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________________ बत्तीसइमो उद्देसो : बत्तीसवां उद्देशक मूल संस्कृत छाया हिन्दी अनुवाद पासावच्चिज्जगंगेय-पसिण-पदं ७७. तेणं कालेणं तेणं समएणं वाणियग्गामे नाम नयरे होत्थावण्णओ। दूतिपलासए चेइए। सामी समोसढे। परिसा निग्गया। धम्मो कहिओ। परिसा पडिगया। पापित्यीयगाङ्गेय-प्रश्न-पदम् पापित्यीय गांगेय प्रश्न पद तस्मिन् काले तस्मिन् समये वाणिज्यग्रामः ७७. उस काल उस समय वणिकग्राम नाम नगरम् आसीत्-वर्णकः। नामक नगर था-वर्णक। दूतिपलाशक दूतिपलाशकः चैत्यः। स्वामी समवसृतः। चैत्य। भगवान महावीर आए। परिषद् ने पर्षत् निर्गता। धर्मः कथितः। पर्षत नगर से निर्गमन किया। भगवान ने धर्म प्रतिगता। कहा। परिषद् वापस नगर में चली गई। प ७८. तेणं कालेणं तेणं समएणं पासा- तस्मिन् काले तस्मिन् समये पापित्यीयः ७८. 'उस काल उस समय पापियाय वच्चिज्जे गंगेए नाम अणगारे जेणेव । गाङ्गेयः नाम अनगारः यत्रैव श्रमणः भगवान् गांगेय नामक अनगार, जहां श्रमण समणे भगवं महावीरे तेणेव उवा- महावीरः तत्रैव उपागच्छति, उपागम्य भगवान् महावीर हैं, वहां आते हैं, वहां गच्छइ, उवागच्छित्ता समणस्स श्रमणस्य भगवतः महावीरस्य अदूरसामन्तः आकर श्रमण भगवान महावीर के न अति भगवओ महावीरस्स अदूरसासंते स्थित्वा श्रमणं भगवन्तं महावीरं एवम् दूर और न अति निकट स्थित होकर ठिच्चा समणं भगवं महावीरं एवं अवादीत श्रमण भगवान महावीर से इस प्रकार वदासी बोले भाष्य १. सूत्र-७८ पावपित्यीय गांगेय द्रष्टव्य भ.५/२५४-२५६ का भाष्य। संतर-निरंतर-उववज्जणादि -पदं सान्तर-निरन्तर-उपपदनादि पदम् ७९. संतरं भंते! नेरइया उववज्जति? सान्तरं भदन्त! नैरयिकाः उपपद्यन्ते? निरंतरं नेरइया उववज्जंति? निरन्तरं नैरयिकाः उपपद्यन्ते? गंगेया! संतरं पि नेरइया उववज्जति, गाङ्गेय! सान्तरमपि नैरयिकाः उपपद्यन्ते, निरंतर पिनेरइया उववति ॥ निरन्तरमपि नैरयिकाः उपपद्यन्ते। सांतर-निरन्तर उपपन्न आदि पद ७९. 'भंते! नैरयिक अंतर-सहित उपपन्न होते हैं? निरन्तर उपपन्न होते हैं? गांगेय! नैरयिक अंतर-सहित भी उपपन्न होते हैं और निरन्तर भी उपपन्न होते हैं। ८०. भंते! असुरकुमार अंतर-सहित उपपन्न होते हैं? निरंतर उपपन्न होते हैं? ८०. संतरं भंते! असुरकुमारा उवव. सान्तरं भदन्त! असुरकुमाराः उपपद्यन्ते, ज्जंति? निरंतरं असुरकुमारा निरन्तरम् असुरकुमाराः उपपद्यन्ते? उववज्जति? गंगेया! संतरं पि असुरकुमारा गाङ्गेय! सान्तरमपि असुरकुमाराः उपपद्यउववज्जंति, निरंतरं पि असुर-कुमारा न्ते, निरन्तरमपि असुरकुमाराः उपपद्यन्ते। उववज्जति। एवं जाव थणियकुमारा॥ एवं यावत् स्तनितकुमाराः। गांगेय! असुरकुमार अंतर सहित भी उपपन्न होते हैं और निरन्तर भी उपपन्न होते हैं। इस प्रकार यावत् स्तनितकुमार की वक्तव्यता। For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.003595
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages600
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size15 MB
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