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________________ भगवई श.९ : उ. ३२ : सू. ९२ २३८ तिण्णि रयणप्पभाए एगे सक्करप्पभाए त्रयः रत्नप्रभायां एकः शर्कराप्रभायाम् एकः एगे वालुयप्पभाए होज्जा, एवं जाव । अधःसप्तम्यां भवन्ति। अहवा तिण्णि रयणप्पभाए एगे अथवा एकः रत्नप्रभायाम् एकः सक्करप्पभाए एगे अहेसत्तमाए होज्जा। वालुकाप्रभायां त्रयः पङ्कप्रभायां भवन्ति, अहवा एगे रयणप्पभाए एगे एवम् एतेन क्रमेण यथा चतुर्णां त्रिकसंयोगः वालुयप्पभाए तिण्णि पंकप्प-भाए भणितः तथा पञ्चानाम् अपि त्रिकसंयोगः होज्जा। एवं एएणं कमेणं जहा चउण्हं भणितव्यः, नवरम्-तत्र एकः संचार्यते इह तियासंजोगो भणितो तहा पंचण्ह वि द्वौ, शेषं तच्चैव यावत् अथवा त्रयः तियासंजोगो भणियव्वो, नवरं-तत्थ । धूमप्रभायाम् एकः तमायां एकः अधःसप्तम्यां एगो संचारिज्जइ, इह दोण्णि, सेसं तं भवन्ति । चेव जाव अहवा तिण्णि धूमप्पभाए एगे अथवा एकः रत्नप्रभायाम् एकः शर्करा- तमाए एगे अहेसत्तमाए होज्जा। प्रभायाम् एकः वालुकाप्रभायाम् द्वौ अहवा एगे रयणप्पभाए एगे सक्कर- पङ्कप्रभायां भवन्ति, एवं यावत् अथवा एकः प्पभाए एगे वालुयप्पभाए दो पंकप्पभाए रत्नप्रभायाम् एकः शर्कराप्रभायाम् एकः होज्जा, एवं जाव अहवा एगे रयणप्पभाए। वालुकाप्रभायां द्वौ अधःसप्तम्यां भवन्ति। एगे सक्करप्पभाए एगे वालुयप्पभाए दो अथवा एकः रत्नप्रभायाम् एकः शर्कराअहेसत्तमाए होज्जा। अहवा एगे प्रभायां द्वौ वालुकाप्रभायाम् एकः पङ्कप्रभायां रयणप्पभाए एगे सक्करप्पभाए दो भवन्ति, एवं यावत् अधःसप्तम्याम् । अथवा वालुयप्पभाए एगे पंकप्पभाए होज्जा, एकः रत्नप्रभायाम् द्वौ शर्कराप्रभायाम् एकः एवं जाव अहेसत्तमाए। अहवा एगे वालुकाप्रभायाम् एकः पङ्कप्रभायां भवन्ति, रयणप्पभाए दो सक्कर-प्पभाए एगे एवं यावत् अथवा एकः रत्नप्रभायां द्वौ वालुयप्पभाए एगे पंकप्पभाए होज्जा, शर्कराप्रभायाम् एकः वालुकाप्रभायाम् एकः एवं जाव अहवा एगे रयणप्पभाए दो अधःसप्सम्यां भवन्ति। अथवा द्वौ रत्न- सक्करप्पभाए एगे वालुयप्पभाए एगे प्रभायाम् एकः शर्कराप्रभायाम् एकः अहेसत्तमाए होज्जा। अहवा दो वालुकाप्रभायाम् एकः पङ्कप्रभायां भवन्ति रयणप्पभाए एगे सक्करप्पभाए एगे यावत् अथवा द्वौ रत्नप्रभायाम् एकः वालुयप्पभाए एगे पंकप्पभाए होज्जा शर्कराप्रभायाम् एकः वालुकाप्रभायाम् एकः जाव अहवा दो रयणप्पभाए एगे अधः सप्तम्यां भवन्ति। अथवा एकः सक्करप्पभाए एगे वालयप्पभाए एगे रत्नप्रभायाम् एकः शर्कराप्रभायाम् एकः अहेसत्तमाए होज्जा। अहवा एगे पङ्कप्रभायां द्वौ धूमप्रभायां भवन्ति, एवं यथा रयणप्पभाए एगे सक्करप्पभाए एगे यावत् चतुर्णां चतुष्कसंयोगः भणितः तथा पंकप्पभाए दो धूमप्पभाए होज्जा, एवं पञ्चानाम् अपि चतुष्कसंयोगः भणितव्यः जहा चउण्हं चउक्कसंजोगो भणिओ नवरम्-अभ्यधिकम् एकः संचारयितव्यः, तहा पंचण्ह वि चउक्कसंजोगो एवं यावत् अथवा द्वौ पंकप्रभायाम् एकः भाणियव्वो नवरं-अब्भहियं एगो धूमप्रभायाम् एकः तमायाम् एकः