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________________ श.९ : उ. ३१ : सू. १४-१७ भगवई २०३ असोच्चा केवलिस्स वा जाव केवलिनः वा यावत् तत्पाक्षिकतप्पक्खियउवासियाए वा केवलं मुंडे उपासिकायाः वा केवलं मुण्डः भूत्वा भवित्ता अगाराओ अणगारियं । अगारात् अनगारितां प्रव्रजेत, यस्य पव्वएज्जा, जस्स णं धम्म-तराइयाणं धर्मान्तरायिकाणं कर्मणां क्षयोपशमः नो कम्माणं खओवसमे नो कडे भवति से णं कृतः भवति सः अश्रुत्वा केवलिनः वा यावत् असोच्चा केवलिस्स वा जाव। तत्पाक्षिक-उपासिकायाः वा केवलं मुण्डः तप्पक्खिय-उवासियाए वा केवलं मुंडे भूत्वा अगारात् अनगारितां नो प्रव्रजेत्। तत् भवित्ता अगाराओ अणगारियं नो तेनार्थेन गौतम! एवम् उच्यते-अश्रुत्वा पव्वएज्जा। से तेणद्वेणं गोयमा ! एवं यावत् केवलं मुण्डः भूत्वा अगारात् बुच्चइ-असोच्चा णं जाव केवलं मुंडे अनगारितां नो प्रव्रजेत्। भवित्ता अगाराओ अणगारियं नो पव्वएज्जा। तत्पाक्षिक की उपासिका से सुने बिना मुंड होकर अगार से केवल अनगार धर्म में प्रव्रजित हो सकता है। जिसके धर्मान्तराय कर्म का क्षयोपशम नहीं होता, वह पुरुष केवली यावत तत्पाक्षिक की उपासिका से सुने बिना मुंड होकर अगार से केवल अनगार धर्म में प्रव्रजित नहीं हो सकता। गौतम! इस अपेक्षा से यह कहा जा रहा है-कोई पुरुष सुने बिना मुंड होकर अगार से केवल अनगार धर्म में प्रव्रजित हो सकता है और कोई नहीं हो सकता। १५. असोच्चा णं भंते ! केवलिस्स वा जाव तप्पक्खियउवासियाए वा केवलं बंभचेरवासं आवसेज्जा? गोयमा ! असोच्चा णं केवलिस्स वा जाव तप्पक्खियउवासियाए वा अत्थेगतिए केवलं बंभचेरवासं आवसेज्जा, अत्थेगतिए केवलं बंभचेरवासं नो आवसेज्जा॥ अश्रुत्वा भदन्त! केवलिनः वा यावत् १५. भंते! कोई पुरुष केवली यावत् तत्पाक्षिक-उपासिकायाः वा केवलं तत्पाक्षिक की उपासिका से सुने बिना ब्रह्मचर्यवासम् आवसे? केवल ब्रह्मचर्यवास में रह सकता है? गौतम! अश्रुत्वा केवलिनः वा यावत् गौतम! कोई पुरुष केवली यावत् तत्पाक्षिक-उपासिकायाः वा अस्त्येककः। तत्पाक्षिक की उपासिका से सुने बिना केवलं ब्रह्मचर्यवासम् आवसति अस्त्येककः केवल ब्रह्मचर्यवास में रह सकता है और केवलं ब्रह्मचर्यवासंनो आवसेत् । कोई नहीं रह सकता। सकता? १६. से केणटेणं भंते! एवं वुच्चइ- तत् केनार्थेन भदन्त! एवम् उच्यते-अश्रुत्वा १६. भंते! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा असोच्चा णं जाव केवलं बंभचेरवासं नो यावत् केवलं ब्रह्मचर्यवासंनो आवसेत? है-कोई पुरुष सुने बिना केवल आवसेज्जा? ब्रह्मचर्यवास में रह सकता है और कोई नहीं रह सकता? गोयमा ! जस्स णं चरित्तावरणि-ज्जाणं गौतम! यस्य चरित्रावरणीयानां कर्मणा गौतम! जिसके चरित्रावरणीय कर्म का कम्माणं खओवसमे कुडे भवइ से णं क्षयोपशमः कृतः भवति सः अश्रुत्वा क्षयोपशम होता है, वह पुरुष केवली यावत् असोच्चा केवलिस्स वा जाव केवलिनः वा यावत् तत्पाक्षिक- तत्पाक्षिक की उपासिका से सुने बिना तप्पक्खियउवासियाए वा केवलं उपासिकायाः वा केवलं ब्रह्मचर्यवासम् केवल ब्रह्मचर्यवास में रह सकता है। बंभचेवासं आवसेज्जा, जस्स णं आवसेत्, यस्य चरित्रा-वरणीयानां कर्मणां जिसके चरित्रावरणीय कर्म का क्षयोपशम चरित्तावरणिज्जाणं कम्माणं खओव- क्षयोपशमः नो कृतः भवति सः अश्रुत्वा नहीं होता, वह केवली यावत् तत्पाक्षिक समे नो कडे भवइ से णं असोच्चा केवलिनः वा यावत् तत्पाक्षिक की उपासिका से सुने बिना केवल केवलिस्स वा जाव तप्पक्खिय- उपासिकायाः वा केवलं ब्रह्मचर्यवासं नो ब्रह्मचर्यवास में नहीं रह सकता। गौतम! उवासियाए वा केवलं बंभचेरवासं नो आवसेत् तत् तेनार्थेन गौतम! एवम उच्यते- इस अपेक्षा से यह कहा जा रहा है-कोई आवसेज्जा। से तेणटेणं गोयमा ! एवं अश्रुत्वा यावत् केवलं ब्रह्मचर्यवासं नो पुरुष सुने बिना केवल ब्रह्मचर्यवास में रह वुच्चइ- असोच्चा णं जाव केवलं आवसेत्। सकता है और कोई नहीं रह सकता। बंभचेरवासंनो आवसेज्जा॥ १७. असोच्चा णं भंते ! केवलिस्स वा जाव तप्पक्खियउवासियाए वा केवलेणं संजमेणं संजमेज्जा? अश्रुत्वा भदन्त! केवलिनः वा यावत् तत्पाक्षिक-उपासिकायाः वा केवलेन संयमेन संयच्छेत्? १७. भंते! कोई पुरुष केवली यावत् तत्पाक्षिक की उपासिका से सुने बिना केवल संयम से संयमित हो सकता है? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003595
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages600
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size15 MB
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