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________________ भगवई श.९ : उ. ३१ : सू. ११-१४ २०२ ११. असोच्चा णं भंते! केवलिस्स वा अश्रुत्वा भदन्त! केवलिनः वा यावत् जाव तप्पक्खियउवासियाए वा केवलं तत्पाक्षिक-उपासिकायाः वा केवलं बोधिं बोहिं बुन्झेज्जा? बुध्येत? गोयमा! असोच्चा णं केवलिस्स वा गौतम! अश्रुत्वा केवलिनः वा यावत् जाव तप्पक्खियउवासियाए वा । तत्पाक्षिक-उपासिकायाः वा अस्त्येककः अत्थेगतिए केवलं बोहिं बुज्झेज्जा, केवलं बोधिं बुध्येत, अस्त्येककः केवलं अत्थेगतिए केवलं बोहिं नो बुज्झेज्जा॥ बोधिं नो बुध्येत। ११. भंते! क्या कोई पुरुष केवली यावत् तत्पाक्षिक की उपासिका से सुने बिना केवल बोधि को प्राप्त कर सकता है? गौतम! कोई पुरुष केवली यावत् तत्पाक्षिक की उपासिका से सुने बिना केवल बोधि को प्राप्त कर सकता है और कोई नहीं कर सकता। १२. से केणटेणं भंते! एवं वुच्चइ- असोच्चा णं जाव केवलं बोहिं नो बुज्झेज्जा? तत् केनार्थेन भदन्त! एवम् उच्यते-अश्रुत्वा यावत् केवलं बोधिं नो बुध्येत। गोयमा! जस्स णं दरिसणावरणि- गौतम! यस्य दर्शनावरणीयानां कर्मणां ज्जाणं कम्माणं खओवसमे कडे भवइसे । क्षयोपशमः कृतः भवति सः अश्रुत्वा णं असोच्चा केवलिस्स वा जाव केवलिनः वा यावत् तत्पाक्षिकतप्पक्खियउवासियाए वा केवलं बोहिं उपासिकायाः वा केवलं बोधिं बुध्येत, यस्य बुज्झज्जा, जस्स णं दरिसणा- दर्शनावरणीयानां कर्मणां क्षयोपशमः नो वरणिज्जाणं कम्माणं खओ-वसमे नो कृतः भवति सः अश्रुत्वा केवलिनः वा यावत् कडे भवइ से णं असोच्चा केवलिस्स वा तत्पाक्षिक-उपासिकायाः वा केवलंबोधिंनो जाव तप्प-क्खिउवासियाए वा केवलं बुध्येत। तत्तेनार्थेन गौतम! एवम् बोहिं नो बुज्झेज्जा। से तेणतुणं गोयमा! उच्यते-अश्रुत्वा यावत् केवलं बोधिं नो एवं वुच्चइ-असोच्चा णं जाव केवलं बुध्येत। बोहिं नो बुज्झेज्जा॥ १२. भंते! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है-कोई पुरुष सुने बिना केवल बोधि को प्राप्त कर सकता है और कोई नहीं कर सकता? गौतम! जिसके दर्शनावरणीय कर्म का क्षयोपशम होता है, वह पुरुष केवली यावत् तत्पाक्षिक की उपासिका से सुने बिना केवल बोधि को प्राप्त कर सकता है। जिसके दर्शनावरणीय कर्म का क्षयोपशम नहीं होता, वह पुरुष केवली यावत् तत्पाक्षिक की उपासिका से सुने बिना केवल बोधि को प्राप्त नहीं कर सकता। गौतम! इस अपेक्षा से यह कहा जा रहा है-कोई पुरुष सुने बिना केवल बोधि को प्राप्त कर सकता है और कोई नहीं कर सकता। १३. असोच्चा णं भंते! केवलिस्स वा अश्रुत्वा भदन्त! केवलिनः वा यावत् १३. भंते! कोई पुरुष केवली यावत् जाव तप्पक्खियउवासियाए वा केवलं तत्पाक्षिक-उपासिकायाः वा केवलं मुण्डः तत्पाक्षिक की उपासिका से सुने बिना मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं भूत्वा अगारात अनगारितां प्रव्रजेत्? मुंड होकर अगार से केवल अनगार धर्म में पव्वएज्जा? प्रव्रजित हो सकता है? गोयमा! असोच्चाणं केवलिस्स वा जाव गौतम! अश्रुत्वा केवलिनः वा यावत् गौतम! कोई पुरुष केवली यावत् तप्पक्खियउवासियाए वा अत्थे-गतिए तत्पाक्षिक-उपासिकायाः वा अस्त्येककः । तत्पाक्षिक की उपासिका से सुने बिना मुंड केवलं मुंडे भवित्ता अगाराओ केवलं मुण्डः भूत्वा अगारात् अनगारितां होकर अगार से केवल अनगार धर्म में अणगारियं पव्वएज्जा, अत्थेगतिए प्रव्रजेत्। अस्त्येककः केवलं मुण्डः भूत्वा प्रवृजित हो सकता है और कोई नहीं हो केवलं मुंडे भवित्ता अगाराओ अगारात् अनगारितां नो प्रव्रजेत्। सकता। अणगारियं नो पव्वएज्जा॥ १४. से केणटेणं भंते! एवं वुच्चइ- तत् केनार्थेन भदन्त! एवम् उच्यते-अश्रुत्वा १४. भंते! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा असोच्चा णं जाव केवलं मुंडे भवित्ता यावत् केवलं मुण्डः भूत्वा अगारात् है-कोई पुरुष सुने बिना मुंड होकर अगार अगाराओ अणगारियं नो पव्वएज्जा? अनगारितां नो प्रव्रजेत्? से केवल अनगार धर्म में प्रव्रजित हो सकता है और कोई नहीं हो सकता। गोयमा! जस्स णं धम्मंतराइयाणं गौतम! यस्य धर्मान्तरायिकाणां कर्मणां गौतम! जिसके धर्मान्तराय कर्म का कम्माणं खओवसमे कडे भवति से णं क्षयोपशमः कृतः भवति सः अश्रुत्वा क्षयोपशम होता है, वह पुरुष केवली यावत् Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003595
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages600
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size15 MB
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