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________________ भगवई ९४. सत्त भंते! नेरइया नेरइयप्पवेसणएणं पविसमाणा किं रयणप्पभाए होज्जा ? -पुच्छा गंगेया! स्यणप्पभाए वा होज्जा जाव अहेसत्तमाए वा होज्जा । अहवा एगे रयणप्पभाए छ सक्करप्पभाए होज्जा एवं एएणं कमेणं जहा छण्हं दुयासंजोगो तहा सत्तण्ह वि भाणियव्वं, नवरं - एगो अब्भ- हिओ संचारिज्जइ, सेसं तं चेव । तियासंजोगो, चउक्कसंजोगो, पंचसंजोगो, छक्कसंजोगो य छण्हं जहा तहा सत्तण्ह वि भाणियव्वं, नवरं - एक्केक्को अब्भहिओ संचारेयव्वो जाव छक्कगसंजोगो अहवा दो सक्करप्पभाए एगे वालुयप्पभाए जाव एगे असत्तमाए होज्जा । अहवा एगे रयणप्पभाए एगे सक्करप्पभाए जाव एगे अहेसत्तमाए होज्जा ॥ २५१ सप्त भदन्त ! नैरयिकाः नैरयिकप्रवेशनकेन प्रविशन्तः किं रत्नप्रभायां भवन्ति - पृच्छा । गाङ्गेय! रत्नप्रभायां वा भवन्ति यावत् अधः सप्तम्यां वा भवन्ति । Jain Education International अथवा एकः रत्नप्रभायां षट् शकरप्रभायां भवन्ति । एवम् एतेन क्रमेण यथा षण्णां द्विकसंयोगः तथा सप्तानाम् अपि भणितव्यम् नवरम् - एकः अभ्यधिकः सञ्चार्यते, शेषं तत् चैव । त्रिकसंयोगः, चतुष्कसंयोगः, पञ्चसंयोगः, षट्संयोगः च षण्णां यथा तथा सप्तानाम् अपि भणितव्यम्, नवरम्एकैकः अभ्यधिकः सञ्चारयितव्यः यावत् एकः अधः सप्तम्यां भवन्ति । अथवा एकः रत्नप्रभायाम् एकः शर्कराप्रभायां यावत् एकः अधः सप्तम्यां भवन्ति । भाष्य १. सूत्र - ९४ • (सात जीवों के एक असांयोगिक भंग ७) द्रष्टव्य ९/९१९३ का यंत्र सात जीवों के द्वि-सांयोगिक विकल्प ६ भंग १२६ स्थापना १-६, २-५, ३-४, ४-३.५-२, ६-१, ये छह विकल्प हैं। इनसे रत्नप्रभादि के संयोग से होने वाले २१ भंगों को गुणन करने पर २१x६ = १२६ भंग सात जीवों के त्रि-सांयोगिक विकल्प १५ भंग ५२५ स्थापना १-१-५, १-२-४२-१-४१-३-३,२-२-३,३-१-३, १४.२, २-३-२, ३-२-२, ४-१-२, १-५१, २-४-१, ३३-१, ४-२-९ और ५-१-१। ९५. सात जीवों के चतुष्क-सांयोगिक विकल्प २०, भंग ७०० स्थापना १-१-१-४, १-१-४-११-४-१-१, ४-१-१-१, १-१२-३ १-१-३-२, १-३-१-२, ३-१-१-२, १-२-१-३, अट्ठ भंते! नेरइया नेरइयप्पवेसणएणं पविसमाणा किं रयणप्पभाए होज्जा ? -- पुच्छा । गंगेया! रयणप्पभाए वा होज्जा जाव असत्तमाए वा होज्जा । अहवा एगे रयणप्पभाए सत्त सक्कर श. ९ : उ. ३२ : सू. ९४,९५ ९४. "भंते! सात नैरयिक नैरयिकप्रवेशनक में प्रवेश करते हुए क्या रत्नप्रभा में होते हैं? -पृच्छा । गांगेय ! रत्नप्रभा में होते हैं यावत् अथवा अधः सप्तमी में होते हैं । २-१-१-३, ३-२-११, २ २ २ १ २-१-२-२, १-२२२,२-२-१-२, १-२-३-११-३-२-१२-१-३-१ और ३-१-२-१। • सात जीवों के पंच- सांयोगिक विकल्प १५, भंग ३१५ स्थापना अथवा एक रत्नप्रभा में और छह शर्कराप्रभा में होते हैं। इस प्रकार इस क्रम से जैसे छह नैरयिकों के द्वि-संयोगज भंग किए गए हैं, वैसे ही सात नैरयिकों के द्विसंयोगज भंग वक्तव्य हैं, इतना विशेष है- एक अभ्यधिक संचारणीय है, शेष पूर्ववत् । जैसे छह नैरयिकों के त्रि-संयोगज, चतुष्क- संयोगज, पंच-संयोगज, षट्कसंयोगज भंग किए गए हैं वैसे ही सात नैरयिकों के वक्तव्य हैं, इतना विशेष है इन भंगों में एक एक अभ्यधिक संचारणीय है यावत् एक अधः सप्तमी में होता है। अथवा एक रत्नप्रभा में, एक शर्कराप्रभा में यावत् एक अधः सप्तमी में होता है। १-१-१-१-३, ११-१-३-११-१-१-२-२, १-१-२-१२, १-१-२-१-२, २-१-१-१-२, १-२-२-२-१, १-२-१२-१२-१-१-२-१, १-१-३-१-१, १२-२-१-१, २-१२-१-१, १-३-१-१-१२-२-१-१-१३-१-१-१-१। • सात जीवों के षट्- सांयोगिक विकल्प ६, भंग ४२ । स्थापना १-१-१-१-१-२, १-१-१-१-२-११-१-१-२-१-१,११-२-१-१-११-२-१-१-१-१, २१-१-१-१-१ • सात जीवों के सप्त- सांयोगिक विकल्प १, भंग १ स्थापना अष्ट भदन्त ! नैरयिकाः नैरयिकप्रवेशनकेन प्रविशन्तः किं रत्नप्रभायां भवन्ति ?पृच्छा । गाङ्गेय! रत्नप्रभायां वा भवन्ति यावत् अधः सप्तम्यां वा भवन्ति । अथवा एकः रत्नप्रभायां सप्त शर्कराप्रभायां १-१-१-१-१-१-१, विस्तार के लिए द्रष्टव्य ९ / ९१-९३ का यंत्र For Private & Personal Use Only ९५. भंते! आठ नैरयिक नैरयिकप्रवेशनक में प्रवेश करते हुए क्या रत्नप्रभा में होते हैं ? -पृच्छा । गांगेय ! रत्नप्रभा में होते हैं यावत् अथवा अधः सप्तमी में होते हैं। अथवा एक रत्नप्रभा में और सात www.jainelibrary.org
SR No.003595
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages600
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size15 MB
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