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श. ९ : उ. ३२ : सू. १२३, १२४
सतो परतो वा जाणणा-पदं १२३. सयं भंते! एतेवं जाणह, उदाहु असयं, असोच्चा एतेवं जाणह, उदाहु सोच्चा-सतो नेरइया उववज्जंति, नो असतो नेरइया उववज्जति जाव सतो वेमाणिया, चयंति, नो असतो वेमाणिया चयंति ?
गंगेया ! सयं एतेवं जाणामि, नो असयं, असोच्चा एतेवं जाणामि, नो सोच्चा-सतो नेरइया उववज्जंति, नो असतो नेरइया उववजंति जाव सतो वेमाणिया चयंति, नो असतो वेमाणिया चयंति ॥
१२४. से केणट्टेणं भंते! एवं बुच्चइ - सयं एतेवं जाणामि, नो असयं, असोच्चा एतेवं जाणामि, नो सोच्चा-सतो नेरइया उववज्जंति, नो असतो नेरइया उववज्जंति जाव सतो वेमाणिया चयंति, नो असतो वेमाणिया चयंति ?
गंगेया! केवली णं पुरत्थमे णं मियं पि जाइ, अमियं पि जाणइ । दाहिणे णं. पच्चत्थिमे णं, उत्तरे णं, उड्डुं अहे मियं पि जाइ, अमियपि जाणइ ।
सव्वं जाणइ केवली, सव्वं पासइ केवली ।
सव्वओ जाणइ केवली, सव्वओ पासइ केवली ।
सव्वकालं जाणइ केवली, सव्वकालं पासइ केवली ।
सव्वभावे जाणइ केवली, सव्वभावे पासइ केवली ।
अणते नाणे केवलिस्स, अणंते दंसणे केवलिस्स ।
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स्वयं परतः वा ज्ञान-पदम् स्वयं भदन्त ! एतद् एवं जानीत, उताहो अस्वयम् अश्रुत्वा एतद् एवं जानीत, उताहो श्रुत्वा सतः नैरयिकाः उपपद्यन्ते नो असतः नैरयिकाः उपपद्यन्ते, यावत् सतः वैमानिकाः च्यवन्ते, नो असतः वैमानिकाः च्यवन्ते?
गाङ्गेय ! स्वयम् एतद् एवं जानामि, नो अस्वयम् अश्रुत्वा एतद् एवं जानामि, नो श्रुत्वा सतः नैरयिकाः उपद्यन्ते, नो असतः नैरयिकाः उपपद्यन्ते यावत् सतः वैमानिकाः च्यवन्ते, नो असतः वैमानिकाः च्यवन्ते ।
तत् केनार्थेन भदन्त ! एवम् उच्यते स्वयम् एतद् एवं जानामि, नो अस्वयम्, अश्रुत्वा एतद् एवं जानामि, नो श्रुत्वा - सतः नैरयिकाः उपपद्यन्ते, नो असतः नैरयिकाः उपपद्यन्ते यावत् सतः वैमानिकाः च्यवन्ते, नो असतः वैमानिकाः च्यवन्ते?
गाङ्गेय! केवली पौरस्त्ये मितम् अपि जानाति, अमितम् अपि जानाति । दक्षिणे, पाश्चात्ये, उत्तरे, ऊर्ध्व अधः मितम् अपि जानाति अमितम् अपि जानाति ।
सर्वं जानाति केवली, सर्वं पश्यति केवली ।
सर्वतः जानाति केवली, सर्वतः पश्यति केवली ।
सर्वकालं जानाति केवली, सर्वकालं पश्यति केवली । सर्वभावान् जानाति केवली, सर्वभावान् पश्यति केवली ।
अनन्तं ज्ञानं केवलिनः अनंतं दर्शनं केवलिनः ।
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भगवई
स्वतः अथवा परतः ज्ञान पद १२३. भंते! आप स्वयं इस प्रकार जानते हैं अथवा किसी अन्य से प्राप्त ज्ञान के आधार पर जानते हैं? आप किसी से सुने बिना, आगम आदि का अध्ययन किए बिना जानते हैं अथवा सुनकर, आगम आदि का अध्ययन कर जानते हैं- सत् नैरयिक उपपन्न होते हैं, असत् उपपन्न नहीं होते यावत् सत् वैमानिक च्युत होते हैं, असत् च्युत नहीं होते? गांगेय! मैं स्वयं इस प्रकार जानता हूं, किसी अन्य से प्राप्त ज्ञान के आधार पर नहीं जानता। मैं सुने बिना आगम आदि का अध्ययन किए बिना जानता हूं, सुनकर, आगम आदि का अध्ययन कर नहीं जानता - सत् नैरयिक उपपन्न होते हैं, असत् उपपन्न नहीं होते, सत् वैमानिक च्युत होते हैं, असत् च्युत नहीं होते।
१२४. भंते! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है- मैं स्वयं इस प्रकार जानता हूं किसी अन्य से प्राप्त ज्ञान के आधार पर नहीं जानता? मैं सुने बिना, किसी आगम आदि का अध्ययन किए बिना जानता हूं, सुनकर, आगम आदि का अध्ययन कर नहीं जानता - सत् नैरयिक उपपन्न होते हैं, असत् उपपन्न नहीं होते यावत् सत् वैमानिक च्युत होते हैं, असत् च्युत नहीं होते ?
गांगेय! केवली पूर्व में परिमित को भी जानता है, अपरिमित को भी जानता है। इसी प्रकार दक्षिण, पश्चिम, उत्तर, ऊर्ध्व और अधः दिशाओं में परिमित को भी जानता है, अपरिमित को भी जानता है। केवली सबको जानता है, केवली सबको देखता है।
केवली सब ओर से जानता है, केवली सब ओर से देखता है।
केवली सब काल में जानता है, केवली सब काल में देखता है।
केवली का ज्ञान अनन्त है, केवली का दर्शन अनन्त है।
केवली का ज्ञान निरावरण है, केवली का दर्शन निरावरण है।
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