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भगवई
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श. ८ : उ. १० : सू. ४७७-४८२ असंख्य बतलाए गए हैं। साधारणतया जीव शरीर परिमाण होता है। के समय वे पूरे लोकाकाश में व्याप्त हो जाते हैं।' उसके प्रदेशों में संकोच और विस्तार की क्षमता है। इसलिए समुद्घात विशेष विवरण के लिए द्रष्टव्य भगवती २/१२४-१३५ का की स्थिति में उसके प्रदेश शरीर से बाहर फैलते हैं। केवली समुद्धात भाष्य। कम्माणं अविभागपलिच्छेद-पदं कर्मणाम् अविभागपरिच्छेद-पदम्- कर्मों का अविभाग परिच्छेद-पद ४७७. कति णं भंते! कम्मपगडीओ कति भदन्त ! कर्मप्रकृतयः प्रलप्ताः? ४७७. 'भंते! कर्म प्रकृतियां कितनी प्रज्ञप्त पण्णत्ताओ? गोयमा! अट्ठ कम्मपगडीओ पण्ण- गौतम ! अष्टकर्मप्रकृतयः प्रज्ञप्ताः , तद्- गौतम! कर्म प्रकृतियां आठ प्रज्ञप्त हैं? ताओ, तं जहा-नाणावरणिज्जं जाव यथा-ज्ञानावरणीयं यावत् आन्तरायिकम्। जैसे-ज्ञानावरणीय यावत् आंतरायिक। अंतराइयं॥
४७८. नेरइयाणं भंते! कति कम्म- नैरयिकाणां भदन्त ! कति कर्मप्रकृतयः ४७८. भंते! नैरयिकों के कर्म प्रकृतियां पगडीओ पण्णत्ताओ? प्रज्ञप्ताः ?
कितनी प्रज्ञप्त हैं? गोयमा! अट्ठ। एवं सव्वजीवाणं अट्ठ गौतम! अष्ट। एवं सर्वजीवानाम् अष्टकर्म- गौतम ! नैरयिकों के कर्म प्रकृतियां आठ कम्मपगडीओ ठावेयव्वाओ जाव प्रकृतयः स्थापयितव्याः यावत् वैमानि- प्रज्ञप्त हैं। इस प्रकार वैमानिक पर्यंत सब वेमाणियाणं॥ कानामा
जीवों के आठ कर्म प्रकृतियां स्थापनीय हैं।
४७९. नाणावरणिज्जस्स णं भंते! ज्ञानावरणीयस्य भदन्त ! कर्मणः कियन्तः ४७९. भंते! ज्ञानावरणीय कर्म के अविभाग कम्मस्स केवतिया अविभाग- अविभागपरिच्छेदाः प्रज्ञप्ताः?
परिच्छेद कितने प्रज्ञप्त हैं? पलिच्छेदा पण्णत्ता? गोयमा! अणंता अविभाग-पलिच्छेदा गौतम! अनन्ताः अविभागपरिच्छेदाः गौतम ! अनंत अविभाग परिच्छेद प्रज्ञप्त हैं। पण्णत्ता॥
मज्ञप्ताः ।
४८०. भंते! नैरयिकों के ज्ञानावरणीय कर्म के अविभाग परिच्छेद कितने प्रज्ञप्त हैं?
४८०. नेरइयाणं भंते! नाणावर- नैरयिकाणां भदन्त! ज्ञानावरणीयस्य णिज्जस्स कम्मस्स केवतिया कर्मणः कियन्तः अविभागपरिच्छेदाः अविभागपलिच्छेदा पण्णत्ता?
प्रज्ञप्ताः ? गोयमा! अणंता अविभाग-पलिच्छेदा गौतम! अनन्ताः अविभागपरिच्छेदाः पण्णत्ता॥
प्रज्ञप्ताः ।
गौतम ! अनंत अविभाग परिच्छेद प्रज्ञप्त है।
४८१.एवं सव्वजीवाणं जाव वेमाणि- एवं सर्वजीवानां यावत् वैमानिकानाम्- ४८१. इस प्रकार वैमानिक पर्यन्त सब याणं-पुच्छा। पृच्छा ।
जीवों की पृच्छा। गोयमा! अणंता अविभागपलि-च्छेदा गौतम! अनन्ताः अविभागपरिच्छेदाः गौतम ! अनंत अविभाग परिच्छेद प्रजाप्त हैं। पण्णत्ता। एवं जहा नाणा-वरणिज्जस्स प्रज्ञप्ताः। एवं यथा ज्ञानावरणीयस्य जिस प्रकार ज्ञानावरणीय के अनंत अविभागपलिच्छेदा भणिया तहा अट्ठण्ह अविभागपरिच्छेदाः भणिताः तथा अविभाग परिच्छेद कहे गए हैं, उसी वि कम्मपग-डीणं भाणियव्वा जाव। अष्टानामपि कर्मप्रकृतीनां भणितव्याः यावत् प्रकार आठों कर्म प्रकृतियों के वक्तव्य हैं वेमाणियाणं अंतराइयस्स। वैमानिकानाम् आन्तरायि-कस्य।
यावत् वैमानिकों के आंतरायिक कर्म अनंत अविभाग परिच्छेद प्रज्ञप्त हैं।
४८२. एगमेगस्स णं भंते! जीवस्स एकैकस्य भदन्त! जीवस्य एकैकः ४८२. भंते! एक एक जीव का एक एगमेगे जीवपदेसे नाणावरणिज्ज-स्स जीवप्रदेशः ज्ञानावरणीयस्य कर्मणः एक जीव प्रदेश ज्ञानावरणीय कर्म के कम्मस्स केवतिएहिं अविभाग- कियद्भिः अविभागपरिच्छेदैः आवेष्टित- कितने अविभाग परिच्छेदों से आवेष्टितपलिच्छेदेहिं आवेढिय-परिवेढिए? परिवेष्टितः?
परिवेष्टित है? १. (क) भ. वृ. ८.४७६-एकै कस्यजीवस्य जावन्तः प्रदेशाः यावन्तो (ख) भ. २/७४ का भाष्य। लोकाकाशस्य कथं ? यस्माज्जीवः केवलीसमुद्घातकाले सर्व लोकाकाशं (ग) ठाणं ८/१७४ का टिप्पण। व्याप्यावतिष्ठति तस्याल्लोकाकाशप्रदेशप्रमाणास्त इति।
(घ) सम. ७/२ का टिप्पण।
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