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________________ श. ८ : उ. १० : सू. ४७७-४७६ १. स्यात द्रव्य-तीन परमाणु त्रिप्रदेशी स्कंध के रूप में परिणत है इसलिए वह द्रव्य है। २. स्यात द्रव्य देश वह त्रिप्रदेशी स्कंध रूप में परिणत रहता हुआ दूसरे द्रव्य से मिल जाता है। इस अपेक्षा से द्रव्य देश है। ३. स्यात् द्रव्य (बहुवचन) - त्रिप्रदेशी स्कंध विभक्त होकर तीन परमाणु के रूप में चला जाता है। उस अवस्था में तीन द्रव्य बन जाते हैं अथवा त्रिप्रदेशी स्कंध विभक्त होकर एक द्विप्रदेश स्कंध और एक परमाणु रूप में चला जाता है। ४. स्यात द्रव्य देश (बहुवचन) - तीन परमाणु त्र्यणु स्कंध में परिणत न होकर बहुप्रवेशी स्कंध के साथ मिल जाते हैं। दो परमाणु द्विप्रदेशी स्कंध के रूप में परिणत होकर और एक परमाणु, परमाणु रूप में न रहकर द्रव्यांतर से संबद्ध हो जाता है। इस अपेक्षा से वे द्रव्य देश हैं। ५. स्यात द्रव्य और स्यात् द्रव्य देश-त्रिप्रदेशी स्कंध के तीन अथवा परमाणु के दो विकल्प - स्थापना 2. B २० → द्विप्रदेशी स्कन्ध के ५ विकल्प १0+00२0 ४. 0+0 ३.00+0 १८४ ४७६. एगमेगस्स णं भंते! जीवस्स केवइया जीवपदेसा पण्णत्ता ? गोयमा ! जावतिया लोयागास-पदेसा, एगमेगस्स णं जीवस्स एवतिया जीवपदेसा पण्णत्ता ॥ Jain Education International ६ प्रदेश- परिमाण-पदम् कियन्तः त्रिप्रदेशी स्कन्ध के ७ विकल्प १. 0+3+0 २. E ४. 0+2+0 अथवा ५ १. सूत्र ४७५-४७६ आकाश लोकाकाश और अलोकाकाश- इन दो भागों में विभक्त है। यह जैन दर्शन की मौलिक स्थापना है। लोकाकाश के प्रदेश अथवा परमाणु स्कंध असंख्येय हैं। स्थानांग में प्रदेश परिमाण की दृष्टि से चार तुल्य तुल्य बतलाए गए हैं १. भ. वृ. ८/४७२। भगवई परमाणुओं में से दो परमाणु द्विप्रदेशी स्कंध रूप में परिणत हैं, एक परमाणु किसी द्रव्यांतर से संबद्ध है। इस प्रकार द्विप्रदेश स्कंध द्रव्य तथा परमाणु द्रव्य देश है। अथवा एक परमाणु रूप में स्थित है. दो परमाणु द्विप्रदेशी स्कंध रूप में परिणत होकर द्रव्यांतर से संबद्ध है, इस विकल्प में परमाणु द्रव्य है, द्विप्रदेशी स्कंध द्रव्य देश है। ६. स्यात् द्रव्य और स्यात् द्रव्य देश (बहुवचन) - त्रिप्रदेशी स्कंध का एक परमाणु परमाणु रूप में स्थित है, दो परमाणु द्रव्यांतर से संबद्ध है। इस अपेक्षा से वे द्रव्य और द्रव्य देश है। ७. स्यात् द्रव्य (बहुवचन) और द्रव्य देश-विप्रदेशी स्कंध के दो परमाणु स्वतंत्र रूप में स्थित है और एक परमाणु द्रव्यांतर से संबद्ध है। इस अपेक्षा से वे द्रव्य और द्रव्य देश है। त्रिप्रदेशी स्कंध में आठवां विकल्प संभव नहीं होता। दोनों रूपों में बहुवचन नहीं बन सकता । चतुष्षादेशी स्कंध में आठवां विकल्प है। भाष्य पएस परिमाण-पदं ४७५. केवतिया णं भंते! लोया गासपद`सा पण्णत्ता? प्रज्ञप्ताः ? गोयमा ! असंखेज्जा लोयागास-पदेसा गौतम! असंख्येयाः लोकाकाशप्रदेशाः पण्णत्ता ॥ प्रज्ञप्ताः । 000 四十四 ३.0+0+ अथवा भदन्त ! लोकाकाशप्रदेशाः → अथवा 0 0 0 एकैकस्य भदन्त ! जीवस्य कियन्तः जीवप्रदेशाः प्रज्ञप्ताः ? गौतम ! यावन्तः लोकाकाशप्रदेशाः. एकैकस्य जीवस्य एतावन्तः जीवप्रदेशाः प्रज्ञप्ताः । For Private & Personal Use Only २. ठाणं ४.४९५ प्रदेश परिमाण - पद ४७५. भंते! लोकाकाश के प्रदेश कितने प्रज्ञस हैं ? गौतम! लोकाकाश के असंख्येय प्रदेश प्रजप्त हैं। १. धर्मास्तिकाय २. अधर्मास्तिकाय ३. लोकाकाश ४. एक जीव । २ प्रस्तुत प्रकरण में एक जीव के प्रदेश लोकाकाश परिमाण ४७६. भंते! एक एक जीव के जीव प्रदेश कितने प्रजप्त हैं ? गौतम! जितने लोकाकाश के प्रदेश हैं. उतने ही प्रत्येक जीव के जीव- प्रदेश प्रम www.jainelibrary.org
SR No.003595
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages600
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size15 MB
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