________________
भगवई
२२३
श.९ : उ.३१ : सू. ६५-६८
गोयमा! नो उवसंतकसाई होज्जा, गौतम! नो उपशान्तकषायी भवति, क्षीणखीणकसाई होज्जा।
कषायी भवति। जइ सकसाई होज्जा से णं भंते! कतिसु यदि सकषायी भवति स भदन्त! कतिषु कसाएसु होज्जा?
कषायेषु भवति? गोयमा! चउसु वा तिसु वा दोसु वा गौतम! चतुषु वा त्रिषु वा द्वयोः वा एकस्मिन् एक्क-म्मि वा होज्जा। चउसु होमाणे वा भवति। चतुर्षु भवन चतुर्षु-संज्वलनचउसु-संजलणकोह-माण-माया- क्रोध-मान-माया-लोभेषु भवति, त्रिषु भवन लोभेसु होज्जा, तिसु होमाणे त्रिषु-संज्वलनमान-माया-लोभेषु भवति, तिसु-संजलणमाण - माया - लोभेसु द्वयोः भवन द्वयोः संज्वलनमाया-लोभयोः होज्जा, दोसु होमाणे दोसु-संजलण- भवति. एकस्मिन् भवन् एकस्मिन्माया-लोभेसु होज्जा, एगम्मि होमाणे संज्वलन-लोभे भवति। एगम्मि-संजलण-लोभे होज्जा।
गौतम! उपशांत कषाय वाला नहीं होता। क्षीण कषाय वाला होता है। भंते! यदि कषाय सहित होता है तो कितने कषायों वाला होता है? गौतम! चार. तीन, दो अथवा एक कषाय वाला होता है। चार कषाय वाला होने पर चार संज्वलन-क्रोध, मान, माया और लोभ वाला होता है। तीन कषाय वाला होने पर तीन संज्वलन-मान, माया और लोभ वाला होता है। दो कषाय वाला होने पर दो संज्वलन-माया और लोभ वाला होता है। एक कषाय वाला होने पर एक संज्वलन-लोभ वाला होता है।
भाष्य
१. सूत्र ६५
___ माया के क्षीण होने पर एक कषाय शेष रहता है। इन चारों विकल्पों में संज्वलन क्रोध के क्षीण होने पर तीन कषाय, संज्वलन क्रोध अवधिज्ञान की उत्पत्ति हो सकती है। और मान के क्षीण होने पर दो कषाय तथा संज्वलन क्रोध, मान और
६६. भंते! उसमें कितने अध्यवसान प्रज्ञप्त
६६. तस्स णं भंते ! केवतिया अज्झ- तस्य भदन्त! कियन्ति अध्यवसानानि वसाणा पण्णत्ता?
प्रज्ञप्लानि? गोयमा! असंखेज्जा अज्झवसाणा । गौतम! असंख्येयानि अध्यवसानानि पण्णत्ता॥
प्रज्ञप्लानि?
गौतम! असंख्येय अध्यवसान प्रज्ञप्स हैं।
६७. ते णं भंते! किं पसत्था?
अप्पसत्था? गोयमा! पसत्था, नो अप्पसत्था ।।
तानि भदन्त! किं प्रशस्तानि? अप्रशस्तानि? ६७. भंते! वे अध्यवसान प्रशस्त होते हैं
अथवा अप्रशस्त? गौतम! प्रशस्तानि. नो अप्रशस्तानि। गौतम! प्रशस्त होते हैं, अप्रशस्त नहीं
होते।
६८. से णं भंते! तेहिं पसत्थेहिं अज्झव- स भदन्त! तैः प्रशस्तैः अध्यवसानैः ६८. भंते! वह श्रुत्वा अवधिज्ञानी उन साणेहिं वट्टमाणेहिं अणंतेहिं नेरइय- वर्तमानैः अनन्तेभ्यः नैरयिकभवग्रहणेभ्यः वर्तमान प्रशस्त अध्यवसानों के द्वारा भवग्गहणेहिंतो अप्पाणं विसंजोएइ, आत्मानं विसंयोजयति, अनन्तेभ्यः अनन्त नैरयिक जन्मों (भवग्रहण) से अणंतेहिं तिरिक्खजोणियभवग्गहणे- तिर्यगयोनिक-भवग्रहणेभ्यः आत्मानं अपने आपको विसंयुक्त कर होता है, हिंतो अप्पाणं विसंजोएइ, अणंतेहिं विसंयोजयति, अनन्तेभ्यः देवभवग्रहणेभ्यः अनन्त तिर्यक जन्मों से अपने आपको मणुस्सभवग्गहणेहितो अप्पाणं आत्मानं विसंयोजयति, अनन्तेभ्यः विसंयुक्त कर लेता है, अनंत मनुष्य जन्मों विसंजोएइ, अणंतेहिं देवभवग्गहणेहिंतो देवभवग्रहणेभ्यः आत्मानं विसंयोजयति। या से अपने आपको विसंयुक्त कर लेता है. अप्पाणं विसंजोएइ। जाओ वि य से अपि च तस्य इमाः नैरयिक-तिर्यग्योनिक- अनंत देव जन्मों से अपने आपको इमाओ नेरइय-तिरिक्ख-जोणिय- मनुष्य-देवगतिनाम्न्यः चतस्रः उत्तर- विसंयुक्त कर लेता है। जो ये नैरयिक, मणुस्स-देवगतिनामाओ चत्तारि प्रकृतयः तासां च औपग्रहिके अनन्तानु- तिर्यकयोनिक, मनुष्य और देव गति नाम उत्तरपगडीओ, तासिं च णं ओवग्गहिए । बंधिनः क्रोध-मान-माया लोभान क्षपयति, की चार उत्तर प्रकृतियां हैं, उनके अणंताणुबंधी कोह-माण-माया-लोभे । क्षपयित्वा अप्रत्याख्यानकषायान् क्रोध- औपग्रहिक अनन्तानुबंधी-क्रोध, मान, खवेइ, खवेत्ता अपच्चक्खाणकसाए मान-माया-लोभान् क्षपयति क्षपयित्वा माया और लोभ को क्षीण करता है। उसे कोह-माण-माया-लोभे खवेइ, खवेत्ता प्रत्याख्याना-वरणान् क्रोध-मान-माया- क्षीण कर अप्रत्याख्यानावरण कषायपच्चक्खाणावरणे कोह-माण-माया- लोभान् क्षपयति, क्षपयित्वा संज्वलान क्रोध, मान, माया और लोभ को क्षीण लोभे खवेइ, खवेत्ता संजलणे कोह- क्रोध-मान-माया-लोभान्क्ष पयति, करता है। उसे क्षीण कर प्रत्याख्या
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org