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________________ श. ८ : उ. ९ : सू. ४४७,४४८ ९. या कम्मगाणं सबंधगा विसेसाहिया १० वेउब्वियसरीरस्स अबंधगा विसेसाहिया ११. आहारगसरीरस्स अबंधगा विसेसाहिया ।। ४४८. सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति ।। १७२ येयगुणाः ९. तैजस- कर्मकाणां देशबन्धकाः विशेषाधिकाः १०. वैक्रियशरीरस्य अबन्धकाः विशेषाधिकाः ११. आहारकशरीरस्य अबन्धकाः विशेषाधिकाः । १. भ. वृ. ८ ४४० तदेवं भदन्त ! तदेवं भदन्त ! इति । १. सूत्र ४४७ १. चतुर्दशपूर्वी विशिष्ट प्रयोजनवश आहारक शरीर का निर्माण करते हैं। उसका प्रथम समय सर्वबंध का होता है। इस अपेक्षा से आहारक शरीर के सर्वबंधक सबसे अल्प होते हैं। द्वितीय समय से देश बंध का प्रारंभ हो जाता है। Jain Education International भाष्य २. आहारक शरीर की उत्कृष्ट स्थिति अंतर्मुहूर्त है। इस अपेक्षा से आहारक शरीर के देशबंधक असंख्येयगुण हैं। ३. वैक्रिय शरीर देव और नारक के भवधारणीय होता है तथा मनुष्य और तिर्यंच के लब्धिजन्य होता है। इस प्रकार वह बहुत व्यापक है इसलिए आहारक की अपेक्षा वैक्रिय शरीर के सर्वबंधक असंख्यात गुण अधिक होते हैं। ४. सर्वबंधक की अपेक्षा देशबंधक का काल अधिक होता है, इस अपेक्षा से वैक्रिय शरीर के देशबंधक सर्वबंधक की अपेक्षा असंख्यात गुण अधिक होते हैं। ५. सिद्ध जीव वनस्पति के जीवों को छोड़कर शेष सब जीवों से अनंत गुण अधिक हैं। उनके तैजस और कार्मण शरीर नहीं होता । इस अपेक्षा से तैजस कार्मण के अबंधक वैक्रिय शरीर देशबंधकों से अनंतगुण अधिक होते हैं। ६. वनस्पति आदि जीवों की अपेक्षा से औदारिक शरीर के सर्वबंधक तैजस कार्मण के अबंधकों से अनन्तगुण अधिक हैं। ७. विग्रह गति वाले जीव सर्वबंधकों से बहुतर होते हैं। इस भगवई उसके देश बंधक उससे असंख्येय गुण हैं। ९. तैजस और कर्मशरीर के देश बंधक उससे विशेषाधिक हैं । १०. वैक्रियशरीर के अबंधक उससे विशेषाधिक हैं । ११. आहारक शरीर के अबंधक उससे विशेषाधिक हैं। ४४८. भंते! वह ऐसा ही है, भंते! वह ऐसा ही है। अपेक्षा से औदारिक शरीर के अबंधक विशेषाधिक बतलाए गए हैं। सिद्ध इसमें विवक्षित नहीं है। ८. विग्रह काल की अपेक्षा देशबंध का काल असंख्यान गुण अधिक होता है, इस अपेक्षा से औदारिक के देशबंधक उसके अबंधक की अपेक्षा असंख्यात गुणा हैं। ९. सब संसारी जीव तैजस और कार्मण शरीर के देशबंधक होते हैं। विग्रह गति वाले, औदारिक शरीर के सर्व बंधक और वैक्रिय और आहारक शरीर के बंधक औदारिक के देशबंधकों से अतिरिक्त होते हैं। इस अपेक्षा से तैजस और कार्मण के देशबंधक विशेषाधिक बतलाए गए हैं। १०. वैक्रिय शरीर के बंधक प्रायः देव और नारक ही हैं। शेष संसारी जीव और सिद्ध उसके अबंधक हैं। इस अपेक्षा से वैक्रिय शरीर के अबंधक तैजस कार्मण के देशबंधकों से विशेषाधिक बतलाए गए हैं। ११. आहारक शरीर के बंधक केवल मनुष्य ही होते हैं। वैक्रिय शरीर के बंधक दूसरे जीव भी होते हैं इसलिए आहारक के बंधक वैक्रिय के बंधकों से अल्प होते हैं। इस अपेक्षा से आहारक शरीर के अबंधक वैक्रिय शरीर के अबंधकों से विशेषाधिक हैं। For Private & Personal Use Only वृत्तिकार ने इस प्रसंग में छत्तीस गाथाएं उद्धृत की हैं। बंध की विस्तृत जानकारी के लिए द्रष्टव्य यंत्र www.jainelibrary.org
SR No.003595
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages600
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size15 MB
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