SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 220
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बीओ उद्देसो : दूसरा उद्देशक मूल संस्कृत छाया हिन्दी छाया जोइस-पदं ज्योतिष-पदम् ३.रायगिहे जाव एवं वयासी-जंबुद्दीवे णं । राजगृहे यावत् एवम् अवादीत्-जम्बूद्वीपे भंते! दीवे केवइया चंदा पभासिंसु वा? भदन्त! द्वीपे कियन्तः चन्द्राः प्राभासिषत पभासेंति वा? पभासिस्संति वा? वा? प्रभासन्ते वा ? प्रभासिष्यन्ते वा? ज्योतिष-पद ३. भगवान् राजगृह नगर में आए यावत् गौतम इस प्रकार बोले-भंते! जम्बूद्वीप द्वीप में कितने चन्द्रों ने प्रभास किया? प्रभास करते हैं? प्रभास करेंगे? इस प्रकार जीवाभिगम (३/७०३) की भांति वक्तव्यता यावत् जम्बूद्वीप द्वीप में तारागण की संख्या एक लाख तैतीस हजार नौ सौ पचास क्रोडाकोड़ है।' एवं जहा जीवाभिगमे जावएगं च सयसहस्सं, तेत्तीसं खलु भवे सहस्साई। नव य सया पन्नासा, तारागणकोडिकोडीणं ॥१॥ सोभिंसु, सोभिंति, सोभिस्संति॥ एवं यथा जीवाभिगमे यावत्एकं च शतसहस्रं, त्रयस्त्रिंशत् खलु भवेत् सहस्राणि। नव च शतानि पञ्चाशत्, तारागणकोटिकोटीनाम् ॥१॥ अशोभिषत, शोभन्ते, शोभिष्यन्ते। ४. लवणे णं भंते! समुद्दे केवतिया चंदा लवणे भदन्त! समुद्रे कियन्तः चन्द्राः ४. भंते! लवण समुद्र में कितने चन्द्रों ने पभासिंसु वा? पभासेंति वा? प्राभासिषत वा? प्रभासन्ते वा? प्रभास किया? प्रभास करते हैं? प्रभास पभासिस्संति वा? प्रभासिष्यन्ते वा? करेंगे? एवं जहा जीवाभिगमे जाव ताराओ। एवं यथा जीवाभिगमे तथा ताराः। धातकी- इस प्रकार जीवाभिगम (३/७२२) की धायइसंडे, कालोदे, पुक्खरखरे, षण्डे, कालोदे, पुष्करवरे, आभ्यन्तर- भांति वक्तव्यता यावत् लवण समुद्र में अभंतरपुक्खरद्धे, मणुस्सखेत्ते-एएसु पुष्कराः, मनुष्यक्षेत्रे-एतेषु सर्वेषु यथा . तारागण की संख्या दो लाख सड़सठ सव्वेसु जहा जीवाभिगमे जाव- जीवा-भिगमे यावत् एकशशिपरिवारः, हजार नौ सौ है। धातकीखंड, कालोएगससीपरिवारो, तारागणकोडि- तारागण-कोटिकोटीनाम्। दधि, पुष्करवर द्वीप, आभ्यन्तर पुष्करार्द्ध कोडीणं॥ और मनुष्यक्षेत्र-इन सबमें जीवाभिगम (३/८३८ गाथा ३१) की भांति वक्तव्य है, यावत् एक चन्द्रमा के परिवार में तारागण की संख्या छासठ हजार नौ सौ पचहत्तर है। वा? ५. पुक्खरोदे णं भंते! समुद्दे केवतिया पुष्करोदे भदन्त! समुद्रे कियन्तः चन्द्राः ५. भंते! पुष्करोद समुद्र में कितने चन्द्रों ने चंदा पभासिंसु वा? पभासेंति वा? प्राभासिषत वा ? प्रभासन्ते वा प्रभासिष्यन्ते प्रभास किया? प्रभास करते हैं? प्रभास पभासिस्संति वा? करेंगे? एवं सव्वेसु दीव-समुद्देसु जोति-सियाण एवं सर्वेषु द्वीप-समुद्रेषु ज्योतिष्काणां इस प्रकार सब द्वीप-समुद्रों में ज्योतिष्क भाणियव्वं जाव सयंभूरमणे जाव भणितव्यं यावत् स्वयंभूरमणे यावत्- की वक्तव्यता यावत् स्वयंभूरमण में यावत् सोभिंसु वा, सोभिंति वा, सोभिस्संति अशोभिषत वा, शोभन्ते वा, शोभित हुए थे, हो रहे हैं और होंगे। वा॥ शोभिष्यन्तेवा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003595
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages600
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy