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________________ श. ९ : उ. ३१ : सू. ३६-३९ जइ सजोगी होज्जा, किं मणजोगी होज्जा ? वइजोगी होज्जा ? काय - जोगी होज्जा ? गोमा! मणजोगी वा होज्जा, वइजोगी वा होज्जा, कायजोगी वा होज्जा ॥ गोयमा! सागारोवउत्ते वा होज्जा, अणगारोवउत्ते वा होज्जा ॥ १. सूत्र ३६ एक समय में एक योग की प्रवृत्ति होती है इसलिए मन, वचन और काययोग को वैकल्पिक रूप में स्वीकार किया गया है। अभयदेवसूरि ने विकल्प की व्याख्या एक योग की प्रधानता की अपेक्षा से की है । " याचार्य ने इसी मत की पुष्टि की है। तात्पर्यार्थ यह है-स्थूल व्यवहार में तीनों योगों की प्रवृत्ति एक साथ दिखाई देती है। सूक्ष्म ३७. से णं भंते! किं सागारोवउत्ते होज्जा ? अणागारोवउत्ते होज्जा? १. सूत्र ३८ द्रष्टव्य भगवती १ / ९ का भाष्य । ३९. से णं भंते! कयरम्मि संठाणे होज्जा ? २१४ यदि सयोगी भवति, किं मनोयोगी भवति, वाग्योगी भवति, काययोगी भवति ? गोयमा ! छण्हं संठाणाणं अण्णयरे संठाणे होज्जा ॥ गौतम! मनोयोगी वा भवति, वाग्योगी वा भवति, काययोगी वा भवति । भाष्य १. सूत्र ३७ सब लब्धियां साकारोपयोग के क्षण में ही होती हैं-इस आगमिक नियम के आधार पर इस विधि का निर्देश किया गया है कि अवधिज्ञान की उपलब्धि मतिज्ञान अथवा श्रुतज्ञान के उपयोग के क्षण में ही होती है।" जिनभद्रगणि ने इस सिद्धान्त का समर्थन किया है-मुक्त होने की लब्धि भी साकार उपयोग के क्षण में ३८. से णं भंते! कयरम्मि संघयणे होज्जा ? गोयमा ! वइरोसभनारायसंघयणे होज्जा । Jain Education International स भदन्त ! किं साकारोपयुक्तः भवति अनाकारोपयुक्तः भवति ? दृष्टि का निर्णय यह है-प्रत्येक योग का प्रवर्तक अध्यवसाय स्वतंत्र होता है। एक समय में दो क्रिया हो सकती है - यह व्यवहार नय का प्रतिपादन है। प्रवर्तक अध्यवसाय एक साथ दो नहीं हो सकते। ' सिद्धांत चक्रवर्ती नेमीचन्द्र के अनुसार एक समय में एक ही योग हो सकता है, दो अथवा तीन नहीं हो सकते।* गौतम! साकारोपयुक्तः वा भवति, अनाकारोपयुक्तः वा भवति । भाष्य होती है।' सब 'लब्धियां साकार उपयोग में ही होती हैं- इस नियम का अपवाद सूत्र भी है। परिणाम परिवर्द्धमान होता है, उस अवस्था में सब उपलब्धियां साकार उपयोग में होती हैं। परिणाम अवस्थित होता है उस अवस्था में अनाकार उपयोग में सामायिक आदि कुछ लब्धियां हो सकती हैं।" अभयदेवसूरि ने भी इस आशय का उल्लेख किया है। " स भदन्त ! कतरे संघयने भवति ? गौतम! वज्रऋषभनाराचसंघयने भवति । १. भ. वृ. ९ / ३६ - मनजोगीत्यादि चैकतरयोगप्राधान्यापेक्षया अवगंतव्यम् । २. भ. जो. ३/१७२/५३/ भाष्य स भदन्त ! कतरे संस्थाने भवति ? गौतम! षण्णां संस्थानानाम् अन्यतरे संस्थाने भवति । ३. वि. भा. गा. ३६३ ४. गो. जी. गा. २४२ जोगे वि एक्काले एक्केण य होदि नियमेण । ५. भ. वृ. ९/३०-तस्य हि विभंगज्ञानान्निवर्तमानस्योपयोगद्वयेपि वर्तमानस्य सम्यक्त्वावधिज्ञानप्रतिपत्तिरस्वीति । भगवई यदि वह योग सहित होता है, तो मनोयोगी होता है? वचनयोगी होती है? काययोगी होता है? गौतम! मनोयोगी भी होता है, वचनयोगी भी होता है, काययोगी भी होता है। ३७. 'भंते! वह साकार- उपयोग से भी युक्त होता है? अनाकार - उपयोग से युक्त होता है? For Private & Personal Use Only गौतम! वह साकार- उपयोग से युक्त होता है, अनाकार उपयोग से भी युक्त होता है। ३८. भंते! वह किस संहनन वाला होता है? गौतम! वज्रऋषभनाराच संहनन वाला होता है। ३९. भंते! वह किस संस्थान वाला होता है? गौतम ! छह संस्थानों में से किसी एक संस्थान वाला होता है। ६. वि. भा. गा. ३०८९ सव्वाओ लद्धीओ जं सागारोव ओगलाभाओ । तेणेह सिद्धलद्धी उप्पज्जइ तदुवउत्तस्स ॥ ७.वि. भा. गा. २७३२ सो किर नियमो परिवहमाणपरिणामयं पर। जोऽवडियपरिणामो लभेज्ज स लभेज्ज बीए वि ।। ८. भ. वृ. ९/३७। www.jainelibrary.org
SR No.003595
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages600
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size15 MB
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