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श. ८ : उ. १० : सू. ४९६-५००
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भगवई
४९६. जस्स णं भंते! नामं तस्स गोयं जस्स गोयं तस्स नाम?
यस्य भदन्त ! नाम तस्य गोत्रम् ?, यस्य गोत्रं तस्य नाम?
१९६. भंते! जिसके नाम है, क्या उसके गोत्र होता है? जिसके गोत्र है. क्या उसके नाम होता है? गौतम ! ये दोनों परस्पर नियमतः होते हैं।
गोयमा! दो वि एए परोप्परं नियमा अत्थि ॥
गौतम ! द्वे अपि एते परस्परं नियमम् स्तः।
यस्य भदन्त ! नाम तस्य आन्तरायिकम् ? यस्य आन्तरायिकं तस्य नाम?
४९७. जस्स णं भंते! नाम तस्स अंतराइय? जस्स अंतराइयं तस्स नामं? गोयमा! जस्स नामं तस्स अंतराइयं सिय अत्थि, सिय नस्थि: जस्स पुण अंतराइयं तस्स नामं नियम अत्थि॥
गौतम ! यस्य नाम तस्य आन्तरायिकं स्यात् अस्ति, स्यात् नास्ति, यस्य पुनः आन्तरायिकं तस्य नाम नियमम् अस्ति।
४९७. भंते! जिसके नाम है, क्या उसके
आंतरायिक होता है ? जिसके आंतरायिक है, क्या उसके नाम होता है? गौतम! जिसके नाम है, उसके आंतरायिक स्यात् होता है स्यात नहीं होता। जिसक आंतरायिक है, उसके नाम नियमतः होता
४९८. जस्स णं भंते! गोयं तस्स अंतराइयं ? जस्स अंतराइयं तस्स गोयं? गोयमा! जस्स गोयं तस्स अंतराइयं सिय अत्थि, सिय नत्थि, जस्स पुण अंतराइयं तस्स गोयं नियम अत्थि॥
यस्य भदन्त ! गोत्रं तस्य आन्तरायिकम् ? ४९८. भंते! जिसके गोत्र है क्या उसके यस्य आन्तरायिकं तस्य गोत्रम् ?
आंतरायिक होता है? जिसके आंतरायिक
है, क्या उसके गोत्र होता है ? गौतम ! यस्य गोत्रं तस्य आन्तरायिकं स्यात् गौतम! जिसके गोत्र है उसके आंतरायिक अस्ति, स्यात् नास्ति, यस्य पुनः स्यात होता है, स्यात नहीं होता। जिसके आन्तरायिकं तस्य गोत्रं नियमम् अस्ति। आंतरायिक है, उसके गोत्र नियमतः होता
भाष्य १.सूत्र ४८५-४९८
और अंतराय की व्याप्ति नहीं होती है। केवली वीतराग के वेदनीय, आयुष्य, नाम और गोत्र-ये चार छद्मस्थ वीतराग के मोहनीय कर्म नहीं होता, शेष सात कर्म कर्म होते हैं इसलिए उनके साथ ज्ञानावरण, दर्शनावरण, मोहनीय होते हैं।
___ आठ कर्मों में परस्पर नियमा, भजनानियमा
भजना १. ज्ञानावरणीय कर्म के साथ
चार अघाती कर्म वेदनीय आयुष्य, दर्शनावरणीय कर्म की नियमा। नाम, गोत्र के साथ चार घाति कर्म २. दर्शनावरणीय कर्म के साथ। (ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, मोहनीय,
ज्ञानावरणीय कर्म की नियमा। अंतराय कर्म) की भजना। ३. ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, मोहनीय, अन्तराय कर्म के साथ वेदनीय, आयुष्य, नाम, गोत्र (चार अघाति कर्म) की नियमा।
पुद्गली पुद्गल पद ४९९. भंते! जीव क्या पुगली है ? पुद्गल है?
पोग्गलि-पोग्गल-पदं
पुद्गली-पुद्गल-पदम् ४९९. जीवे णं भंते! किं पोग्गली? जीवः भदन्त ! किं पुद्गली ? पुद्गलः ? पोग्गले? गोयमा! जीवे पोग्गली वि. पोग्गले वि॥ गौतम! जीवः पुद्गली अपि, पुद्गलोऽपि।
गौतम ! जीव पुद्गली भी है, पुद्गल भी है।
५००. से केणद्वेणं भंते! एवं वुच्चइ-जीवे पोग्गली वि, पोग्गले वि?
तत् केनार्थेन भदन्त! एवम् उच्यते पुद्गली अपि, पुद्गलोऽपि?
५००. भंते! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है-जीव पुद्गली भी है. पुढ़ल भी है।
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