SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 251
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भगवई २२९ वालुयप्पभाए होज्जा जाव अहवा एगे वालुकाप्रभायां भवति यावत् अथवा एकः सक्करप्पभाए एगे अहेसत्तमाए होज्जा। शर्कराप्रभायाम् एकः वालुका-प्रभायां अहवा एगे वालुयप्पभाए एगे पंकप्पभाए भवति। यावत् अथवा एकः शर्करा-प्रभायाम् होज्जा, एवं जाव अहवा एगे एकः अधःसप्सम्यां भवति। अथवा एकः वालुयप्पभाए एगे अहेसत्तमाए होज्जा। वालुकाप्रभायाम् एकः पंकप्रभायां भवति, एवं एक्केका पुढवी छड्डेयव्वा जाव एवं यावत् अथवा एकः वालुका-प्रभायाम् अहवा एगे तमाए एगे अहेसत्तमाए एकः अधःसप्तम्यां भवति। एवम् एकैका होज्जा॥ पृथिवी छर्दितव्या यावत् अथवा एकः तमायाम् एकः अधःसप्तम्यां भवति। श.९ : उ. ३२ : सू. ८९-९० शर्कराप्रभा में और एक वालुकाप्रभा में होता है यावत् अथवा एक शर्कराप्रभा में और एक अधःसप्तमी में होता है अथवा एक वालुकाप्रभा में और एक पंकप्रभा में होता है, इस प्रकार यावत् अथवा एक वालुकाप्रभा में और एक अधःसप्तमी में होता है। इस प्रकार एक-एक पृथ्वी को छोड़ देना चाहिए यावत अथवा एक तमा में और एक अधःसप्तमी में होता हैं। ९०. तिण्णि भंते! नेरइया नेरइय- त्रयः भदन्त! नैरयिकाः नैरयिकप्रवेशनकेन ९०. भंते! तीन नैरयिक नैरयिकप्रवेशनक में पवेसणएणं पविसमाणा किं प्रविशन्तः किं रत्नप्रभायां भवन्ति यावत् प्रवेश करते हुए क्या रत्नप्रभा में होते हैं रयणप्पभाए होज्जा जाव अहेसत्तमाए अधःसप्तम्यां भवन्ति? यावत् अधःसप्तमी में होते हैं? होज्जा? गंगेया! रयणप्पभाए वा होज्जा जाव गाङ्गेय! रत्नप्रभायां वा भवन्ति यावत् गांगेय! रत्नप्रभा में होते हैं यावत् अथवा अहेसत्तमाएवा होज्जा। अधःसप्तम्यां वा भवन्ति। अधःससमी में होते हैं। अहवा एगे रयणप्पभाए दो सक्कर- अथवा एकः रत्नप्रभायां द्वौ शर्कराप्रभायां अथवा एक रत्नप्रभा में और दो शर्कराप्पभाए होज्जा जाव अहवा एगे भवतः यावत् अथवा एकः रत्नप्रभायां द्वौ प्रभा में होते हैं यावत् अथवा एक रत्नप्रभा रयणप्पभाए दो अहेसत्तमाए होज्जा। अधःसप्तम्यां भवतः। में और दो अधःसप्तमी में होते हैं। अहवा दो रयणप्पभाए एगे सक्कर- अथवा द्वौ रत्नप्रभायाम् एकः शर्कराप्रभायाम् अथवा दो रत्नप्रभा में और एक शर्कराप्रभा प्पभाए होज्जा जाव अहवा दो भवति यावत् द्वौ रत्नप्रभायाम् एकः में होता है यावत् अथवा दो रत्नप्रभा में रयणप्पभाए एगे अहेसत्तमाए होज्जा। अधःसप्तम्यां भवति। और एक अधःसप्तमी में होता है। अहवा एगे सक्करप्पभाए दो अथवा एकः शर्कराप्रभायाम् द्वौ वालुका- अथवा एक शर्कराप्रभा में और दो वालुयप्पभाए होज्जा जाव अहवा एगे। प्रभायां भवतः यावत् एकः शर्कराप्रभायां द्वौ वालुकाप्रभा में होते हैं यावत् अथवा एक सक्करप्पभाए दो अहेसत्तमाए होज्जा। अधःसप्तम्यां भवतः। शर्कराप्रभा में और दो अधःसप्तमी में होते हैं। अवा दो सक्करप्पभाए एगे अथवा द्वौ शर्कराप्रभायाम् एकः वालुकावालुयप्पभाए होज्जा जाव अहवा दो प्रभायां भवति यावत् अथवा द्वौ शर्करा- सक्कर-प्पभाए एगे अहेसत्तमाए प्रभायाम् एकः अधःसप्तम्यां भवति, एवं होज्जा, एवं जहा सक्करप्पभाए यथा शर्कराप्रभायां वक्तव्यता भणिता, तथा वत्तव्वया भणिया, तहा सव्वपुढवीणं सर्वपृथिवीनां भणितव्यं यावत् अथवा द्वौ भाणियव्वं जाव अहवा दो तमाए एगे तमायाम् एकः अधःसप्सम्यां भवति। अहेसत्तमाए होज्जा॥ अहवा एगे रयणप्पभाए एगे। अथवा एकः रत्नप्रभायाम् एकः शर्करासक्करप्पभाए एगे वालुयप्पभाए प्रभायाम् एकः वालुकाप्रभायां भवन्ति, होज्जा, अहवा एगे रयणप्पभाए एगे अथवा एकः रत्नप्रभायाम् एकः शर्करासक्करप्पभाए एगे पंकप्पभाए होज्जा प्रभायाम् एकः पङ्कप्रभायां भवन्ति यावत् जाव अहवा एगे रयणप्पभाए एगे अथवा एकः रत्नप्रभायाम् एकः शर्करासक्करप्पभाए एगे अहेसत्तमाए होज्जा। प्रभायाम् एकः अधःसप्तम्यां भवन्ति। अहवा एगे रयणप्पभाए एगे अथवा एकः रत्नप्रभायाम् एकः वालुयप्पभाए एगे पंकप्पभाए होज्जा, वालुकाप्रभायाम् एकः पंकप्रभायां भवन्ति, अहवा एगे रयणप्पभाए एगे अथवा एकः रत्न-प्रभायाम् एकः वालुकावालुयप्पभाए एगे धूमप्पभाए होज्जा, एवं प्रभायाम् एकः धूमप्रभायां भवन्ति, एवं जाव अहवा एगे रयणप्पभाए एगे यावत् अथवा एकः रत्नप्रभायां एकः वालुका- अथवा दो शर्कराप्रभा में और एक वालुका प्रभा में होता है, यावत् अथवा दो शर्करा प्रभा में और एक अधःसप्तमी में होता है। इस प्रकार जैसे शर्कराप्रभा की वक्तव्यता है, वैसे ही सब पृथ्वियों की वक्तव्यता यावत् अथवा दो तमा में और एक अधःसप्तमी में होता है। अथवा एक रत्नप्रभा में, एक शर्कराप्रभा में और एक वालुकाप्रभा में होता है अथवा एक रत्नप्रभा में, एक शर्कराप्रभा में और एक पंकप्रभा में होता है, यावत् अथवा एक रत्नप्रभा में, एक शर्कराप्रभा में और एक अधःसप्तमी में होता है। अथवा एक रत्नप्रभा में, एक वालुकाप्रभा में और एक पंकप्रभा में होता है अथवा एक रत्नप्रभा में, एक वालुकाप्रभा में और एक धूमप्रभा में होता है, इस प्रकार यावत् अथवा एक रत्नप्रभा में, एक वालुकाप्रभा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003595
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages600
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy