SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 219
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नवमं सतं : नौवां शतक पढमो उद्देसो : पहला उद्देशक मूल संस्कृत छाया हिन्दी छाया संगहणी गाहा संग्रहणी गाथा संग्रहणी गाथा १. जंबुद्दीवे २. जोइस, १. जम्बूद्वीपः २. ज्योतिषः, नौवें शतक में चौतीस उद्देशक हैं ३०. अंतरदीवा ३१. असोच्च ३२. गंगेय। ३-३०. अंतर्वीपाः३१. अश्रुत्वा ३२. १. जम्बूद्वीप २. ज्योतिष्क ३-३० अन्तर-द्वीप ३३. कुंडग्गामे ३४. पुरिसे, गांङ्गेयः ३३. कुण्डग्रामः ३४. पुरुषः ३१. अश्रुत्वाके वली ३२. गांगेय ३३. णवमम्मि सतम्मि चोत्तीसा ॥१॥ नवमे शते चतुस्त्रिंशत् ॥१॥ कुण्डग्राम ३४. पुरुष। भगव जंबुद्दीव-पदं जम्बूद्वीप-पदम् १. तेणं कालेणं तेणं समएणं मिहिला नाम तस्मिन् काले तस्मिन् समये मिथिला नाम नगरी होत्था-वण्णओ। नगरी आसीत्-वर्णकः। मणिभद्रः चैत्यः- माणिभद्दे चेतिए-वण्णओ। सामी वर्णकः । स्वामी समवसृतः, परिषद् निर्गता समोसढे, परिसा निग्गता जाव भगवं यावत् भगवान् गौतमः पर्युपासीनः एवम् गोयमे पज्जुवासमाणे एवं वदासी-कहि । अवादीत्-कुत्र भदन्त! जम्बूद्वीप? द्वीपः? णं भंते! जंबुद्दीवे दीवे! किंसंठिए णं भंते! किं संस्थितः भदन्त! जम्बूद्वीपः द्वीपः। जंबुद्दीवे दीवे? एवं जंबुद्दीवपण्णत्ती भाणियव्वा जाव एवं जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिः भणितव्याः यावत् एवामेव सपुव्वावरेणं जंबुद्दीवे दीवे चोइस एवमेव संपूर्णापरेण जम्बूद्वीपे द्वीपे चतुर्दश सलिला-सयसहस्सा छप्पन्नं च सहस्सा सलिला-शतसहस्राः षटपञ्चाशत् च भवंतीति मक्खाया॥ सहस्राः भवन्तीति आख्याताः। जम्बूद्वीप-पद १. उस काल और उस समय में मिथिला नाम की नगरी थी-वर्णन। माणिभद्र चैत्यवर्णन । स्वामी आए। परिषद् ने नगर से निगमन किया, यावत भगवान गौतम पर्युपासना करते हुए इस प्रकार बोले-भंते जम्बूद्वीप द्वीप कहां है? भंते! जम्बूद्वीप द्वीप किस संस्थान वाला है? इस प्रकार जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति (वक्षस्कार १-६) का विषय वक्तव्य है यावत पूर्व समुद्र की ओर तथा पश्चिम समुद्र की ओर जाने वाली चौदह लाख छप्पन हजार नदियां बतलाई गई हैं। २. सेवं भंते! सेवं भंते! ति॥ तदेवं भदन्त! तदेवं भदन्त! इति। २. भंते! वह ऐसा ही है। भंते ! वह ऐसा ही है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003595
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages600
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy