वयं भदन्त ! असुरकुमाराः पृच्छा। For Private & Personal Use Only स्वतः परतः उपपन्न पद १२५. 'भंते! नैरयिक नैरयिकों में स्वतः उपपन्न होते हैं, नैरयिक नैरयिकों में परतः उपपन्न होते हैं- किसी दूसरी शक्ति के द्वारा उपपन्न किए जाते हैं ? गांगेय ! नैरयिक नैरयिकों में स्वतः उपपन्न होते हैं, नैरयिक नैरयिकों में परतः उपपन्न नहीं होते। १२६. भंते! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है--नैरयिक नैरयिकों में स्वतः उपपन्न होते हैं ? नैरयिक नैरयिकों में परतः उपपन्न नहीं होते - किसी दूसरे व्यक्ति के द्वारा उपपन्न नहीं किए जाते ? गांगेय ! कर्म के उदय, कर्म की गुरुता, कर्म की भारिकता, कर्म की गुरुसंभारिकता, अशुभ कर्म के उदय, अशुभ कर्म के विपाक और अशुभ कर्म के फल- विपाक से नैरयिक नैरयिकों में स्वतः उपपन्न होते हैं, नैरयिक नैरयिकों में परतः उपपन्न नहीं होते। गांगेय ! इस अपेक्षा से यह कहा जा रहा है-नैरयिक नैरयिकों में स्वतः उपपन्न होते हैं, नैरयिक नैरयिकों में परतः उपपन्न नहीं होते। १२७. भंते! असुरकुमार असुरकुमारों में स्वतः उपपन्न होते हैं? पृच्छा । www.jainelibrary.org
SR No.003595
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages600
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size15 MB
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