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________________ भगवई श.८ : उ. १० : सू. ४९०-४९५ मोहणिज्जं सिय अत्थि, सिय नत्थि; अस्ति. स्यात् नास्ति, यस्य पुनः मोहनीयं जस्स पुण मोहणिज्जं तस्स वेयणिज्जं तस्य वेदनीयं नियमम अस्ति। नियम अत्थि॥ स्यात् होता है, स्यात नहीं होता। जिसके मोहनीय है उसके वेदनीय नियमतः होता ४९१. जस्स णं भंते ! वेयणिज्जं तस्स आउयं जस्स आउयं तस्स वेयणिज्ज? यस्य भदन्त ! वेदनीयं तस्य आयुष्कम्? यस्य आयुष्कं तस्य वेदनीयम? एवं एयाणि परोप्परं नियम। जहा आउएण सम एवं नामेण वि गोएण वि समं भाणियव्वं॥ एवम्. एतानि परस्परं नियमम्। यथा आयुष्केन समं एवं नाम्ना अपि गोत्रेणापि सम भणितव्यम्। ४९१. भंते! जिसके वेदनीय है, क्या उसके आयुष्य होता है? जिसके आयुष्य है, क्या उसके वेदनीय होता है ? ये परस्पर नियमतः होते हैं, जैसे आयुष्य के साथ वेदनीय की वक्तव्यता उसी प्रकार नाम और गोत्र के साथ भी वेदनीय वक्तव्य है। ४९२. जस्स णं भंते! वेयणिज्जं तस्स यस्य भदन्त ! वेदनीयं तस्य आन्तरायिकम? अंतराइयं? जस्स अंतराइयं तस्स यस्य आन्तरायिकंतस्य वेदनीयम् ? वेयणिज्जं? गोयमा! जस्स वेयणिज्जं तस्स गौतम! यस्य वेदनीयं तस्य आन्तराविक अंतराइयं सिय अत्थि, सिय नत्थि; स्यात् अस्ति. स्यात् नास्ति, यस्य पुनः जस्स पुण अंतराइयं तस्स वेय-णिज्ज आन्तरायिकं तस्य वेदनीयं नियमम् अस्ति! नियम अत्थि॥ ४९२. भंते ! जिसके वेदनीय है. क्या उसके आंतरायिक होता है? जिसके आंतरायिक है, उसके वेदनीय होता है? गौतम! जिसके वेदनीय है, उसके आंतरायिक स्यात् होता है, स्यात् नहीं होता। जिसके आंतरायिक है उसके वेदनीय नियमतः होता है। ४९३. जस्स णं भंते! मोहणिज्ज तस्स यस्य भदन्त ! मोहनीयं तस्य आयुष्यकम् ? आउयं? जस्स आउयं तस्स यस्य आयुष्कं तस्य मोहनीयम् ? मोहणिजं? गोयमा! जस्स मोहणिज्ज तस्स आउयं गौतम ! यस्य मोहनीयं तस्य आयुष्कं नियम अत्थि, जस्स पुण आउयं तस्स नियमम् अस्ति, यस्य पुनः आयुष्कं तस्य मोहणिज्जं सिय अत्थि, सिय नत्थि। एवं मोहनीयं स्यात् अस्ति. स्यात् नास्ति। एवं नाम गोयं अंतराइयं च भाणियव्वं ॥ नाम गोत्रं आन्तरायिकं च भणितव्यम्। ४९३. भंते ! जिसके मोहनीय है, क्या उसके आयुष्य होता है? जिसके आयुष्य है क्या उसके मोहनीय होता है ? गौतम ! जिसके मोहनीय है, उसके आयुष्य नियमतः होता है। जिसके आयुष्य है, उसके मोहनीय स्यात होता है, स्यात नहीं होता। इसी प्रकार नाम, गोत्र और आंतरायिक की वक्तव्यता। ४९४. जस्स णं भंते! आउयं तस्स नाम? जस्स नामं तस्स आउयं? यस्य भदन्त ! आयुष्कं तस्य नाम? यस्य नाम तस्य आयुष्कम्? ४९.४. भंते ! जिसके आयुष्य है, क्या उसके नाम होता है? जिसके नाम है, क्या उसके आयष्य होता है? गौतम ! ये दोनों परस्पर नियमतः होते हैं, इसी प्रकार गोत्र कर्म के साथ नाम कर्म की वक्तव्यता। गोयमा! दो वि परोप्परं नियम। एवं गोत्तेण वि समं भाणियव्वं ।। गौतम! द्वे अपि परस्परं नियमम्। एवं गोत्रेणापि समं भणितव्यम्। ४९५. जस्स णं भंते! आउयं तस्स ४९५. यस्य भदन्त! आयुष्कं तस्य ४९५. भंते! जिसके आयुष्य है, क्या उसके अंतरा-इयं? जस्स अंतराइयं तस्स आन्तरायिकम् ? यस्य आन्तरायिकं तस्य आंतरायिक होता है? जिसके आंतरायिक आउयं? आयुष्कम् ? है, क्या उसके आयुष्य होता है? गोयमा! जस्स आउयं तस्स अंतराइयं गौतम ! यस्य आयुष्कं तस्य आन्तरायिकं गौतम! जिसके आयुष्य है, उसके सिय अत्थि, सिय नत्थि; जस्स पुण स्यात् अस्ति, स्यात् नास्ति, यस्य पुनः आंतरायिक स्यात् होता है, स्यात् नहीं अंतराइयं तस्स आउयं नियम अत्थि॥ आन्तरायिकं तस्य आयुष्कं नियमम् अस्ति।। होता। जिसके आंतराविक है, उसके आयुष्य नियमतः होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003595
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages600
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size15 MB
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