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भगवई
श. ९ : उ. ३२ : सू. ११२-११७
२६० मणुस्सेसु य गब्भवक्कंतियमणुस्सेसु गर्भावक्रान्तिकमनुष्येषु च भवन्ति। य होज्जा॥
गर्भावक्रांतिक मनुष्यों में होते हैं।
११३. एयस्स णं भंते! संमुच्छिम- एतस्य भदन्त ! सम्मूर्छिममनुष्यप्रवेशन- ११३. भंते ! इन सम्मूर्छिम में प्रवेश करने
मणुस्सपवेसणगस्स गब्भवक्कं- कस्य गर्भावक्रान्तिक- मनुष्यप्रवेशन-कस्य वाले और गर्भावक्रांतिक में प्रवेश करने तियमणुस्सपवेसणगस्स य कयरे च कतरे कतरेभ्यः अल्पाः वा ? बहुकाः वा? वाले मनुष्यों में कौन किससे अल्प, कयरेहिंतो अप्पा वा? बहुया वा? तुल्याः वा ? विशेषाधिकाः वा?
बहुत. तुल्य अथवा विशेषाधिक है? तुल्ला वा? विसेसाहिया वा? गंगेया! सव्वत्थोवे गब्भवक्कंतिय- गाङ्गेय! सर्वस्तोकाः गर्भावक्रान्तिक- गांगेय! गर्भावक्रांतिक में प्रवेश करने वाले मणुस्सपवेसणए समुच्छिममणुस्स- मनुष्यप्रवेशनके सम्मूर्छिममनुष्यप्रवेशनके मनुष्य सबसे अल्प हैं। सम्मूर्छिम में पवेसणए असंखेज्जगुणे॥ असंख्येयगुणाः।
प्रवेश करने वाले उनसे असंख्येय गुण हैं।
देवप्रवेशनकः भदन्त ! कतिविधः प्रज्ञप्तः?
११४. देवपवेसणए णं भंते! कतिविहे पण्णते? गंगेया! चउविहे पण्णत्ते, तं जहा- भवणवासिदेवपवेसणए जाव वेमाणिय- . देवपवेसणए॥
गाङ्गेय! चतुर्विधः प्रज्ञप्तः, तद् यथा भवन- वासिदेवप्रवेशनकः यावत् वैमानिकदेवप्रवेशनकः।
११४. भंते ! देवप्रवेशनक कितने प्रकार का
प्रज्ञप्त है? गांगेय! चार प्रकार का प्रज्ञप्त है, जैसेभवनवासी देवप्रवेशनक यावत् वैमानिक देवप्रवेशनक।
११५. एगे भंते! देवे देवपवेसणएणं ११५. एकः भदन्त ! देवः देवप्रवेशनकेन पविसमाणे किं भवणवासीसु होज्जा? प्रविशन् किं भवनवासिषु भवति? वानमंतर. वाणमंतरजोइसियवेमा-णिएसु होज्जा? ज्योतिष्क-वैमानिकेषु भवति?
११५. भंते ! एक देव देवप्रवेशनक में प्रवेश
करता हुआ क्या भवनवासी में होता है? वाणमंतर, ज्योतिष्क और वैमानिक में होता है? गांगेय! भवनवासी में होता है, वाणमंतर, ज्योतिष्क अथवा वैमानिक में होता है।
गंगेया! भवणवासीसु वा होज्जा, गाङ्गेय! भवनवासिषु वा भवति, वानमंतर वाणमंतर-जोइसिय-वेमाणिएसु वा ज्योतिष्क-वैमानिकेषु वा भवन्ति। होज्जा।
११६. दो भंते देवा देवपवेसणएणं- द्वौ भदन्त ! देवौ देवप्रवेशनकेन-पृच्छा। पुच्छा । गोयमा! भवणवासीसु वा होज्जा, गाङ्गेय! भवनवासिषु वा भवतः, वानमंतर- वाणमंतर-जोइसिय-वेमाणिएस वा ज्योतिष्क-वैमानिकेषु वा भवतः। अथवा होज्जा। अहवा एगे भवणवासीसु एगे एकः भवनवासिषु एकः वानमन्तरेषु भवति, वाणमंतरेसु होज्जा, एवं जहा एवं यथा तिर्यग्योनिकप्रवेशनकः तथा तिरिक्खजोणियपवेसणए तहा देवप्रवेशनकोऽपि भणितव्यः यावत् देवपवेसणए वि भाणियब्वे जाव असंख्येयः इति। असंखेज ति॥
११६. भंते ! दो देव देवप्रवेशनक में प्रवेश करते हुए भवनवासी में होते हैं? पृच्छा। गांगेय! भवनवासी में होते हैं, वाणमंतर, ज्योतिष्क अथवा वैमानिक में होते हैं। अथवा एक भवनवासी में और एक वाणमंतर में होता है। इस प्रकार जैसे तिर्यक्योनिकप्रवेशनक वैसे देवप्रवेशनक वक्तव्य है यावत् असंख्येय।
११७. उक्कोसा भंते!-पुच्छा।
उत्कर्षाः भदन्त !-पृच्छा। गंगेया! सव्वे वि ताव जोइसिएसु गाङ्गेय! सर्वे अपि तावत् ज्योतिष्केषु होज्जा, अहवा जोइसिय-भवणवासीसु भवन्ति, अथवा ज्योतिष्क-भवनवासिषु च य होज्जा, अहवा जोइसिय-वाणमंतरेसु भवन्ति, अथवा ज्योतिष्क-वानमन्तरेषु य होज्जा, अहवा जोइसियवेमाणिएसुय भवन्ति, अथवा ज्योतिष्क-वैमानिकेषु च
११७. भंते ! उत्कृष्ट देव-पृच्छा। गांगेय ! सब ज्योतिष्क में होते हैं। अथवा ज्योतिष्क और भवनवासी में होते हैं। अथवा ज्योतिष्क और वाणमंतर में होते हैं। अथवा ज्योतिष्क और वैमानिक में
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