SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 185
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भगवई श.८ : उ.९ : सू. ४२४ सात वेदनीय असातवेदनीय सातवेदनीय असातवेदनीय ५. प्राण, भूत, जीव और सत्त्वों ५. दूसरों को पीटने से। ५. संयमासंयम ५. वध को विलाप या रुदन कराकर आंसून बहाने से। ६. प्राण, भूत. जीव और सत्त्वों ६. दूसरे जीवों को परिताप देने से । ६. अकामनिर्जरा ६. परिवेदन-ये असानाको न पीटने से। ७. बालतपोयोग वेदनीय कर्म के आस्रव है। ७. प्राण. भूत, जीव और सत्वों ७. बहुत से प्राण, भूत, जीव, सत्त्वों ८. क्षांति। को परिताप न देने से। को दुःख पहुंचाने से यावत परिताप | ९. शौच-ये सात वेदनीय देने से। कर्म के आस्रव हैं। ४२४. मोहणिज्जकम्मासरीरप्पयोग-बंधे ___मोहनीयकर्मकशरीरप्रयोगबन्धः? भदन्त! ४२४. 'भंते! मोहनीय कर्म शरीर प्रयोग बंध णं भंते! कस्स कम्मस्स उदएणं? कस्य कर्मणः उदयेन! किस कर्म के उदय से होता है? गोयमा! तिव्वकोहयाए, तिव्व- गौतम! तीवक्रोधेन, तीव्रमानेन, तीव्र- गौतम! मोहनीय कर्म शरीरप्रयोग बंध के माणयाए, तिव्वमाययाए तिव्व- मायया, तीव्रलोभेन, तीव्रदर्शनमोहनीयेन, सात हेतु हैं-तीव्र क्रोध, तीव्र मान, तीव्र लोभयाए, तिव्वदंसणमोहणिज्ज-याए, तीव्रचरित्र-मोहनीयेन, मोहनीयकर्मकशरीर. माया, तीव्र लोभ, तीव्र दर्शन मोहनीय, तिव्वचरित्तमोहणिज्जयाए मोहणिज्ज - प्रयोगनाम्नः कर्मणः उदयेन मोहनीयकर्मक- तीव्र चारित्र मोहनीय, मोहनीय कर्म शरीर कम्मासरीरप्पयोग-नामाए कम्मस्स शरीरप्रयोग-बन्धः। प्रयोग नामकर्म का उदय। उदएणं मोहणिज्ज-कम्मासरीरप्पयोगबंधे॥ भाष्य १ सूत्र ४२४ होने वाला तीव्र आत्म परिणाम बतलाया गया है। सिद्धसेनगणि ने मोहनीय कर्म के दो प्रकार है-दर्शन मोहनीय और चारित्र मोहनीय कर्म के आस्रवों का विस्तारपूर्वक उल्लेख किया हैमोहनीय। क्रोध, मान, माया और लोभ-ये चारित्र मोहनीय के भेद नो कषाय : बंध के हेतु हैं। तीव्र चारित्र मोहनीय का पृथक उल्लेख हास्य, रति, अरति स्त्रीवेद-शब्द आदि इन्द्रिय विषयों में आसक्ति, ईर्ष्यालुता, आदि नो- कषाय के लिए किया गया है, यह वृत्तिकार का अभिमत अनृतवादिता, वक्रता, परस्त्री सेवन। है। यह संभावना भी की जा सकती है कि तीव्र क्रोध आदि के पुरुषवेद-ऋजु आचरण, क्रोध आदि की मंदता, स्वदार संतोष, उल्लेख के पश्चात मोहनीय कर्म की दो मूल प्रकृतियों का उल्लेख अनीालुता। किया गया है। नपुंसकवेद-तीव्र क्रोध आदि से पशुओं का वध करना, मुंडन तीव्र क्रोध-तीव्र क्रोध के उदय से होने वाला आत्म परिणाम। आदि करना, अप्राकृतिक मैथुन, परस्त्री से बलात्कार, विषय की तीव्र तीव्र मान-तीव्र मान के उदय से होने वाला आत्मपरिणाम। ग्रंथि। तीव्र माया-तीव्र माया के उदय से होने वाला आत्म परिणाम। हास्य-अट्टहास अथवा व्यंग्य, दीन मनुष्य का मखील करना, तीव्र लोभ-तीव्र लोभ के उदय से होने वाला आत्म परिणाम। कुत्सित रोग को बढ़ाने वाला हंसी मजाक करना, बहुत प्रलाप करना, तीव्र दर्शन मोहनीय-तीव्र मिथ्यात्व के उदय से होने वाला हास्यशीलता आदि। आत्म परिणाम। शोक-स्वयं शोकातुर होना, दूसरे के शोक को बढ़ाना, दूसरों उमास्वाति ने दर्शन मोहनीय बंध के पांच हेतु बतलाए हैं।' का शोक देखकर राजी होना आदि। १. केवली का अवर्णवाद २. श्रुत का अवर्णवाद ३. संघ का रति-विचित्र प्रकार की क्रीड़ा करना, दूसरे के चित्त को अवर्णवाद ४. धर्म का अवर्णवाद ५. देव का अवर्णवाद। आकृष्ट करना, उत्सुकता आदि। स्थानांग में दुर्लभ बोधि के पांच हेतु बतलाए हैं। वे तुलना के अरति-दूसरे के रहस्य का प्रकाशन करना, रति में बाधा लिए द्रष्टव्य है। डालना, पापशीलता, अकुशल क्रिया को प्रोत्साहन देना, चोरी तीव्र चारित्र मोहनीय तीव्र चारित्र मोह के उदय से होने वाला। आदि। आत्म परिणाम। भय-स्वयं भयभीत होना, दूसरों को भयभीत करना, निर्दयता. तत्त्वार्थ सूत्र में चारित्रमोह का आस्रव तीव्र कषाय के उदय से त्रास देना आदि। १. भ. वृ.८.४१०.४२९। । २. न. स. ६.१४ केवलीश्रुतसंघधर्मदेवावर्णवादी दर्शनमोहस्य। ३. ठाणं, ५/१३३। १. न. सू. ६/१५-कषायोदयात् नीवात्मपरिणामश्चारित्रमाहस्य। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003595
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages600
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy