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________________ श.८ : उ.१० : सू. ४८६-१९० १८८ भगवई ४८६. जस्स णं भंते! नाणावरणिज्जं यस्य भदन्त ! ज्ञानावरणीयं तस्य वेदनीयम् ? ४८६. भंते ! जिसके ज्ञानावरणीय है, क्या तस्स वेयणिज्ज? जस्स वेयणिज्जं यस्य वेदनीयं तस्य ज्ञाना-वरणीयम् ? उसके वेदनीय होता है जिसके वेदनीय है, तस्स नाणा-वरणिज्जं? क्या उसके ज्ञानावरणीय होता है? गोयमा! जस्स नाणावरणिज्जं तस्स गौतम! यस्य ज्ञानावरणीयं तस्य वेदनीयं गौतम! जिसके ज्ञानावरणीय है. उसके वेयणिज्जं नियम अत्थि जस्स पुण नियमम् अस्ति, यस्य पुनः वेदनीयं तस्य वेदनीय नियमतः होता है। जिसके वेदनीय वेयणिज्जं तस्स नाणावर-णिज्जं सिय ज्ञानावरणीयं स्यात् अस्ति, स्यात् नास्ति।। है, उसके ज्ञानावरणीय स्यात् होता है, अत्थि, सिय नत्थि॥ स्यात् नहीं होता है। ४८७. जस्स णं भंते! नाणावरणिज्जं यस्य भदन्त! ज्ञानावरणीयं तस्य तस्स मोहणिज्ज? जस्स मोह-णिज्जं । मोहनीयम् ? यस्य मोहनीयं तस्य ज्ञानातस्स नाणावरणिज्जं? वरणीयम्? ४८७. भंते! जिसके जानावरणीय है, क्या उसके मोहनीय होता है? जिसके मोहनीय है, क्या उसके ज्ञानावरणीय होता गोयमा! जस्स नाणावरणिज्जं तस्स गौतम! यस्य ज्ञानावरणीयं तस्य मोहनीयं मोहणिज्जं सिय अत्थि, सिय नत्थि; स्यात् अस्ति, स्यात् नास्ति, यस्य पुनः जस्स पुण मोहणिज्जं तस्स मोहनीयं तस्य ज्ञानावरणीयं नियमम् अस्ति। नाणावरणिज्जं नियम अत्थि॥ गौतम! जिसके ज्ञानावरणीय है, उसके मोहनीय स्यात् होता है, स्यात् नहीं होता। जिसके मोहनीय है, उसके ज्ञानावरणीय नियमतः होता है। ४८८. जस्स णं भंते! नाणावरणिज्जं यस्य भदन्त! ज्ञानावरणीयं तस्य तस्स आउयं? जस्स आउयं तस्स आयुष्कम् ? यस्य आयुष्कं तस्य ज्ञानानाणावरणिज्जं? वरणीयम् ? गोयमा! जस्स नाणावरणिज्जं तस्स गौतम! यस्य ज्ञानावरणीयं तस्य आयुष्कं आउयं नियम अत्थि, जस्स पुण आउयं नियमम् अस्ति, यस्य पुनः आयुष्कम् तस्य तस्स नाणावरणिज्जं सिय अस्थि, सिय ज्ञानावरणीयं स्यात् अस्ति, स्यात् नास्ति। नत्थि। एवं नामेण वि, एवं गोएण वि समं, एवं नाम्ना अपि, एवं गोत्रेणापि समम् अंतराइएण जहा दरिसणावर-णिज्जेण आन्तरायिकेण यथा दर्शनावरणीयेन समं समं तहेव नियम परोप्परं तथैव परस्परं भणितव्यानि। भाणियव्वाणि॥ ४८८. भंते! जिसके ज्ञानावरणीय है, क्या उसके आयुष्य होता है? जिसके आयुष्य है क्या उसके ज्ञानावरणीय होता है? गौतम! जिसके ज्ञानावरणीय है उसके आयुष्य नियमतः होता है। जिसके आयुष्य है, उसके ज्ञानावरणीय स्यात होता है, स्यात् नहीं होता। इसी प्रकार नाम और गोत्र कर्म के साथ ज्ञानावरणीय कर्म की वक्तव्यता। जैसे ज्ञानावरणीय के साथ दर्शनावरणीय की वक्तव्यता है, वैसे ज्ञानावरणीय और आंतरायिक परस्पर नियमतः वक्तव्य हैं। ४८९. जस्स णं भंते! दरिसणा-वरणिज्जं यस्य भदन्त! दर्शनावरणीयं तस्य तस्स वेयणिज्ज? जस्स वेयणिज्ज वेदनीयम् ? यस्य वेदनीयं तस्य दर्शना- तस्स दरिसणावरणिज्ज? वरणीयम् ? जहा नाणावरणिज्जं उवरिमेहिं सत्तहिं यथा ज्ञानावरणीयं उपरितनैः सप्तभिः कम्मेहि सम भणियं तहा कर्मभिः भणितं यथा दर्शनावरणीयमपि दरिसणावरणिज्जं पि उवरिमेहिं छहिं उपरितनैः षड्भिः कर्मभिः समं भणितव्यं कम्मेहि सम भाणियव्वं जाव यावत् आन्तरायिकेण। अंतराइएणं॥ ४८९. भंते! जिसके दर्शनावरणीय है, क्या उसके वेदनीय होता है? जिसके वेदनीय है. क्या उसके दर्शनावरणीय होता है? जैसे ज्ञानावरणीय की उत्तरवर्ती सात कर्मों के साथ वक्तव्यता है वैसे दर्शनावरणीय उत्तरवर्ती छह कर्मों के साथ वक्तव्य है यावत् दर्शनावरणीय और आंतरायिक परस्पर नियमतः वक्तव्य हैं। ४९०. जस्स णं भंते! वेयणिज्जं तस्स यस्य भदन्त! वेदनीयं तस्य मोहनीयम् ? मोहणिज्ज? जस्स मोह-णिज्जं तस्स यस्य मोहनीयं तस्य वेदनीयम् ? वेयणिज्जं? गोयमा! जस्स वेयणिन्जं तस्स गौतम ! यस्य वेदनीयं तस्य मोहनीयं स्यात् ४९०. भंते! जिसके वेदनीय है क्या उसके मोहनीय होता है? जिसके मोहनीय है क्या उसके वेदनीय होता है? गौतम ! जिसके वेदनीय है, उसके मोहनीय www.jainelibrary.org Jain Education International For Private & Personal Use Only
SR No.003595
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages600
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size15 MB
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