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श.९: आमुख
भगवई
गति चतुष्टय में उत्पन्न होने के अनेक कारण बतलाए गए हैं। इन कारणों का उल्लेख प्रस्तुत आगम में ही हुआ है। अन्यत्र दूसरे-दूसरे कारणों का उल्लेख है।
तेतीसवें उद्देशक में ऋषभदत्त और देवानंदा का वर्णन है। इनका वर्णन आयार-चूला और पज्जोसवणा कप्प में भी उपलब्ध है। आयार-चूला का पाठ संक्षिप्त है फिर भी उसमें गर्भ-संहरण का उल्लेख है। पज्जोसवणा कप्प में इसका विस्तार से वर्णन किया गया है। प्रस्तुत प्रकरण में महावीर के गर्भ संहरण का कोई उल्लेख नहीं है। देवानंदा के स्तन में से दूध की धारा निकलने पर महावीर ने गौतम आदि श्रमणों से कहा-देवानंदा मेरी मां है, मैं इसका आत्मज हूं।"
देवानंदा का प्रकरण गर्भ संहरण से जुड़ा हुआ है। यह श्वेताम्बर और दिगम्बर परम्परा में एक विवाद का विषय है। डॉ. हर्मन जेकोबी आदि ने इस विषय की मीमांसा की है
आयार-चूला और पर्युषणा कल्प' में गर्भ संहरण का विषय चर्चित है। देवानंदा का महावीर के पास आने का कोई उल्लेख नहीं है। प्रस्तुत शतक में गर्भ संहरण के विषय में कोई वक्तव्यता नहीं है। भगवती सूत्र में देवानंदा का प्रकरण आयार-चूला और पर्युषणा कल्प के उत्तरकाल में प्रक्षिप्त हुआ है अथवा उनसे पहले? यह अन्वेषणीय विषय है। यह अनुमान करने में कोई कठिनाई नहीं है कि रचनाकार को गर्भ संहरण की पुष्टि के लिए-देवानंदा मेरी मां है, मैं इसका आत्मज हं-इस वाक्य की संवादिता आवश्यक प्रतीति हुई है।
जमालि का प्रकरण भी श्वेताम्बर और दिगम्बर-दोनों परम्पराओं में विवाद का विषय है। दिगम्बर परम्परा महावीर के विवाह को अस्वीकार करती है इसलिए पुत्री और दामाद होने का प्रश्न ही नहीं उठता।
स्थानांग सूत्र में सात प्रवचन-निह्नवों का उल्लेख है। पहला बहुरतवाद है। उसके धर्माचार्य जमालि है। भगवती सूत्र की रचना शैली प्रश्नोत्तर शैली की है। वर्तमान स्वरूप में अनेक जीवन प्रसंग उपलब्ध हैं। इन सबके विषय में यह निर्णय करना सरल नहीं है कि इनमें कौन-सा मौलिक है और कौन-सा प्रक्षिप्त ? सात निवों में से पांच उत्तरवर्ती है। जमालि और तिष्यगुप्त महावीर के शासन काल में हुए हैं। इसलिए जमालि के अस्तित्व को अप्रामाणिक मानने का कोई कारण नहीं है। भगवती में उसका वर्णन प्राचीन है अथवा उत्तरवर्ती ? यह विषय मीमांसनीय हो सकता है।
चौतीसवें उद्देशक में अहिंसा के विषय में गंभीर चर्चा हुई है। एक मनुष्य का वध करने वाला अनेक जीवों का वध करता है किन्तु एक ऋषि का वध करने वाला अनंत जीवों का वध करता है। ये अहिंसा के अत्यंत रहस्यपूर्ण सिद्धांत है।
स्थावर जीवों के श्वास-प्रश्वास के विषय में महत्त्वपूर्ण जानकारी दी गई है। इस प्रकार प्रस्तुत शतक में चिंतन के नए नए आयाम उद्घाटित हुए हैं। इनका गंभीर अध्ययन ज्ञान कोश को समुन्द्र बना सकता है।
१. द्रष्टव्य- भ. ९/१२५-१३२ का भाष्य। २. आ.चू.१५/३-७४ ३. पज्जो . २-१९। ४. भ.९.१४०-१४८1 ५. कल्पसूत्र सू. २७)
६.आ. चू.१५/१,३,५,६। ७.ठाण ७/१४०-१४२। ८. भ.९/२४६-२५०। ९. वही, १/२५३-२५७१
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