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________________ २३२ भगवई श. ९ : उ. ३२ : सू. ९१ ९१. चत्तारि भंते! नेरझ्या नेरइयपवे. चत्वारः भदन्त! नैरयिकाः नैरयिक- सणएणं पविसमाणा किं रयणप्प-भाए प्रवेशनकेन प्रविशन्तः किं रत्नप्रभायां होज्जा?-पुच्छा। भवन्ति?-पृच्छा। गंगेया! रयणप्पभाए वा होज्जा जाव गाङ्गेय! रत्नप्रभायां वा भवन्ति यावत् अहेसत्तमाए वा होज्जा। अधःसप्तम्यां वा भवन्ति। अहवा एगे रयणप्पभाए तिण्णि अथवा एकः रत्नप्रभायां त्रयः शर्कराप्रभायां सक्करप्पभाए होज्जा, अहवा एगे भवन्ति, अथवा एकः रत्नप्रभायां त्रयः रयणप्पभाए तिण्णि वालुयप्पभाए वालुकाप्रभायां भवन्ति. एवं यावत् अथवा होज्जा, एवं जाव अहवा एगे रयणप्पभाए एकः रत्नप्रभायां त्रयः अधःसप्तम्यां तिण्णि अहेसत्तमाए होज्जा। अहवा दो। भवन्ति। अथवा द्वौ रत्नप्रभायां द्वौ रयणप्पभाए दो सक्करप्पभाए होज्जा, शर्कराप्रभायां भवतः, एवं यावत् अथवा द्वौ एवं जाव अहवा दो रयणप्पभाए दो रत्नप्रभायां द्वौ अधःसप्तम्यां भवतः। अथवा अहेसत्तमाए होज्जा। अहवा तिण्णि त्रयः रत्नप्रभायाम् एकः शर्कराप्रभायां रयणप्पभाए एगे सक्करप्पभाए होज्जा, भवन्ति, एवं यावत् अथवा त्रयः रत्नप्रभायां एवं जाव अहवा तिण्णि रयणप्पभाए एगे एकः अधःसप्सम्यां भवन्ति। अथवा एकः अहेसत्तमाए होज्जा। अहवा एगे शर्कराप्रभायां त्रयः वालुकाप्रभायां भवन्ति, सक्करप्पभाए तिण्णि वालुयप्पभाए एवं यथैव रत्नप्रभायाम् उपरितनैः समं होज्जा, एवं जहेव रयणप्पभाए चारितं तथा शर्कराप्रभायाम् अपि उपरितनैः उवरिमाहिं समं चारियं तहा समं चारयितव्यम्, एवम् एकैकया समं सक्करप्पभाए वि उवरिमाहिं समं चारयितव्यं यावत् अथवा त्रयः तमायाम चारेयव्वं, एवं एक्केक्काए समं एकः अधःसप्तम्यां भवन्ति। चारेयव्वं जाव अहवा तिण्णि तमाए एगे अहेसत्तमाए होज्जा॥ ९१.'भंते! चार नैरयिक नैरयिकप्रवेशनक में प्रवेश करते हुए क्या रत्नप्रभा में होते हैं? पृच्छा । गांगेय! रत्नप्रभा में होते हैं यावत् अथवा अधःसप्तमी में होते हैं। अथवा एक रत्नप्रभा में और तीन शर्कराप्रभा में होते हैं। अथवा एक रत्नप्रभा में और तीन वालुकाप्रभा में होते हैं। इस प्रकार यावत् अथवा एक रत्नप्रभा में और तीन अधःसप्तमी में होते हैं। अथवा दो रत्नप्रभा में और दो शर्कराप्रभा में होते हैं। इस प्रकार यावत् अथवा दो रत्नप्रभा में और दो अधःसप्तमी में होते हैं। अथवा तीन रत्नप्रभा में और एक शर्कराप्रभा में होता है। इस प्रकार यावत् तीन रत्नप्रभा में और एक अधःसप्तमी में होता है। अथवा एक शर्कराप्रभा में और तीन वालुकाप्रभा में होते हैं। इस प्रकार जैसे रत्नप्रभा से ऊर्ध्ववर्ती पृथ्वियों के साथ विकल्पना की, वैसे ही शर्कराप्रभा से ऊर्ध्ववर्ती पृथ्वियों के साथ विकल्पना करनी चाहिए। इस प्रकार प्रत्येक पृथ्वी के साथ विकल्पना करनी चाहिए यावत् अथवा तीन तमा में और एक अधःसप्तमी में होता है। अहवा एगे रयणप्पभाए एगे अथवा एकः रत्नप्रभायाम् एकः सक्करप्पभाए दो वालुयप्पभाए होज्जा, शर्कराप्रभायां द्वौ वालुकाप्रभायां भवन्ति, अहवा एगे रयणप्पभाए एगे अथवा एकः रत्नप्रभायाम् एकः । सक्करप्पभाए दो पंकप्पभाए होज्जा, शर्कराप्रभायां द्वौ पङ्कप्रभायां भवन्ति, एवं एवं जाव एगे रयणप्पभाए एगे यावत् एकः रत्नप्रभायाम् एकः शर्कराप्रभायां । सक्करप्पभाए दो अहेसत्तमाए होज्जा। द्वौ अधःसप्तम्यां भवन्ति। अथवा एकः अहवा एगे रयणप्पभाए दो रत्नप्रभायां द्वौ शर्कराप्रभायाम् एकः सक्करप्पभाए एगे वालुयप्पभाए वालुकाप्रभायां भवन्ति, एवं यावत् अथवा होज्जा, एवं जाव अहवा एगे रयणप्पभाए एकः रत्नप्रभायां द्वौ शर्कराप्रभायाम् एकः दो सक्करप्पभाए एगे अहेसत्तमाए अधःसप्तम्यां भवन्ति। अथवा द्वौ होज्जा। अहवा दो रयणप्पभाए एगे रत्नप्रभायाम् एकः शर्कराप्रभायाम् एकः सक्करप्पभाए एगे वालुयप्पभाए वालुकाप्रभायां भवन्ति, एवं यावत् अथवा होज्जा, एवं जाव अहवा दो रयणप्पभाए द्वौ रत्नप्रभायाम् एकः शर्कराप्रभायाम् एकः एगे सक्करप्पभाए एगे अहेसतमाए अधःसप्तम्यां भवन्ति। अथवा एकः होज्जा। अहवा एगे रयणप्पभाए एगे रत्नप्रभायाम् एकः वालुकाप्रभायां द्वौ वालुयप्पभाए दो पंकप्पभाए होज्जा जाव पङ्कप्रभायाम् भवन्ति यावत् अथवा एकः अथवा एक रत्नप्रभा में, एक शर्कराप्रभा में और दो वालुकाप्रभा में होते हैं अथवा एक रत्नप्रभा में, एक शर्कराप्रभा में और दो पंकप्रभा में होते हैं। इस प्रकार यावत् एक रत्नप्रभा में, एक शर्कराप्रभा में और दो अधःसप्तमी में होते हैं। अथवा एक रत्नप्रभा में, दो शर्कराप्रभा में और एक बालुकाप्रभा में होता है। इस प्रकार यावत् अथवा एक रत्नप्रभा में, दो शर्कराप्रभा में और एक अधःसप्तमी में होता है। अथवा दो रत्नप्रभा में, एक शर्कराप्रभा में और एक वालुकाप्रभा में होता है। इस प्रकार यावत् अथवा दो रत्नप्रभा में, एक शर्कराप्रभा में और एक अधःसप्तमी में होता है। अथवा एक रत्नप्रभा में, एक वालुकाप्रभा में और दो पंकप्रभा में होते हैं। यावत् अथवा एक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003595
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages600
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size15 MB
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