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________________ भगवई १८१ श.८ : उ. १० : सू. ४६७,४६८ है अतः उसके प्रकर्ष में दर्शनाराधना का प्रयत्न अल्पतम नहीं हो भगवती आराधना में आराधना के चार प्रकार बतलाए गए हैं सकता। उत्कृष्ट ज्ञानाराधना के प्रसंग में चारित्र के प्रति अल्पतम उसमें त्रिविध आराधना के अतिरिक्त तप आराधना का उल्लेख है।" प्रयत्न नहीं होता। अभयदेव सूरि ने इसे स्वीकार किया है।' द्वितीय भव ग्रहण-अधिकृत मनुष्य भव की अपेक्षा दूसरा मनुष्य दर्शनाराधना और चारित्राराधना के प्रकर्ष में ज्ञानाराधना का जन्म। जघन्य हो सकती है। यथाख्यात चारित्र (वीतराग चारित्र) में जघन्य तृतीय भव ग्रहण-अधिकृत मनुष्य भव की अपेक्षा। तीसरा ज्ञान अष्ट प्रवचन माता का हो सकता है। बकुश निग्रंथ में जघन्य मनुष्य का जन्म। यहां चारित्राराधना युक्त ज्ञानाराधना और ज्ञान अष्ट प्रवचन माता का होता है। दर्शनाराधना का उल्लेख है। इसमें अंतरालवर्ती देव भव का ग्रहण जैन साधना पद्धति में ज्ञानाराधना का बहत महत्व है। स्वाध्याय नहीं है। के समान कोई तपस्या नहीं है --यह उसी का सूचक वाक्य है। प्रकृष्ट सप्त अष्ट भव ग्रहण-इसमें अधिकृत मनुष्य भव की अपेक्षा ज्ञानाराधना करने वाले व्यक्ति का दर्शनाराधना और चारित्राराधना आठ भव चारित्रयुक्त है। सात भव देवता के विविक्षित हैं। में अल्पतम प्रयत्न नहीं होता। प्रकृष्ट दर्शनाराधना और प्रकृष्ट बकुश, प्रतिसेवनाकुशील और कषायकुशील निर्गथ के उत्कृष्ट चारित्राराधना में ज्ञानाराधना अल्पतम हो सकती है। इससे यह फलित आठ भव बतलाए गए है। होता है कि प्रकृष्ट दर्शन और प्रकृष्ट चारित्र के लिए प्रकृष्ट ज्ञानाराधना चारित्राराधना रहित ज्ञान और दर्शन की आराधना करने वालों की अनिवार्यता नहीं है। उनकी स्थिति अल्पतम ज्ञानाराधना में भी के लिए अष्ट भव ग्रहण का नियम नहीं है, उनके असंख्येय जन्म हो हो सकती है किन्तु प्रकृष्ट ज्ञानाराधना में प्रकृष्ट अथवा मध्यम जाते हैं। आराधनाद्वर्या की अनिवार्यता है। पोग्गलपरिणाम-पदं पुद्गल परिणाम-पदम पुद्गल परिणाम-पद ४६७. कतिविहे णं भंते! पोग्गल- कतिविधः भदन्त! पुगलपरिणामः । ४६७. भंते! पुद्गल का परिणाम कितने परिणामे पण्णत्ते? प्रज्ञप्तः? प्रकार का प्रज्ञप्त है? गोयमा! पंचविहे पोग्गलपरिणामे । गौतम ! पञ्चविधः पुदलपरिणामः प्रज्ञप्तः, गौतम! पुद्गल परिणाम पांच प्रकार का पण्णत्ते, तं जहा–वण्णपरिणाम, तद्यथा-वर्णपरिणामः, गन्धपरिणामः, प्रज्ञप्त है, जैसे-वर्ण परिणाम. गंध परिणाम. गंधपरिणामे, रसपरिणामे, फास- रसपरिणामः. स्पर्शपरिणामः. संस्थान- रस परिणाम, स्पर्श परिणाम. संस्थान परिणामे, संठाणपरिणामे॥ परिणामः। परिणाम। ४६८. वण्णपरिणामे णं भंते! कतिविहे वर्णपरिणामः भदन्त ! कतिविधः प्रज्ञप्तः? ४६८. भंते ! वर्ण परिणाम कितने प्रकार का पण्णत्ते? प्रज्ञप्त है? गोयमा! पंचविहे पण्णत्ते, तं जहा- गौतम! पञ्चविधः प्रज्ञप्तः, तद्यथा-- गौतम ! पांच प्रकार का प्रजम है, जैसेकालवण्णपरिणामे जाव सुक्किल- काल-वर्णपरिणाम: यावत् कालवर्ण परिणाम यावत शुक्लवर्ण वण्णपरिणामे। एवं एएणं अभि-लावणं । शुक्लवर्णपरिणामः। एवम् एतेन अभिलापेन परिणाम! इस प्रकार इस अभिलाप के गंधपरिणामे दुविहे, रस-परिणामे गन्धपरिणामः द्विविधः, रसपरिणामः अनुसार गंध परिणाम दो प्रकार का. रस पंचविहे, फासपरिणामे अट्ठविहे। पञ्चविधः, स्पर्शपरिणामः अष्टविधः। परिणाम पांच प्रकार का और स्पर्श परिणाम आठ प्रकार का प्रजाल है। भाष्य १.सूत्र ४६७ ४६८ अल्पकालिक भी होता है और दीर्घकालिक भी। एक परमाणु काले पुल के चार गुण हैं-वर्ण, गंध, रस और स्पर्श। प्रस्तुत प्रकरण वर्ण का है। वह कुछ समय के बाद पीले वर्ण का हो जाता है। पदल के में उनके परिणाम बतलाए गए हैं। द्रव्य में परिणमन होता रहता है। वह परिणाम का अर्थ है-वर्ण आदि का परिवर्तन। १. म. वृ. ८४५५-४५१-उत्कृष्टज्ञानाराधनावना हि चारित्र प्रति श्रुतादतोष्टप्रवचनमातृप्रतिपादनपरं श्रुतं बकुशस्य जघन्यतोऽपि भवतीति। नाल्पतमप्रत्यत्नता स्यात, तत्त्वभावानम्गेति। ४.(क) बृ. क, भा. ३०१ गा. १९६० २. भ.२५ ४१२-अहक्खाए संजा पुच्छा। बारसविलम्मि वि नवे सब्मिंतर बाहिर कुरालदिद। गोथमा ! जहणणं अनुपवयणमाया ओ. उक्कोसणं चोहसपुव्वाई अहिज्जेज्जा न वि अन्थेि न वि अ होही सज्दायसमं नवो कम्म। सुयवनिरिने वा हाज्जा। (ख) मूलाचार ४०९। ३. (क) भ, २५.३१६-१०-बउसे पृच्छा। ५. भगवती आराधना २-दंसणणाणचरित्नतवाणमाराहणा भणिया। गोयमा ! नहणणं अपवयणमाया उक्कोसेणं दसपुव्वाई अहिज्जेज्जा ६. भ. वृ.८/४५५-४५७/ एवं पडिसेवणा कुसीले वि। १. भ. २५/११४१ (ख) भ. वृ. २५-अष्टप्रवचनमातृपालनरूपत्वाच्चारिवस्य तद्वतोअष्टप्रवचन ८. (क) त. सू. भा. वृ.५.२३-वर्णगंधरसस्पर्शवतः पदलाः। मातृपरिज्ञानेनावश्यं भाव्यं ज्ञानपूर्वकत्वाच्चारित्रस्य, नदपरिज्ञानं च (ख) उत्तरा. २८/१२। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003595
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages600
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size15 MB
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