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________________ श. ८ : उ.९ : सू. ४१६-४२० भगवई ४१६. तेयासरीरप्पयोगबंधे णं भंते! कालओ केविच्चरं होइ? गोयमा! दुविहे पण्णत्ते, तं जहा- अणादीए वा अपज्जवसिए, अणा-दीए वा सपज्जवसिए॥ तैजसशरीरप्रयोगबन्धः भदन्त! कालतः ४१६. भंते! तैजस शरीर प्रयोग बंध काल कियच्चिरं भवति? की अपेक्षा कितने काल का है? गौतम! द्विविधः प्रज्ञप्तः, तद्यथा- गौतम ! तैजस शरीर प्रयोग बंध काल की अनादिकः वा अपर्यवसितः, अनादिकः वा अपेक्षा दो प्रकार का प्रज्ञप्त है, जैसेसपर्यवसितः। अनादिक अपर्यवसित, अनादिक सपर्यवसित। ४१७. तेयासरीरप्पयोगबंधंतरं णं भंते! तैजसशरीरप्रयोगबन्धान्तरं भदन्तकालतः ४१७. भंते! तैजस शरीर प्रयोग बंध का कालओ केवच्चिरं होइ? कियच्चिरं भवति? अंतर काल की अपेक्षा कितने काल का गोयमा! अणादीयस्स अपज्ज- गौतम ! अनादिकस्य अपर्यवसितस्य नास्ति वसियस्स नत्थि अंतरं, अणादी-यस्स। अन्तरम, अनादिकस्य सपर्यवसितस्य सपज्जवसियस्स नत्थि अंतरं॥ नास्ति अन्तरम। गौतम! अनादिक अपर्यवसित में अंतर नहीं है, अनादिक सपर्यवस्मित में अंतर नहीं ४१८. भंते! इन तैजस शरीर के देशबंधक और अबंधक जीवों में कौन किनसे अल्प, बहु, तुल्य अथवा विशेषाधिक है? ४१८. एएसि णं भंते! जीवाणं तेया- एतेषां भदन्त! जीवानां तैजसशरीरस्य सरीरस्स देसबंधगाणं, अबंधगाण य देशबन्धकानाम्. अबन्धकानां च कतरे कयरे कयरेहितो अप्पा वा? बहुया वा? कतरेभ्यः अल्पाः वा ? बहुकाः वा? तुल्याः तुल्ला वा ? विसेसा-हिया वा? वा. विशेषाधिकाः वा? गोयमा! सव्वत्थोवा जीवा तेया- गौतम! सर्वस्तोकाः जीवाः तैजसशरीरस्य सरीरस्स अबंधगा, देसबंधगा अबन्धकाः, देशबन्धकाः अनन्तगुणाः। अणंतगुणा॥ गौतम! तैजस शरीर के अबंधक जीव सबसे अल्प हैं, देशबंधक अनंतगुण हैं। कम्मासरीरप्पयोगं पड़च्च कर्मकशरीरप्रयोगं पडुच्च४१९. कम्मासरीरप्पयोगबंधे णं भंते! कर्मकशरीरप्रयोगबन्धः भदन्त ! कतिविधः कतिविहे पण्णत्ते? प्रज्ञप्तः? गोयमा! अट्ठविहे पण्णत्ते, तं जहा- गौतम ! अष्टविधः प्रज्ञप्तः, तद्यथा-ज्ञानानाणावरणिज्जकम्मासरीरप्पयोग-बंधे वरणीयकर्मकशरीरप्रयोगबन्धः यावत् जाव अंतराइयकम्मासरीरप्पयोगबंधे। आन्तरायिककर्मकशरीरप्रयोगबन्धः। कर्म शरीर प्रयोग की अपेक्षा ४१९. 'भंते ! कर्म शरीर प्रयोग बंध कितने प्रकार का प्रज्ञप्त है? गौतम ! कर्म शरीर प्रयोग बंध आठ प्रकार का प्रज्ञप्त है, जैसे-ज्ञानावरणीय कर्म शरीर प्रयोग बंध यावत् आंतरायिक कर्म शरीर प्रयोग बंध। ४२०. नाणावरणिज्जकम्मासरीरप्प- ज्ञानावरणीयकर्मक . शरीरप्रयोगबन्धः ४२०. भंते ! ज्ञानावरणीय कर्म शरीर प्रयोग योगबंधे णं भंते! कस्स कम्मस्स भदन्त ! कस्य कर्मणः उदयेन? बंध किस कर्म के उदय से होता है ? उदएणं? गोयमा! नाणपडिणीययाए, नाण- गौतम! ज्ञानप्रत्यनीकतया, ज्ञाननिह्नवनेन, गौतम! ज्ञानावरणीय कर्म शरीर प्रयोग णिण्हवणयाए, नाणंतराएण, नाण- ज्ञानान्तरायण, ज्ञानप्रदोषेण, ज्ञानात्या- बंध के सात हेतु हैं-ज्ञान का विरोध अथवा प्पदोसेणं,नाणच्चासातणयाए,नाण. शातनया, ज्ञानविसंवादनायोगेन ज्ञाना- प्रतिकूल आचरण, ज्ञान का अपलाप, ज्ञान विसंवादणाजोगेणं नाणावरणिज्ज- वरणीयकर्मकशरीरप्रयोगनाम्नः कर्मणः के ग्रहण में विघ्न उपस्थित करना, ज्ञान के कम्मासरीरप्पयोगनामाए कम्मस्स उदयेन ज्ञानावरणीयकर्मकशरीरप्रयोग- प्रति अप्रीति रखना, ज्ञान की अवहेलना उदएणं नाणावरणिज्जकम्मासरीर- बन्धः। करना, ज्ञान में विसंवाद दिखलाना, प्पयोगबंधे॥ ज्ञानावरणीय कर्म शरीर प्रयोग नामकर्म का उदय। For Private & Personal use only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.003595
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages600
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size15 MB
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