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श.८ : उ.९ : सू. ४२९-४३१
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भगवई
४२९. सुभनामकम्मासरीरप्पयोगबंधे णं भंते! कस्स कम्मस्स उदएणं? गोयमा! काउन्जुययाए,भावुज्जुययाए, भासुन्जुययाए, अविसंवादणाजोगेणं सुभनामकम्मासरीरप्पयोगनामाए कम्मस्स उदएणं सुभनामकम्मासरीरप्पयोगबंधे।
शुभनामकर्मकशरीरप्रयोगबन्धः भदन्त! कस्य कर्मणः उदयेन? गौतम! कायर्जुकतया, भावर्जुकतया, भाषर्जुकतया, अविसंवादनायोगेन शुभनामकर्मकशरीरप्रयोगनाम्नः कर्मणः उदयेन शुभनामकर्मकशरीरप्रयोगबन्धः।
४२९. 'भंते! शुभनाम कर्म शरीर प्रयोग बंध किस कर्म के उदय से होता है? गौतम ! शुभनाम कर्म शरीर प्रयोग बंध के पांच हेतु है-काया की ऋजुता, भाव की ऋजुता, भाषा की ऋजुता, अविसंवादन योग, शुभ नाम कर्म शरीर प्रयोग नामकर्म का उदय।
४३०. असुभनामकम्मासरीरप्पयोग बंधे अशुभनामकर्मकशरीरप्रयोगबन्धः भदन्त! ४३०. भंते! अशुभ नाम कर्म शरीर प्रयोग णं भंते! कस्स कम्मस्स उदएणं? कस्य कर्मणः उदयेन?
बंध किस कर्म के उदय से होता है? गोयमा! कायअणुज्जुययाए, भाव- गौतम! कायानजुकतया, भावानृजुकतया गौतम! अशुभ नामकर्म शरीर प्रयोग बंध अणुज्जुययाए, 'भासअणुज्जुययाए भाषानृजुकतया, विसंवादनायोगेन अशुभ- के पांच हेतु हैं-काया की अऋजुता, भाव विसंवादणाजोगेणं असुभनाम-कम्मा. नामकर्मकशरीरप्रयोगनाम्नः कर्मणः उदयन की अऋजुता, भाषा की अऋजुता, सरीरप्पयोग-नामाए कम्मस्स उदएणं अशुभनामकर्मकशरीरप्रयोबन्धः।
विसंवादन योग, अशुभ नाम कर्म शरीर असुभनामकम्मासरीरप्प-योगबंधे॥
प्रयोग नामकर्म का उदय।
भाष्य
१. सूत्र ४२९.४३०
नाम कर्म के दो प्रकार हैं-शुभ नाम कर्म और अशुभ नाम कर्म। शुभ नाम कर्म के चार हेतु१. काया का ऋजु व्यवहार।। २. भाषा का ऋजु व्यवहार। ३. भाव का ऋजु व्यवहार।
४. अविसंवादन योग-अविरोधी, धोखा न देने वाली या प्रतिज्ञात अर्थ को निभाने वाली प्रवृत्ति ।
विशेष जानकारी के लिए ठाणं (४/१०२) और उत्तराध्ययन
(२९/४९-५१) द्रष्टव्य है।
अशुभ नाम कर्म के चार हेतु१. काया का माया पूर्ण व्यवहार। २. भाषा का माया पूर्ण व्यवहार। ३. भाव का माया पूर्ण व्यवहार। ४. विसंवादन योग-अन्यथा स्वीकार और अन्यथा आचरण।'
तत्त्वार्थाधिगम सूत्र में अशुभ नाम कर्म के योग वक्रता और विसंवादन ये हेतु निर्दिष्ट हैं। भाष्य में योग वक्रता का अर्थ मन, वचन और काया का वक्रतापूर्ण व्यवहार किया गया है।
ला या
४३१. उच्चागोयकम्मासरीरप्पयोग-बंधे उच्चगोत्रकर्मकशरीरप्रयोगबन्धः भदन्त! ४३१. "भंते! उच्च गोत्र कर्म शरीर प्रयोग णं भंते! कस्स कम्मस्स उदएणं? कस्य कर्मणः उदयेन?
बंध किस कर्म के उदय से होता हे ? गोयमा! जातिअमदेणं, कुलअम-देणं, गौतम! जात्यमदेन, कुलामदेन, बला- गौतम ! उच्च गोत्र कर्म शरीर प्रयोग बंध बलअमदेणं, रुवअमदेणं, तव-अमदेणं. मदेन.रूपामदेन, तपः अमदेन, श्रुतामदेन, . के नौ हेतु है-जाति का मद न करना, कुल सुयअमदेणं, लाभअमदेणं, इस्सरिय- लाभामदेन, ऐश्वर्यामदेन उच्चागोत्रकर्मक- का मद न करना, बल का मद न करना, अमदेणं उच्चागोयकम्मा सरीरप्पयोग- शरीरप्रयोगनाम्नः कर्मणः उदयेन उच्च- रूप का मद न करना, तप का मद न नामाए कम्मरस उदएणं उच्चागोय- गोत्रकर्मकशरीरप्रयोगबन्धः।
करना, श्रुत का मद न करना, लाभ का मद कम्मा-सरीरप्पयोगबंधे ॥
न करना, ऐश्वर्य का मद न करना, उच्च गोत्र कर्म शरीर प्रयोग नाम कर्म का उदय।
निरि आय ना धार. ते पिण एकारण चिई। सावध आज्ञा बार, एपिण प्रकृति पाप नीं।। नियंच युगलिया जंत, तेह तणो जे आउखो। पुन्य प्रकृति दीसंत, निश्चै जाणे केवली।। मनुष्य आयु नां ताहि, बहलपणे कारण चिह। निरवद्य आज्ञा माहि, पुन्य प्रकृति ए तो भणी।। असन्नी मनुष्य नों जोय, आयु पाप प्रकृति अछ। तेह तणो अवलोय. कथन इहां कीधो नहीं।। देव आयु ना देव, कारण चिहं निरवद्य कया। चिउं आज्ञा में पेख, पुन्य प्रकृति ए ने भणी।।
आयु कर्म अवलोय, पुण्य पाप कहियै बिहु। सावणद निरवद सोय, प्रत्यक्ष करणी पेखत्नो।। पुन्य आयु कर्म जेह, तनु नाम कर्म मैं उदय करि। जोग भला प्रक्तेह, मोह रहित कारज अछै॥ पाप आउखो पेख, तनु नाम उदय जोग प्रवर्ते।
मोह सहित सुविशेख, ते माटै अशुभ जोग छ।। (ज, स.) १. भ. वृ. ८/४१९-४२९-विसंवादनं अन्यथा प्रतिपन्नस्य अन्यथा करणम। २.त. सू. भा. वृ. ६/२१-योगवकता विसंवादनं चाशुभस्य नाम्नः ।
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