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भगवई
(भगवती शतक ८/९ के अनुसार)
बंध
प्रयोग बंध
7 विससा बंध
सादिक विससा बंध
अनादिक विससा बंध
अनादि अपर्यवसित
सादि-अपर्यवसित
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आलापन बंध आलीन करण बंध
शरीर बंध बंधन प्रत्ययिक भोजन प्रत्ययिक परिणाम प्रत्यधिक
आकाशास्तिकाय पूर्वप्रयोग प्रत्ययिक बंध प्रत्युत्पन्न प्रयोग त्ययिक बंध
शरीर प्रयोग बंध
अधर्मास्तिकाय का अन्योन्य का अन्योन्य श्लेषणा बंध उव्यय बंध समुच्चयबंध संहनन
धर्मास्तिकाय का अन्योन्य । बिससा बंध अनादिक विससा बंध -
अनादिक विससा बंध देश संहनन बंध सर्व संहननबंध
आहारकरीर तैजस शरीर कामण शरीर प्रयोग बंध औदारिक शरीर प्रयोग बंध वैक्रिय शरीर प्रयोग बंध प्रयोग बंध
प्रयोग बंध
(केवल मनुष्य के आहारक शरी एकेन्द्रिय औदारिकॉन्द्रिय औदारिक वीन्द्रिय औदारिक चतुरिन्द्रिय औदारिक पंचेन्द्रिय औदारिक
प्रयोग बंध से होता है। शरीर प्रयोग बंध शरीर प्रयोग बंध शरीर प्रयोग बंध शरीर प्रयोग बंध।
शरीर प्रयोग बंध
एकेन्द्रिय वैक्रिय भरीर प्रयोग बंध (पृथ्वीकायिक, एकेन्द्रिय औदारिक शरीर प्रयोग बंध से लेकर
'एकेन्द्रिय तेजस शरीर प्रयोग बंध से यावत् पंचेन्द्रिय तक। यावत प्रज्ञापना पद २१ के पर्याप्ति-गर्भज-मनुष्य-पंचेन्द्रिय औदारिक
पंचेन्द्रिय वैक्रिय शेष भेद प्रज्ञापना पदम के अनुसारशरीर प्रयोग बंध और अपर्याप्त गर्भज-मनुष्य पंचेन्द्रिय औदारिक
शरीर प्रयोगबंध शरीर-प्रयोग बंध तक के समस्त भेद)
(ज्ञानावरणीय कार्मण शरीर प्रयोग बंध यावत् अन्तराय
कर्मणशरीर प्रयोग बंध)
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अनादि अपर्यवसित (काल की अपेक्षा)
अनादि सपर्यवसित (काल की अपेक्षा)
(वायुकायिक एकेन्द्रिय बैक्रिय शरीरबप्रयोग बंध से लेकर यावत् प्रज्ञापना पद २१ के पर्याप्त सर्वार्थसिद्ध अनुत्तरीपपातिक कल्पातीत-वैमानिक देव पंचेन्द्रिय वैक्रिय शरीर प्रयोग बंध तक के समस्त भेद)
श.८ : उ.९ : सू. ४४७
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