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________________ भगवई १७१ श.८: उ.९ : सू. ४४५-४४७ एवं चैव। एवम् आहारकस्यापि। अबंधए? एवं चेव । एवं आहारगस्स वि। कम्मगसरीरस्स किं बंधए? अबंधए? गोयमा! बंधए, नो अबंधए। जइ बंधए किं देसबंधए? सव्व-बंधए? कर्मकशरीरस्य किं बन्धकः ? अबन्धकः ? गौतम ! बन्धकः, नो अबन्धकः। यदि बन्धकः किं देशबन्धकः ? सर्वबन्धकः। इसी प्रकार वक्तव्य है। इसी प्रकार आहारक शरीर की वक्तव्यता। कर्म शरीर का बंधक है? अबंधक है? गौतम ! बन्धक है, अबंधक नहीं है। यदि बंधक है तो क्या देश बंधक है? सर्व बंधक है? गौतम ! देश बंधक है, सर्व बंधक नहीं है। गोयमा! देसबंधए, नो सव्वबंधए। गौतम! देशबन्धकः नो सर्वबन्धकः। ४४६. जस्स णं भंते! कम्मासरीरस्स यस्य भदन्त ! कर्मकशरीरस्य देशबन्धः, स देसबंधे, से णं भंते! ओरालिय- भदन्त ! औदारिकशरीरस्य किं बन्धकः? सरीरस्स किं बंधए? अबंधए? अबन्धकः? गोयमा! नो बंधए, अबंधए। जहा। गौतम! नो बन्धकः, अबन्धकः। यथा तेयगस्स वत्तव्वया भणिया तहा। तैजस-कस्य वक्तव्यता भणिता तथा कम्मगस्स वि भाणियव्वा जाव- कर्मकस्यापि भणितव्या यावत्तेयासरीरस्स किं बंधए? अबंधए? तैजसशरीरस्य किं बन्धकः ? अबन्धकः? ४४६. भंते! जिसके कर्म शरीर का देश बंध है, भंते! क्या वह औदारिक शरीर का बंधक है ? अबंधक है? गौतम ! बंधक है अथवा अबंधक है, जैसेतैजस शरीर की वक्तव्यता वैसे ही कर्म शरीर की वक्तव्यता, यावतक्या तैजस शरीर का बंधक है? अबंधक गोयमा! बंधए, नो अबंधए। जइ बंधइ किं देसबंधए? सव्व-बंधए? गौतम ! बन्धकः, नो अबन्धकः। यदि बध्नाति किं देशबन्धकः ? सर्वबन्धकः। गौतम ! बंधक है, अबंधक नहीं है। यदि बंधक है तो क्या देश बंधक है ? सर्व बंधक है? गौतम ! देश बंधक है, सर्व बंधक नहीं है। गोयमा! देसबंधए, नो सव्वबंधए। गौतम ! देशबन्धकः नो सर्वबन्धकः। भाष्य १.सूत्र ४४५-४४६ तैजस और कार्मण शरीर की पुनर्रचना (देशबंध) के समय जीव औदारिक शरीर का बंधक होता है अथवा अबंधक ? इस प्रश्न का उत्तर वैकल्पिक है। विग्रह गति (अंतराल गति) में जीव औदारिक शरीर का अबंधक होता है। अविग्रह गति (एक समय की अंतराल गति, ऋजुगति) वाला जीव उत्पनि के प्रथम समय में औदारिक शरीर का सर्वबंधक और द्वितीय आदि समयों में देश बंधक होता है। ४४७. एएसि णं भंते! जीवाणं ओरा- एतेषां भदन्त ! जीवानाम औदारिक-वैक्रिय- १४७. भंते! इन औदारिक. वैक्रिय, लियवेउब्विय-आहारगतेयाकम्मा-सर- आहारक-तैजसकर्मकशरीरकाणां देशबन्ध- आहारक, तैजस और कर्म शरीर के देश रिगाणं देसबंधगाणं, सव्वबंध-गाणं, कानां, सर्वबन्धकानाम्, अबन्धकानां च बंधक, सर्व बंधक और अबंधक जीवों में अबंधगाण य कयरे कयरे-हिंतो अप्पा कतरे कतरेभ्यः अल्पाः वा ? बहुकाः वा? कौन किनसे अल्प, बहु, तुल्य अथवा वा? बहया वा?तुल्ला वा? विसेसाहिया तुल्याः वा ? विशेषाधिकाः वा? विशेषाधिक है? वा? गोयमा!१. सव्वत्थोवा जीवा आहारग- गौतम! १. सर्वस्तोकाः जीवाः आहारक- गौतम! १. आहारक शरीर के सर्व बंधक सरीरस्स सव्वबंधगा २. तस्स चेव शरीरस्य सर्वबन्धकाः? २. तस्य चैव जीव सबसे अल्प हैं। २. उसके देश बंधक देसबंधगा संखेज्जगुणा ३. वेउब्विय- देशबन्धकाः संख्येयगुणाः ३. वैक्रियशरीर- उससे संख्येयगुण हैं। ३. वैक्रिय शरीर के सरीरस्स सव्वबंधगा असंखेज्जगुणा ४. स्य सर्वबन्धकाः असंख्येयगुणाः ४. तस्य सर्व बंधक उससे असंख्येय गुण हैं। ४. तस्स चेव देस-बंधगा असंखेज्जगुणा ५. चैव देशबन्धकाः असंख्येयगुणाः ५.तैजस- उसके देश बंधक उससे असंख्येय गुण हैं। तेया-कम्मगाणं अबंधगा अणंत-गुणा ६. कर्मकाणाम् अबन्धकाः अनन्तगुणाः ६. ५. तैजस और कर्म शरीर के अबंधक ओरालियसरीरस्स सव्वबंधगा अणंत- औदारिकशरीरस्य सर्वबन्धकाः अनन्त- उससे अनंत गुण हैं। ६. औदारिक शरीर गुणा ७. तस्स चेव अबंधगा विसेसाहिया गुणा: ७. तस्य चैव अबन्धकाः विशेषा- के सर्वबंधक उससे अनंत गुण हैं। ७. ८. तस्स चेव देस-बंधगा असंखेज्जगुणा धिकाः ८. तस्य चैव देशबन्धकाः असंख्- उसके अबंधक उससे विशेषाधिक हैं। ८. १. भ. वृ. ८/४४५-लैजसदेशबंधकः औदारिकशरीरस्य बंधको वा स्याद- क्षेत्रप्राप्तिप्रथमसमये सर्वबंधक, द्वितीयादी नु देशबंधक इनि, एवं बंधको वा, तब विग्रह वर्तमानो बंधकोऽविग्रहस्यः पुनबंधकः स एवोत्पत्ति- कार्मणशरीरदेश-बंधकदण्डकेपि वाच्यमिति। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003595
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages600
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size15 MB
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