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________________ १६८ भगवई श.८ : उ.९ : सू. ४३४-४३८ पयोगबंधस्स देसबंध-सव्वबंध-पदं ४३४. नाणावरणिज्जकम्मासरीरप्पयोगबंधे णं भंते! किं देसबंधे? सव्वबंधे? गोयमा! देसबंधे, नो सव्वबंधे। एवं जाव अंतराइयं॥ प्रयोगबन्धस्य देशबन्ध-सर्वबन्ध-पदम् ज्ञानावरणीयकर्मक - शरीरप्रयोग - बन्धः भदन्त ! किं देशबन्धः? सर्वबन्धः? गौतम ! देशबन्धः, नो सर्वबन्धः? एवं यावत् आन्तरायिकम्। प्रयोगबंध का देशबंध सर्वबंध-पद ४३४. 'भंते ! ज्ञानावरणीय कर्म शरीर प्रयोग बंध क्या देश बंध है? सर्व बंध है? गौतम! देश बंध है, सर्व बंध नहीं है। इसी प्रकार यावत् आन्तरायिक कर्म शरीर प्रयोग बंध की वक्तव्यता। भाष्य १.सूत्र ४३४ द्रष्टव्य ८/४१५ का भाष्य। ४३५. नाणावरणिज्जकम्मासरीरप्पयोग- बंधे णं भंते ! कालओ केवच्चिरं होइ? ज्ञानावरणीयकर्मक - शरीरप्रयोगबन्धः भदन्त ! कालतः कियच्चिारं भवति ? गोयमा! दुविहे पण्णत्ते, तं जहा- गौतम! द्विविधः प्रज्ञप्तः, तद्यथाअणादीए वा अपज्जवसिए, अणा-दीए अनादिकः वा अपर्यवसितः, अनादिकः वा वा सपज्जवसिए। एवं जाव सपर्यवसितः। एवं यावत् आन्तरायिकस्य। अंतराइयस्स॥ ४३५. भंते! ज्ञानावरणीय कर्म शरीर प्रयोग बंध काल की अपेक्षा कितने काल का है? गौतम! ज्ञानावरणीय कर्म शरीर प्रयोग बंध काल की अपेक्षा दो प्रकार का प्रज्ञप्त है, जैसे-अनादिक अपर्यवसित. अनादिक सपर्यवसित। इसी प्रकार यावत आंतरायिक कर्म शरीर प्रयोग बंध की वक्तव्यता। ४३६. नाणावरणिज्जकम्मासरीरप्पयोग- ज्ञानावरणीयकर्मकशरीरप्रयोगबन्धान्तरं बंधंतरं णं भंते! कालओ केवच्चिरं भदन्त! कालतः कियच्चिरं भवति? होइ? गोयमा! अणादीयस्स अपज्जव- गौतम ! अनादिकस्य अपर्यवसितस्य नास्ति सियस्स नत्थि अंतरं, अणादीयस्स अन्तरम, अनादिकस्य सपर्यवसितस्य सपज्जवसियस्स नत्थि अंतरं। एवं जाव। नास्ति अन्तरम् ! एवं यावत् आन्तरायिअंतराइयस्स॥ कस्य। ४३६. भंते ! ज्ञानावरणीय कर्म शरीर प्रयोग बंध का अंतर काल की अपेक्षा कितने काल का है? गौतम! अनादिक अपर्यवसित में अंतर नहीं है, अनादिक सपर्यवसित में अंतर नहीं है। इसी प्रकार यावत् आंतरायिक कर्म शरीर प्रयोग बंध के अंतर की बक्तव्यता। ४३७. 'भंते ! इन ज्ञानावरणीय कर्म शरीर के देश बंधक और अबंधक जीवों में कौन किनसे अल्प, बहू, तुल्य अथवा विशेषाधिक है? ४३७. एएसि णं भंते! जीवाणं एतेषां भदन्त ! जीवानां ज्ञानावरणीयस्य नाणावरणिज्जस्स कम्मस्स देस- कर्मणः देशबन्धकानाम्, अबन्धकानां च बंधगाणं, अबंध-गाण य कयरे कतरे कतरेभ्यः अल्पाः वा? बहुकाः वा? कयरेहितो अप्पा वा? बहया वा? तुल्याः वा, विशेषाधिकाः वा? तुल्ला वा? विसेसाहिया वा? गोयमा! सव्वत्थोवा जीवा नाणा- गौतम ! सर्वस्तोकाः जीवाः ज्ञानावरणीयस्य वरणिज्जस्स कम्मस्स अबंधगा। कर्मणः अबन्धकाः, देशबन्धकाः अनन्तदेसबंधगा अणंतगुणा। एवं आउय-वज्जं गुणाः। एवम् आयुष्कवण यावत् जाव अंतराइयस्स॥ आन्तरायि-कस्य। गौतम! ज्ञानावरणीय कर्म शरीर के अबंधक जीव सबसे अल्प हैं, देश बंधक अनन्त गुण है। इसी प्रकार आयुष्य वर्जित यावत् आंतरायिक कर्म शरीर की वक्तव्यता। ४३८. आउयस्स पुच्छा! आयुष्कस्य पृच्छा! गोयमा! सव्वत्थोवा जीवा आउयस्स गौतम! सर्वस्तोकाः जीवाः आयुष्कस्य कम्मस्स देसबंधगा, अबंधगा कर्मणः देशबन्धकाः, अबन्धकाः संख्येयसंखेज्जगुणा॥ गुणाः। ४३८. आयुष्य कर्म शरीर प्रयोग देश बंधक और अबंधक जीवों की पृच्छा। गौतम! आयुष्य कर्म शरीर के देश बंधक जीव सबसे अल्प हैं, अबंधक संख्येय गुण हैं। १. भ. वृ.८.४३८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003595
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages600
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size15 MB
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