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________________ भगवई श. ८ : उ.९ : सू. ४१५ वायु काय एक समय- एक समय कम एक समयाधिका अतमहतंऔदारिक द्रष्टव्य सूत्र तीन हजार वर्ष। तीन हजार वर्ष। द्रष्टव्य सूत्र शरीर-प्रयोग बंध ३७६ का भाष्य। ३७९-३८१ का भाष्य। तिर्यंच मनुष्य एक समय कम पूर्वकोटि एक अंतर्मुहूर्तऔदारिक शरीर तीन पल्योपम समयाधिक। द्रष्टव्य सूत्र प्रयोग बंध द्रष्टव्य ३७६. तिर्यंच पंचेन्द्रिय ३७९-३८१ ३७८ का भाष्य। मरकर वापस का भाष्य अन्तर रहित तिर्यंच पंचंन्द्रिय में जन्में इसलिए पूर्वकोटि एक समयाधिक। समुच्चय वैकिय- जघन्य-एक एक समय- | एक समय एक समय-| अनन्त वनस्पति | एक समय | अनन्त वनस्पति शरीर प्रयोग बंध समय। उत्कृष्ट-२ औदारिक शरीरी |कम ३३ सागर काल-वनस्पति काल द्रष्टव्य समय। वैक्रिय जीव वैक्रिय शरीर नरक या देवों में काय की काय अनयोगद्वार शरीरी जीवों में | करते हुए प्रथम उत्पद्यमान जीव स्थिति अनंत सूत्र ६१६ का उत्पन्न होता है। | समय में सर्वबंध | प्रथम समय में काल की हैं। का भाष्य। हुआ प्रथम समय | तथा दूसरे समय | सर्वबंधक होकर द्रष्टव्य अनुयोगमें सर्व बंधक में देश बंधक। |शेष समय में द्वार ६१६ का होता है। होकर तुरन्त मर | देश बंधक ही भाष्य। यदि औदारिक | जाए तो देश बंध | होता है। शरीर वाला जघन्य एक समय वैक्रिय रूप बनते | का। समय मरकर देव या नरक में उत्पन्न होता है तो वह प्रथम समय मेंसर्व बंध करता है इसलिए जघन्य एक समय उत्कृष्ट-२ समय। तिर्यच पंचेन्द्रिय एक समय- एक समय- अंतर्मुहर्न । अन्तर्मुहूर्त | प्रत्येक पूर्ण-कोटि अन्तर्मुहूर्त | प्रत्येक पूर्वकोटि मनुष्य वैक्रिय तिर्यंच पंचेन्द्रिय | वैक्रिय का निर्माण | द्रष्टव्य सूत्र | द्रष्टव्य सूत्र द्रष्टव्य सूत्र | द्रष्टव्य द्रष्टव्य सूत्र शरीर प्रयोग बंध वैक्रिय के प्रथम | करते समय |३७९-३८१ ३७९-३८१ | ३६८ का भाष्य। सूत्र ३६८ ३६८ का भाष्य। समय में सर्वबंध | दूसरे बंधक समय का भाष्य। | का भाष्य। का भाष्य करके मृत्यु को | में देश होकर । प्राप्त होता है । मृत्यु हो जाती है। वायू वैक्रिय शरीर जघन्य-एक पल्यापम का पल्यापम का प्रयोग बंध समय ऊपरवत असंख्यातवां असंख्यातवां रत्नप्रभा वैक्रिय भाग भाग शरीर प्रयोग बंध तीन समय कम | एक समय कम शेष छहनरक और .. १० हजार वर्ष | एक सागर १० भवनपति, तीन समय कम एक समय कम व्यंतर, ज्योतिष, ... जिसकी जितनी | जिसकी जितनी वैमानिक देव वैक्रिय स्थिति है उतनी स्थिति है उतनी शरीर प्रयोग बंध Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003595
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages600
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size15 MB
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