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________________ भगवई २६१ श.९ : उ.३२ : सू. ११७-१२० होज्जा,अहवा जोइसिएसु य भवण- भवन्ति, अथवा ज्योतिष्केषु च भवनवासिषु वासीसुय वाणमंतरेसु य होज्जा, अहवा च वानमन्तरेषु च भवन्ति, अथवा जोइसिएसु य भवणवासीसु य ज्योतिष्केषु च भवनवासिषु च वैमानिकेषु वेमाणिएसु य होज्जा, अहवा जोइसिएसु च भवन्ति, अथवा ज्योतिष्केषु च य वाणमंतरेसु य वेमाणिएसु य होज्जा, वानमन्तरेषु च वैमानिकेषु च भवन्ति, अहवा जोइसिएसु य भवणवासीसु य अथवा ज्योतिष्केषु च भवनवासिषु च वाणमंतरेसु य वेमाणिएसुय होज्जा॥ वानमन्तरेषु च वैमानिकेषु च भवन्ति। होते है। अथवा ज्योतिष्क, भवनवासी और वाणमंतर में होते हैं। अथवा ज्योतिष्क, भवनवासी और वैमानिक में होते हैं। अथवा ज्योतिष्क, वाणमंतर और वैमानिक मे होते हैं। अथवा ज्योतिष्क, भवनवासी, वाण-मंतर और वैमानिक में होते हैं। ११८. एयस्स णं भंते! भवणवासिदेव- एतस्य भदन्त ! भवनवासिदेवप्रवेशनकस्य, ११८. भंते! इन भवनवासी में प्रवेश करने पवेसणगस्स, वाणमंतरदेवपवेसण- वानमन्तरदेवप्रवेशनकस्य, ज्योतिष्कदेव- वाले, वाणमंतर मे प्रवेश करने वाले, गस्स, जोइसियदेवपवेसणगस्स, प्रवेशनकस्य, वैमानिकदेवप्रवेशनकस्य च ज्योतिष्क में प्रवेश करने वाले और वेमाणियदेव-पवेसणगस्स य कयरे कतरे कतरेभ्यः अल्पाः वा ? बहुकाः वा? वैमानिक में प्रवेश करने वाले देवों में कौन कयरेहितो अप्पा वा? बहया वा? तुल्ला तुल्याः वा ? विशेषाधिकाः वा? किससे अल्प, बहुत, तुल्य अथवा वा? विसेसाहिया वा? विशेषाधिक है? गंगेया! सव्वत्थोवे वेमाणियदेव- गाङ्गेय! सर्वस्तोकाः वैमानिकदेवप्रवेशनके, गांगेय! वैमानिक में प्रवेश करने वाले देव पवेसणए, भवणवासिदेवपवेसणए भवनवासिदेवप्रवेशनके असंख्येयगुणाः, सबसे अल्प हैं, भवनवासी में प्रवेश करने असंखेज्जगुणे, वाणमंतरदेवपवे-सणए वानमन्तरदेवप्रवशनके असंख्येयगुणाः, वाले देव उनसे असंख्येय गुण हैं, वाणमंतर असंखेज्जगुणे, जोइसियदेव-पवेसणए ज्योतिष्कदेवप्रवेशनके संख्येयगुणाः। में प्रवेश करने वाले देव उनसे असंख्येय संखेज्जगुणे॥ गुण हैं, ज्योतिष्क में प्रवेश करने वाले देव उनसे संख्येय गुण हैं। ११९. भंते! इन नैरयिक में प्रवेश करने वालों, तिर्यक्योनिक में प्रवेश करने वालों, मनुष्य में प्रवेश करने वालों और देव में प्रवेश करने वालों में कौन किससे अल्प, बहुत, तुल्य अथवा विशेषाधिक ११९. एयस्स णं भंते! नेरइयप- एतस्य भदन्त ! नैरयिकप्रवेश्नकस्य तिर्यग्- वेसणगस्स तिरिक्खजोणियपवेस- योनिकप्रवेशनकस्य मनुष्यप्रवेशन-कस्य णगस्स मणुस्सपवेसणगस्स देव- देवप्रवेशनकस्य च कतरे कतरेभ्यः अल्पाः पवेसणगस्स य कयरे कयरेहितो अप्पा वा? बहुकाः वा? तुल्याः वा? विशेषावा? बहुया वा? तुल्ला वा? धिकाः वा? विसेसाहिया वा? गंगेया! सव्वत्थोवे मणुस्सपवे-सणए, गाङ्गेय! सर्वस्तोकाः मनुष्यप्रवेशनके, नेरइयपवेसणए असंखेज्ज-गुणे, नैरयिकप्रवेशनके असंख्येयगुणाः देवदेवपवेसणए असंखेज्जगुणे, प्रवेशनके असंख्येयगुणाः तिर्यग्योनिकतिरिक्खजोणियपवेसणए असंखे. प्रवेशनके असंख्येयगुणाः। ज्जगुणे॥ गांगेय! मनुष्य में प्रवेश करने वाले सबसे अल्प हैं, नैरयिक में प्रवेश करने वाले उनसे असंख्येय गुण हैं, देव में प्रवेश करने वाले उनसे असंख्येय गुण हैं, तिर्यक् - योनिक में प्रवेश करने वाले उनसे असंख्येय गुण हैं। संतर-निरंतर उववज्जणादि-पदं सान्तर-निरन्तर-उपपदनादि-पदम् १२०. संतरं भंते! नेरइया उवव-ज्जति सान्तरं भदन्त! नैरयिकाः उपपद्यन्ते निरंतरं नेरइया उववज्जति संतरं निरन्तरं नैरयिकाः उपपद्यन्ते सान्तरम् असुरकुमारा उववज्जति निरंतरं असुरकुमाराः उपपद्यन्ते निरन्तरम् असुरकुमारा उववज्जति जाव संतरं असुरकुमाराः उपपद्यन्ते यावत् सान्तरं वेमाणिया उववज्जति निरंतरं वैमानिकाः उपपद्यन्ते निरन्तरं वैमानिकाः वेमाणिया उववज्जति? उपपद्यन्ते? सांतर-निरंतर उपपन्न आदि पद १२०. भंते! नैरयिक अंतर सहित उपपन्न होते हैं? निरंतर उपपन्न होते हैं? असुरकुमार अंतर सहित उपपन्न होते हैं ? निरंतर उपपन्न होते है ? यावत् वैमानिक अंतर सहित उपपन्न होते हैं? निरंतर उपपन्न होते हैं? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003595
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages600
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size15 MB
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