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________________ श. ८ : उ. ९ : सू. ४२५-४२८ जुगुप्सा - सदाचार से घृणा करना, अपवाद में रुचि रखना आदि । चारित्र मोहनीय के बंध के हेतु साधुजनों की गर्हा करना । धर्माभिमुख लोगों के सामने विघ्न उपस्थित करना, देशव्रती ४२६. तिरिक्खजोणियाउयकम्मासरीरप्पयोगबंधे णं भंते! कस्स कम्मस्स उदपणं ? गोयमा ! माइल्लयाए, नियडिल्ल-याए, अलियवयणेणं, कूडतुल- कूडमाणेणं कम्मासरीर तिरिक्खजोणियाउय प्पयोगनामाए कम्मस्स उदएणं तिरिक्खजोणियाउयकम्मा सरीरप्पयोगबंधे ॥ ४२५. नेरइयाउयकम्मासरीरप्पयोग-बंधे नैरयिकायुष्क कर्मकशरीर प्रयोगबन्धः भदन्त ! कस्य कर्मणः उदयेन ? गौतम ! महारम्भेण, महापरिग्रहेण, पञ्चेन्द्रियवधेन, कुणपाहारेन नैरयिकायुष्ककर्मकशरीरप्रयोगनाम्नः कर्मणः उदयेन नैरियकायुष्ककर्मकशरीरप्रयोगबन्धः । णं भंते! कस्स कम्मस्स उदएणं ? गोयमा ! महारंभयाए, महापरिग्गहयाए, पंचिंदियवहेणं, कुणिमाहारेणं नेरइयाउयकम्मासरीरप्पयोगनामाए कम्मस्स उदएणं नेरइयाउयकम्मासरीरप्पयोगबंधे ॥ - ४२७. मस्साउयकम्मासरीरप्पयोग बंधे णं भंते! कस्स कम्मस्स उदएणं ? गोयमा ! पगइभद्दयाए, पगइविणीययाए, साणुक्कोसयाए, अमच्छरियाए मणुस्साउयकम्मासरीरप्पयोगनामाए कम्मस्स उदपणं मस्साउयकम्मासरीरप्पयोगबंधे ॥ भगवई व्यक्तियों की साधना में विघ्न डालना, मद्यमांस आदि का सेवन, चारित्र गुण को दूषित करना, दूसरे के क्रोध आदि कषाय और हास्य आदि नो कषाय की उदीरणा करना आदि। तुलना के लिए तत्त्वार्थ वार्तिक और सर्वार्थसिद्धि द्रष्टव्य है । १. न. सू. भा. वृ. ६/ १५ का भाष्य । २. त. रा. वा. ६/ १४ की वृत्ति। Jain Education International १६४ तिर्यग्योनि कायुष्ककर्मकशरीरप्रयोगबन्धः भदन्त ! कस्य कर्मणः उदयेन ? गौतम! मायितया, निकृतया, अलीकवचनेन, कूटतुला - कूटमानेन तिर्यग्योनिकायुष्ककर्मकशरीरप्रयोगनाम्नः कर्मणःउदयेन तिर्यग्योनिकायुष्ककर्मकशरीरप्रयोगबन्धः । ४२८. देवाउयकम्मासरीरप्पयोगबंधे णं देवायुष्ककर्मकशरीरप्रयोगबन्धः भदन्त ! कस्य कर्मणः उदयेन ? भंते! कस्स कम्मस्स उदएण ? गोयमा ! सरागसंजमेणं, संजमासंजमेणं, बालतवोकम्मेणं, अकामनिज्जराए देवाउयकम्मासरीरप्पयोगनामाए कम्मस्स उदपणं देवाउयकम्मासरीरप्पयोगबंधे ॥ गौतम! सरागसंयमेन, संयमासंयमेन, बालतपःकर्मणा, अकामनिर्जरया देवायुष्ककर्मकशरीरप्रयोगनाम्नः कर्मणः उदयेन देवायुष्ककर्मशरीरप्रयोगबन्धः । १. सूत्र ४२५-४२८ आयुष्य कर्म के चार प्रकार हैं-नरकायु, तिर्यंच आयु, मनुष्य आयु और देवायु । प्रत्येक आयुष्य बंध के चार-चार हेतु बतलाए गए हैं। मनुष्यायुष्ककर्मक शरीरप्रयोगबन्धः भदन्त ! कस्य कर्मणः उदयेन ? गौतम ! प्रकृतिभद्रतया, प्रकृतिविनीततया, सानुक्रोशेन, अमत्सरितया मनुष्यायुष्ककर्मकशरीरप्रयोगनाम्नः कर्मणः उदयेन मनुष्यायुष्ककर्मकशरीरप्रयोगबन्धः । भाष्य ४२५. भंते! नैरयिक आयुष्य कर्म शरीर प्रयोग बंध किस कर्म के उदय से होता है ? गौतम! नैरयिक आयुष्य कर्म शरीर प्रयोग बंध के पांच हेतु हैं - महारंभ, महापरिग्रह पंचेन्द्रिय वध, मांसाहार, नैरयिक आयुष्य कर्म शरीर प्रयोग नाम कर्म का उदय । ४२६. भंते! तिर्यक्योनिक आयुष्य कर्म शरीर प्रयोग बंध किस कर्म के उदय से होता है ? For Private & Personal Use Only गौतम ! तिर्यक्ोनिक आयुष्य कर्म शरीर प्रयोग बंध के पांच हेतु हैं- माया, कूट माया, असत्य वचन, कूटतोल- कूटमाप, तिर्यक्योनिक आयुष्य कर्म शरीर प्रयोग नाम कर्म का उदय । ४२७. भंते! मनुष्य आयुष्य कर्म शरीर प्रयोग बंध किस कर्म के उदय होता है ? गौतम ! मनुष्य आयुष्य कर्म शरीर प्रयोग बंध के पांच हेतु हैं-प्रकृति भद्रता, प्रकृति विनीतता, सानुक्रोशता, अमत्सरता. मनुष्य आयुष्य कर्म शरीर प्रयोग नामकर्म का उदय । ४२८. भंते! देव आयुष्य कर्म शरीर प्रयोग बंध किस कर्म के उदय से होता है ? गौतम! देव आयुष्य कर्म शरीर प्रयोग बंध के पांच हेतु हैं-सराग संयम, संयमासंयम, बालतपः कर्म, अकाम निर्जरा, देवायुष्य कर्म शरीर प्रयोग नामकर्म का उदय । नरका - नरकायु के चार हेतु १. महारंभ - अभयदेवसूरि ने महा का अर्थ अपरिमित तथा आरंभ का अर्थ कृषि आदि का आरंभ किया है।" तत्त्वार्थ में महा के ३. सर्वार्थसिद्धि, ६ / १४ की वृत्ति । ४. भ. वृ. ८/४१९-४२३- अपरिमितिकृष्यादि आरंभतया । www.jainelibrary.org
SR No.003595
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages600
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size15 MB
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