अधःसंचारेयव्वो, एवं जाव अहवा दो सप्तम्यां भवन्ति। पंकप्पभाए एगे धूमप्पभाए एगे तमाए एगे अथवा एकः रत्नप्रभायाम् एकः शर्कराअहेसत्तमाए होज्जा। प्रभायाम् एकः वालुकाप्रभायाम् एकः अहवा एगे रयणप्पभाए एगे पंकप्रभायाम् एकः धूमप्रभायां भवन्ति, सक्करप्पभाए एगे वालुयप्पभाए एगे अथवा एकः रत्नप्रभायाम् एकः शर्करा- पंकप्पभाए एगे धूमप्पभाए होज्जा, प्रभायाम् एकः वालुकाप्रभायाम् एकः अहवा एगे रयणप्पभाए एगे पंकप्रभायाम् एकः तमायां भवन्ति, अथवा सक्करप्पभाए एगे वालुयप्पभाए एगे एकः रत्नप्रभायां यावत् एकः पंकप्रभायाम् पंकप्पभाए एगे तमाए होज्जा, अहवा एगे एकः अधःसप्तम्यां भवन्ति, अथवा एकः अधःसप्तमी में होता है। अथवा दो रत्नप्रभा में, दो शर्कराप्रभा में और एक वालुकाप्रभा में होता है-इस प्रकार यावत् अधःसप्तमी में होता है। अथवा तीन रत्नप्रभा में, एक शर्कराप्रभा में और एक वालुकाप्रभा में होता है। इस प्रकार यावत् अथवा तीन रत्नप्रभा में, एक शर्कराप्रभा में और एक अधःसप्तमी में होता है। अथवा एक रत्नप्रभा में, एक वालुकाप्रभा में और तीन पंकप्रभा में होते हैं। इस प्रकार इस क्रम से जैसे चार नैरयिकों के त्रि-संयोगज भंग किए हैं, वैसे ही पांच नैरयिकों के त्रिसंयोगज भंग वक्तव्य है, इतना विशेष है-जैसे चतुःसंयोगज भंग एक से संचारित होता है वैसे यहां पंच संयोगज भंग दो से संचारित होगा, शेष पूर्ववत् यावत् अथवा तीन धूमप्रभा में, एक तमा में और एक अधःसप्तमी में होता है। अथवा एक रत्नप्रभा में, एक शर्कराप्रभा में, एक वालुकाप्रभा में और दो पंकप्रभा में होते हैं। इस प्रकार यावत् अथवा एक रत्नप्रभा में, एक शर्कराप्रभा में, एक वालुकाप्रभा में और दो अधःसप्तमी में होते हैं अथवा एक रत्नप्रभा में, एक शर्कराप्रभा में, दो वालुकाप्रभा में और एक पंकप्रभा में होता है। इस प्रकार यावत् अधःसप्तमी में होता है। अथवा एक रत्नप्रभा में, दो शर्कराप्रभा में, एक वालुकाप्रभा में और एक पंकप्रभा में होता है। इस प्रकार यावत् अथवा एक रत्नप्रभा में, दो शर्कराप्रभा में एक वालुकाप्रभा में और एक अधःसतमी में होता है। अथवा दो रत्नप्रभा में, एक शर्कराप्रभा में, एक वालुकाप्रभा में और एक पंकप्रभा में होता है, यावत् अथवा दो रत्नप्रभा में, एक शर्कराप्रभा में, एक वालुकाप्रभा में, एक अधःसप्तमी में होता है। अथवा एक रत्नप्रभा में, एक शर्कराप्रभा में, एक पंकप्रभा में और दो धूमप्रभा में होते हैं। इस प्रकार जैसे चार नैरयिकों के चतुष्क संयोगज भंग किए गए हैं, वैसे ही पांच नैरयिकों के चतुष्कसंयोगज भंग वक्तव्य हैं, इतना विशेष है-एक अधिक संचारणीय है। इस प्रकार यावत् अथवा दो पंकप्रभा में, एक धूमप्रभा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003595
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages600
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size15 MB
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