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भगवई
श.९: उ. ३१ : सू. ५१-५४ उपासक, केवली की उपासिका, तत्पाक्षिक, तत्पाक्षिक के श्रावक, तत्पाक्षिक की श्राविका, तत्पाक्षिक के उपासक, तत्पाक्षिक की उपासिका से सुनकर केवली प्रज्ञप्त धर्म का ज्ञान प्राप्त कर सकता है?
वा, केवलि-उवासगस्स वा, केवलि- केवलि-उपासकस्य वा, केवलिउवा-सियाए वा, तप्पक्खियस्स वा, उपासिकायाः वा, तत्पाक्षिकस्य वा, तप्पक्खियसावगस्स वा, तप्प- तत्पाक्षिकश्रावकस्य वा, तत्पाक्षिकक्खियसावियाए वा, तप्पक्खिय-उव- श्राविकायाः वा . तत्पाक्षिक- उपासकस्य सिगस्स वा, तप्पक्खिय-उवासियाए वा, तत्पाक्षिक-उपासिकायाः वा केवलि वा केवलिपण्णत्तं धम्मं लभेज्ज प्रज्ञप्तं धर्मं लभेत श्रवणाय? सवणयाए? गोयम! सोच्चा ण केवलिस्स वा जाव गौतम! श्रुत्वा केवलिनः वा यावत् तप्पक्खियउवासियाए वा अत्थेगतिए तत्पाक्षिक-उपासिकायाः वा अस्त्येककः केवलिपण्णत्तं धम्मं लभेज्ज सवणयाए, केवलिप्रज्ञप्तं धर्मं लभते श्रवणाय, अत्थेगतिए केवलिपण्णत्तं धम्म नो अस्त्येककः केवलिप्रज्ञप्तं धर्मं नो लभेत लभेज्ज सवणयाए॥
श्रवणाय।
गौतम! कोई पुरुष केवली यावत् तत्पाक्षिक की उपासिका से सुनकर केवली प्रज्ञप्त धर्म का ज्ञान प्राप्त कर सकता है और कोई नहीं कर सकता।
५३. से केणद्वेणं भंते! एवं वुच्चइ-सोच्चा णं जाव नो लभेज्ज सवणयाए?
तत् केनार्थेन भदन्त! एवम् उच्यते-श्रुत्वा यावत् नो लभेत श्रवणाय?
गोयमा! जस्स णं नाणावरणिज्जाणं गौतम! यस्य ज्ञानावरणीयानां कर्मणां कम्माणं खओवसमे कडे भवइ से णं क्षयोपशमः कृतः भवति स श्रुत्वा सोच्चा केवलिस्स वा जाव तप्पक्खिय- केवलिप्रज्ञप्तं धर्म लभेत श्रवणाय, यस्य उवासियाए वा केवलि-पण्णत्तं धम्म ज्ञानावरणीयानां कर्मणां क्षयोपशमः नो कृतः लभेज्ज सवणयाए, जस्स णं नाणा- भवति स श्रुत्वा केवलिनः वा यावत् वरणिज्जाणं कम्माणं खओवसमे नो। तत्पाक्षिक-उपासिकायाः वा केवलिप्रज्ञप्त कडे भवइ से णं सोच्चा केवलिस्स वा धर्म नोलभेत श्रवणाय। तत् तेनार्थेन गौतम! जाव तप्पक्खियउवासियाए वा केवलि- एवम् उच्यते-श्रुत्वा यावत् नो लभेत पण्णत्तं धम्मं नो लभेज्ज सवणयाए। से । श्रवणाय। तेणद्वेणं गोयमा! एवं वुच्चइ-सोच्चा णं जाव नो लभेज्ज सवणयाए।
५३. भंते! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है-कोई पुरुष सुनकर केवली प्रज्ञप्स धर्म का ज्ञान प्राप्त कर सकता है और कोई नहीं कर सकता। गौतम! जिसके ज्ञानावरणीय कर्म का क्षयोपशम होता है, वह पुरुष केवली यावत् तत्पाक्षिक की उपासिका से सुन कर केवली प्रज्ञप्त धर्म का ज्ञान प्राप्त कर सकता है। जिसके ज्ञानावरणीय कर्म का क्षयोपशम नहीं होता, वह केवली यावत् तत्पाक्षिक की उपासिका से सुनकर केवली प्रज्ञप्त धर्म का ज्ञान प्राप्त नहीं कर सकता। गौतम! इस अपेक्षा से यह कहा जा रहा है-कोई पुरुष सुनकर केवली प्रज्ञप्त धर्म का ज्ञान प्राप्त कर सकता है और कोई नहीं कर सकता।
५४. एवं जा चेव असोच्चाए वत्तव्वया सा एवं या चैव अश्रुत्वायाः वक्तव्यता सा चैवं ५४. इस प्रकार जो अश्रुत्वा पुरुष की
चेव सोच्चाए वि भाणियव्वा, नवरं- श्रुत्वायाः अपि भवितव्या, नवरम्- वक्तव्यता है, वहीं श्रुत्वा पुरुष की अभिलावो सोच्चे त्ति, सेसं तं चेव । अभिलापः श्रुत्वेति, शेषं तच्चैव निरवशेष वक्तव्यता है, इतना विशेष है-असोच्चा निरवसेसं जाव जस्स णं मणपज्जव- यावत् यस्य मनःपर्यवज्ञानावरणीयानां के स्थान पर सोच्चा का अभिलाप नाणावरणिज्जाणं कम्माणं खओवसमे कर्मणां क्षयोपशमः कृतः भवति, यस्य (पाठोच्चारण) है, शेष वही पूर्णरूप से कडे भवइ, जस्स णं केवलनाणा- केवलज्ञानावरणीयानां कर्मणां क्षयः कृतः वक्तव्य है यावत् जिसके मनःपर्यववरणिज्जाणं कम्माणं खए कडे भवइ से भवति स श्रुत्वा केवलिनः वा यावत् ज्ञानावरणीय कर्म का क्षयोपशम होता है, णं सोच्चा केवलिस्स वा जाव तत्पाक्षिक-उपासिकायाः वा केवलिप्रज्ञसं जिसके केवलज्ञानावरण का क्षय होता है, तप्पक्खियउवासियाए वा केवलि- धर्मं लभेत श्रवणाय, केवलं बोधिं बुध्येत वह पुरुष केवली यावत् तत्पाक्षिक की पण्णत्तं धम्म लभेज्ज सवणयाए, केवलं यावत् केवलज्ञानम् उत्पादयेत्।
उपासिका से सुनकर केवली प्रज्ञप्त धर्म बोहिं बुज्झेज्जा जाव केवलनाणं
का ज्ञान प्राप्त कर सकता है, केवल बोधि उप्पाडेज्जा॥
को प्राप्त कर सकता है यावत् केवलज्ञान उत्पन्न कर सकता है।
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