SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 202
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श.८ : उ.१० : सू. ४६६ १८० भगवई ४६६. जहणियण्णं भंते! चरित्ता- जघन्यिकां भदन्त ! चरित्राराधनाम् आराध्य ४६६. भंते! जघन्य चरित्राराधना की राहणं आराहेत्ता कतिहिं भवग्ग-हणे- कतिभिः भवग्रहणैः सिध्यति यावत् आराधना कर जीव कितने भवों में सिद्ध हिं सिन्झति जाव सव्व- दुक्खाणं सर्वदुःखानाम् अन्तं करोति ? होता है यावत् सब दुःखों का अंत करता अंतं करेति? है? गोयमा! अत्थेगतिए तच्चेणं भवग्गह- गौतम! अस्त्येककः तृतीयेन भवग्रहणेन गौतम! कोई जीव तीसर भव में सिद्ध होता णेणं सिन्झति जाव सव्वदुक्खाणं अंतं सिध्यति यावत् सर्वदुःखानाम् अन्तं करोति. है यावत् सब दुःखों का अंत करता है, करेति, सत्तट्ठ भवग्गहणाइं पुण सप्लाष्टौ भवग्रहणानि पुनः नातिक्रामति। सात-आठ भव का अतिक्रमण नहीं करता। नाइक्कमइ॥ भाष्य १. सूत्र ४५१-४६६ है, चेतन और अचेतन जगत के प्रति दृष्टिकोण सम्यक् बन जाता है। साध्यसिन्द्रि के लिए आवश्यक है-साध्य और साधना दर्शनाराधना के अंग है-आचार का अनुपालन और अतिचार का आराध्य और आराधना का निर्धारण आध्यात्मिक विकास के तीन वर्जन। उसके व्यावहारिक आचार के आठ अंग बतलाए गए हैं। साधन है- ज्ञान, दर्शन और चारित्र। इस त्रयी के आधार पर -निःशंका, निष्कांक्षा, निर्विचिकित्सा, अमूढदृष्टि, उपबंहण आराधना के तीन प्रकार बतलाए गए है (सम्यक् दर्शन की पुष्टि), स्थिरीकरण, वात्सल्य और प्रभावना। १. ज्ञानाराधना। द्रष्टव्य उत्तराध्ययन २८/३१ का टिप्पण। २. दर्शनाराधना। १. उत्कृष्ट-दर्शनाराधना का प्रकृष्ट प्रयत्न ३. चारित्राराधना। २. मध्यम-दर्शनाराधना का मध्यम प्रयत्न ज्ञानाराधना-अध्ययन, अभीक्ष्ण ज्ञानोपयोग, उद्दीपन और ३. जघन्य-दर्शनाराधना का अल्पतम प्रयत्न। महत्व का प्रकाशन, ज्ञान के काल, विनय आदि' आचार का चारित्राराधना-सावध योग का परित्याग, सामायिक का अनुपालन, अतिचार का वर्जन, स्वाध्यायानुरूप तप का अनुष्ठान-ये निरतिचार अनुपालन चारित्राराधना है। ज्ञानाराधना के अंग है। चारित्राराधना के तीन प्रकार . ज्ञानाराधना के तीन प्रकार हैं १. उत्कृष्ट-चारित्राराधना का प्रकृष्ट प्रयत्न। १. उत्कृष्ट-ज्ञानाराधना का उत्कृष्ट प्रयत्न। २. मध्यम-चारित्राराधना का मध्यम प्रयत्न। २. मध्यम-ज्ञानाराधना का मध्यम प्रयत्न। ३. जघन्य चारित्राराधना का अल्पतम प्रयत्न। ३. जघन्य-ज्ञानाराधना का अल्पतम प्रयत्न। आराधनात्रयी के साहचर्य और विकास की लरतमता की दर्शनाराधना-मोह की प्रबल ग्रंथि का भेद हो जाने पर दर्शन जानकारी के लिए देखें यंत्रकी चेतना जागृत होती है। उससे सम्यक दृष्टिकोण का निर्माण होता ज्ञान दर्शन चारित्र उत्कृष्ट | मध्यम | जघन्य | उत्कृष्ट | मध्यम | जघन्य| उत्कृष्ट| मध्यम | जघन्य प्रयत्न | प्रयत्न प्रयत्न | प्रयत्न | प्रयत्न प्रयत्न प्रयत्न | प्रयत्न प्रयत्न ज्ञान के उत्कृष्ट प्रयत्न में दर्शन के उत्कृष्ट प्रयत्न में चरित्र के उत्कृष्ट प्रयत्न में CIL है जिसके उत्कृष्ट ज्ञानाराधना होती है, उसके दर्शनाराधना जघन्य नहीं होती। अभयदेव सूरि ने इसका हेतु स्वभाव बतलाया है। १. (क) व्य, भा. ६३-- काले विणए बहमाने, उवहाणे नहा अनिण्हवणे। वंजण तदुभए अट्टविहो नाणमायारो॥ (ख) मूलाचार २/६९। २.उनरा. २८/३१ जयाचार्य का अभिमत भी यही है। स्वभाव की व्याख्या इस प्रकार की जा सकती है-ज्ञानाराधना दर्शनाराधना के विकास का प्रबल हेतु निस्संकिय निस्कंखिय निव्वितिगिच्छा अमूढदिट्टी य। उववृह थिरीकरणे वच्छल्लपभावणे अट्ट। ३. भ. वृ. ८/४५५.४५७-उत्कृष्टज्ञानाराधनावतो हि आये द्वे दर्शनाराधने भवतो न पुनस्तृतीयः तथा स्वभावत्वानस्येति। १. भ. जो. २/१६६/१६॥ For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.003595
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages600
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy