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________________ भगवई २३७ ९२. पंच भंते! नेरइया नेरइय- पञ्च भदन्त! नैरयिकाः नैरयिकप्रवेशनकेन प्पवेसणएणं पविसमाणा किं रयप्पभाए प्रविशन्तः किं रत्नप्रभायां भवन्ति?- होज्जा?-पुच्छा। पृच्छा। गंगेया! रयणप्पभाए वा होज्जा जाव गाङ्गेय! रत्नप्रभायां वा भवन्ति यावत् अहेसत्तमाए वा होज्जा। अधःसप्तम्यां वा भवन्ति। अहवा एगे रयणप्पभाए चत्तारि । अथवा एकः रत्नप्रभायां चत्वारः शर्करासक्करप्पभाए होज्जा जाव अहवा एगे प्रभायां भवन्ति यावत् अथवा एकः रत्नरयणप्पभाए चत्तारि अहेसत्त-माए प्रभायां चत्वारः अधःसप्तम्यां भवन्ति। होज्जा। अहवा दो रयणप्प-भाए तिण्णि अथवा द्वौ रत्नप्रभायां त्रयः शर्कराप्रभायां सक्करप्पभाए होज्जा, एवं जाव अहवा। भवन्ति, एवं यावत् अथवा द्वौ रत्नप्रभायां दो रयणप्पभाए तिण्णि अहेसत्तमाए त्रयः अधःसप्तम्यां भवन्ति। अथवा त्रयः होज्जा। अहवा तिण्णि रयणप्पभाए रत्नप्रभायां द्वौ शर्कराप्रभायां भवन्ति, एवं दोण्णि सक्करप्पभाए होज्जा, एवं जाव। यावत् अधःसप्तम्यां भवन्ति। अथवा अहेसत्तमाए होज्जा। अहवा चत्तारि । चत्वारः रत्नप्रभायाम् एकः शर्कराप्रभायाम् रयणप्पभाए एगे सक्करप्पभाए होज्जा, भवन्ति, एवं यावत् अथवा चत्वार: एवं जाव अहवा चत्तारि रयणप्पभाए एगे रत्नप्रभायां एकः अधःसप्तम्यां भवन्ति। अहेसत्तमाए होज्जा। अहवा एगे। अथवा एकः शर्करा-प्रभायां चत्वारः सक्करप्पभाए चत्तारि वालुयप्पभाए वालुकाप्रभायां भवन्ति । एवं यथा रत्नप्रभया होज्जा। एवं जहा रयणप्पभाए समं समं उपरितनपृथिव्यः चारिताः तथा उवरिम-पुढवीओ चारियाओ तहा। शर्कराप्रभया अपि समं चारयितव्या यावत् सक्कर-प्पभाए वि समं चारेयव्वाओ अथवा चत्वारः शर्करा-प्रभायाम् एकः जाव अहवा चत्तारि सक्करप्पभाए एगे अधःसप्तम्यां भवन्ति। एवम् एकैकया समं अहेसत्तमाए होज्जा। एवं एक्के-क्काए चारयितव्याः यावत् अथवा चत्वारः समं चारेयव्वाओ जाव अहवा चत्तारि तमायाम् एकः अधःसप्तम्यां भवन्ति। तमाए एगे अहेसत्तमाए होज्जा। अथवा एकः रत्नप्रभायाम् एकः अहवा एगे रयणप्पभाए एगे शर्कराप्रभायां त्रयः वालुकाप्रभायां भवन्ति, सक्करप्पभाए तिण्णि वालुयप्पभाए। एवं यावत् अथवा एकः रत्नप्रभायाम् एकः होज्जा, एवं जाव अहवा एगे रयणप्पभाए शर्कराप्रभायां त्रयः अधःसप्तम्यां भवन्ति। एगे सक्करप्पभाए तिण्णि अहेसत्तमाए अथवा एकः रत्नप्रभायां द्वौ शर्कराप्रभायां द्वौ होज्जा। अहवा एगे रयणप्पभाए दो । वालुकाप्रभायां भवन्ति, एवं यावत् एकः सक्करप्पभाए दो वालुयप्पभाए होज्जा, रत्नप्रभायां द्वौ शर्कराप्रभायां द्वौ अधः एवं जाव अहवा एगे रयणप्पभाए दो सप्तम्यां भवन्ति। अथवा द्वौ रत्नप्रभायाम् सक्कर-प्पभाए दो अहेसत्तमाए होज्जा। एकः शर्कराप्रभायां द्वौ वालुकाप्रभायां अहवा दो रयणप्पभाए एगे सक्कर- भवन्ति, एवं यावत् अथवा द्वौ रत्नप्रभायाम् प्पभाए दो वालुयप्पभाए होज्जा, एवं एकः शर्कराप्रभायां द्वौ अधःसप्तम्यां जाव अहवा दो रयणप्पभाए एगे भवन्ति। अथवा