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________________ भगवई १८३ गोयमा ! सिय दव्वं, सिय दव्वदेसे, एवं गौतम ! स्यात द्रव्यम, स्यात् द्रव्यदेशः, एवं सत्त भंगा भाणियव्वा जाव सिय दव्वाइं सप्त भंगाः भणितव्याः यावत् स्यात् द्रव्याणि च दव्वदेसे य, नो दव्वाई च दव्वदेसा च द्रव्यदेशश्च, नो द्रव्याणि च द्रव्यदेशाश्च। य॥ श. ८ : उ. १० : सू. ४७२-४७४ गौतम ! वे स्यात् द्रव्य है, स्यात द्रव्य देश है इसी प्रकार सात भंग वक्तव्य है यावत स्यात अनेक द्रव्य और द्रव्य देश हैं। अनेक द्रव्य और अनेक द्रव्य देश नहीं है। ४७३. चत्तारि भंते! पोग्गलत्थिकाय- चत्वारः भदन्त ! पुद्गलास्तिकायप्रदेशाः किं पदेसा किं दव्वं?-पुच्छा। द्रव्यम् ?-पृच्छा। गोयमा! सिय दव्वं, सिय दव्वदेसे, अट्ठ । गौतम! स्यात् द्रव्यम्, स्यात् द्रव्यदेशः, विभंगा भाणियव्वा जाव सिय दव्वाइंच ___ अष्टावपि भंगाः भणितव्याः । यावत् स्यात् दव्वदेसा य। जहा चत्तारि भणिया एवं द्रव्याणि च द्रव्यदेशाश्च। यथा चत्वारः पंच, छ, सत्त जाव असंखेज्जा । भणिताः एवं पञ्च, षट्, सप्त यावत् असंख्येयाः। ४७३. भंते ! पुद्गलास्तिकाय के चार प्रदेश क्या द्रव्य है?-पृच्छा गौतम ! वे स्यात् द्रव्य है, स्यात् द्रव्य देश हैं, आठों भंग वक्तव्य हैं यावत् स्यात अनेक द्रव्य और अनेक द्रव्य देश है। जैसे पुङलास्तिकाय के चार प्रदेशों के भंग बतलाए गए हैं वैसे ही पांच, छह, सात यावत् असंख्येय प्रदेशों के भंग वक्तव्य हैं। ४७४. अणंता भंते! पोग्गलत्थिकाय- अनन्ताः भदन्त ! पुनलास्तिकायप्रदेशाः किं ४७४. भंते! पुगलास्तिकाय के अनंत प्रदेश पदेसा कि दव्वं? द्रव्यम्? क्या द्रव्य है? एवं चेव जाव सिय दब्वाइं च दव्वदेसा । एवं चैव यावत् स्यात् द्रव्याणि च द्रव्य- इसी प्रकार स्यात् द्रव्य है यावत् अनेक य। देशाश्च। द्रव्य और अनेक द्रव्य देश हैं। भाष्य १.सूत्र ४७०-४७४ द्वि प्रदेशी स्कंध में पांच विकल्प मान्य हैंपरमाणु और प्रदेश दोनों तुल्य होते हैं। स्कंध संयुक्त की १. वह स्यात द्रव्य-दो परमाणु, द्विप्रदेशी स्कंध रूप में परिणत संज्ञा प्रदेश और उससे वियुक्त अवस्था में उसकी संज्ञा परमाणु है।' हैं। इस अपेक्षा से वह द्रव्य है। पुगत्लास्तिकाय का प्रदेश-यह निरूपण नय की दृष्टि से किया गया २. स्यात द्रव्य देश-वह द्विप्रदेशी स्कंध रूप में परिणत रहता है। परमाणु की अतीत और भावी अवस्थाओं के आधार पर उसे हुआ दूसरे द्रव्य से मिल जाता है। इस अपेक्षा से द्रव्य देश पढ़नास्तिकाय का प्रदेश कहा गया है। जयाचार्य ने इस विषय का विस्तार से विवेचन किया है। उसका निष्कर्ष है कि परमाणु को ३. स्यात् द्रव्य (बहुवचन)-द्विप्रदेशी स्कंध विभक्त होकर दो अनेक स्थानों पर प्रदेश कहा गया है। परमाणु के रूप में चला जाता है। उस अवस्था में दो द्रव्य परमाणु के विषय में आठ प्रश्न प्रस्तुत किए गए हैं। चार एक बन जाते हैं। वचन के और चार बहवचन से संबद्ध हैं। उनमें दो विकल्प मान्य है। ४. स्यात् द्रव्य देश (बहुवचन)-दो परमाणु व्यणु स्कंध में शेष प्रश्नों का परमाणु के साथ संबंध नहीं है। परिणत न होकर बहप्रदेशी स्कंध के साथ मिल जाते हैं। द्रव्य गुण पर्याय से युक्त होता है। द्रव्य देश का अर्थ है द्रव्य का इस अपेक्षा से वे द्रव्य देश कहलाते हैं। अवयव ५. स्यात् द्रव्य और स्यात् द्रव्य देश-द्विप्रदेशी स्कंध के दो (१) परमाणु स्यात द्रव्य है-वह किसी दूसरे द्रव्य से संयुक्त परमाणुओं में से एक परमाणु के रूप में अवस्थित है, दूसरा नहीं है स्वतंत्र हैं। किसी द्रव्यांतर से संबद्ध है। इस अपेक्षा से द्रव्य और द्रव्य (२) परमाणु स्यात द्रव्य का देश-स्कंध की अवस्था में वह देश-यह विकल्प संगत है। द्रव्य का एक देश है। तीन प्रदेशी स्कंध में सात विकल्प मान्य है१. भ. वृ. ८४००-पुत्लास्तिकायस्य-एकाणकादिपुढनराशेः प्रदेशो निरंशोशः जे परमाणु होय, प्रदेश करिक नुल्य है। पुद्गलास्तिकायप्रदश:-परमाणु। ते माटे ए जोय, प्रदेश करि बोलाविया ॥ २. म. जी. २१६१८-१३- सोरठा भूत भविष्यत् काल, ते नय वचन करी इहां। इक अणुकादि प्रसंस, पुगन्नराशि तणा निको। परमाणु पिण न्हाल, प्रदेश संज्ञा कर का।। प्रदेश निरंश अंश, प्रदेश परमाणु कयो। वर्तमान जे काल, नेह नणीण अपेक्षया। पुद्गल राशि नी नाय, परमाण खंध थी मिल्यो । परमाणू - न्हाल, अप्रदेश बहु ठामें का।। नसु प्रदेश कहिवाय, जुदा नहीं तिण कारणे ।। ३. भ. ५/१६०-१६४ का भाष्य। पुदगल राशि नी जाण, खंध थकी जे नहि मिल्यो। ४. भ, वृ.८/४७१-स्याद् द्रव्यं द्रव्यान्तरासंबंधे सति, स्यान द्रव्यदशी ने परमाण पिछाण. ए प्रदेश तुल्य जाणवो।। द्रव्यांतरसंबंधे सति। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003595
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages600
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size15 MB
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