एकः रत्नप्रभायां त्रयः सक्करप्पभाए दो अहेसत्तमाए होज्जा। शर्कराप्रभायाम् एकः वालुकाप्रभायां अहवा एगे रयणप्पभाए तिण्णि भवन्ति, एवं यावत् अथवा एकः रत्नप्रभायां सक्करप्पभाए एगे वालुय-प्पभाए त्रयः शर्कराप्रभायाम् एकः अधःसप्तम्यां होज्जा, एवं जाव अहवा एगे रयणप्पभाए भवन्ति। अथवा द्वौ रत्नप्रभायाम् द्वौ तिण्णि सक्कर-प्पभाए एगे अहेसत्तमाए शर्कराप्रभायाम् एकः वालुकाप्रभायाम् होज्जा। अहवा दो रयणप्पभाए दो भवन्ति, एवं यावत् अधःसप्तम्याम् । अथवा सक्कर-प्पभाए एगे वालुयप्पभाए त्रयः रत्नप्रभायाम् एकः शर्कराप्रभायाम् एकः होज्जा, एवं जाव अहेसत्तमाए। अहवा वालुकाप्रभायां भवन्ति, एवं यावत् अथवा श. ९ : उ. ३२ : सू. ९२ ९२. 'भंते! क्या पांच नैरयिक नैरयिकप्रवेशनक में प्रवेश करते हुए रत्नप्रभा में होते हैं? पृच्छा। गांगेय! रत्नप्रभा में होते हैं यावत् अथवा अधःसप्तमी में होते हैं। अथवा एक रत्नप्रभा में और चार शर्कराप्रभा में होते हैं यावत् अथवा एक रत्नप्रभा में और चार अधःसप्तमी में होते हैं। अथवा दो रत्नप्रभा में और तीन शर्कराप्रभा में होते है। इस प्रकार यावत् अथवा दो रत्नप्रभा में और तीन अधःसप्तमी में होते हैं। अथवा तीन रत्नप्रभा में और दो शर्कराप्रभा में होते हैं। इस प्रकार यावत् तीन रत्नप्रभा में और दो अधःसप्तमी में होते हैं। अथवा चार रत्नप्रभा में और एक शर्कराप्रभा में होता है। इस प्रकार यावत् अथवा चार रत्नप्रभा में और एक अधःसप्तमी में होता है। अथवा एक शर्कराप्रभा में और चार वालुकाप्रभा में होते हैं। इस प्रकार जैसे रत्नप्रभा से ऊर्ध्ववर्ती पृथ्वियों के साथ विकल्पना की गई है, वैसे ही शर्कराप्रभा से ऊर्ध्ववर्ती पृथ्वियों के साथ विकल्पना करनी चाहिए यावत् अथवा चार शर्कराप्रभा में और एक अधःसप्तमी में होता है। इस प्रकार प्रत्येक ऊर्ध्ववर्ती पृथ्वियों के साथ यह विकल्पना करनी चाहिए यावत् अथवा चार तमा में और एक अधःसप्तमी में होता है। अथवा एक रत्नप्रभा में, एक शर्कराप्रभा में और तीन वालुकाप्रभा में होते हैं। इस प्रकार यावत् अथवा एक रत्नप्रभा में, एक शर्कराप्रभा में और तीन अधःसप्तमी में होते हैं। अथवा एक रत्नप्रभा में, दो शर्कराप्रभा में और दो वालुकाप्रभा में होते है। इस प्रकार यावत् एक रत्नप्रभा में, दो शर्कराप्रभा में और दो अधःसप्तमी में होते हैं। अथवा दो रत्नप्रभा में, एक शर्कराप्रभा में और दो वालुकाप्रभा में होते हैं। इस प्रकार यावत् अथवा दो रत्नप्रभा में, एक शर्कराप्रभा में और दो अधःसप्तमी में होते हैं। अथवा एक रत्नप्रभा में, तीन शर्कराप्रभा में और एक वालुकाप्रभा में होता है। इस प्रकार यावत् अथवा एक रत्नप्रभा में, तीन शर्कराप्रभा में और एक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003595
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages600
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size15 MB
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