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श. ८ : उ. ९ : सू. ४१३-४१५
य,
देवपंचिंदियतेयासरीरप्पयोगबंधे अपज्जत्तासव्ववसिद्ध अणुत्तरोववाइयकप्पातीत वेमाणियदेवपंचिंदियतेयासरीरप्प-योगबंधेय ॥
४१४. तेयासरीरप्पयोगबंधे णं भंते! कस्स कम्मस्स उदएणं ?
गोयमा ! वीरिय- सजोग - सद्दव्वयाए पमादपच्चया कम्मं च जोगं च भवं च
आउयं वा पडुच्च तेयासरीरप्पयोगनामाए कम्मस्स उदएणं तेयासरीरप्पयोगबंधे ॥
४१५. तेयासरीरप्पयोगबंधे णं भंते! किं देसबंधे ? सव्वबंधे ?
गोयमा ! देसबंधे, नो सव्वबंधे ॥
समुच्चय
औदारिक शरीर-प्रयोग
बंध
एकेन्द्रिय शरीर प्रयोग
बंध
पृथ्वी औदारिक शरीर प्रयोग
बंध
अप, तैजस
वनस्पति, द्वीन्द्रिय त्रिन्द्रिय, चतुरि न्द्रिय, औदारिक शरीर प्रयोग बंध
एक समय-द्रष्टव्य | सूत्र ३७६-३७८ का भाष्य
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१. सूत्र ४१५
और कर्म शरीर अनादि हैं। नए जन्म के साथ इनकी रचना नहीं शरीर रचना के प्रथम समय में जब सर्व पर्याप्तियों के लिए होती इसलिए इनका सर्वबंध नहीं होता, केवल देशबंध ही होता पुद्गलों का ग्रहण किया जाता है, उस समय सर्वबंध होता है। तैजस है।' द्रष्टव्य यंत्रऔदारिक, वैक्रिय शरीर प्रयोग बंध की स्थिति एवं अंतर काल का यंत्र
बंध स्थिति
शरीर प्रयोग बंध सर्वबंध स्थिति
1:
देवपञ्चेन्द्रियतैजस शरीरप्रयोगबन्धश्च, अपर्याप्तक सर्वार्थसिद्ध अनुत्तरौपपातिककल्पातीतवैमानिकदेवपञ्चेन्द्रियतैजसशरीरप्रयोगबन्धश्च ।
तैजसशरीरप्रयोगबन्धः कर्मणः उदयेन ? गौतम ! वीर्य सयोग सद्द्रव्यतया प्रमादप्रत्ययात् कर्म च योगं च भवं च आयुष्कं वा प्रतीत्य तैजसशरीरप्रयोगबन्धः ।
देश बंध स्थिति
जघन्य
एक समय-द्रष्टव्य सूत्र ३६७-३६८ का भाष्य
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तैजसशरीरप्रयोगबन्धः भदन्तः ! किं देशबन्धः ? सर्वबन्धः ?
गौतम ! देशबन्धः, नो सर्वबन्धः ।
भाष्य
तीन समय कम | क्षुल्लक भवद्रष्टव्य सूत्र ३७९३८१ का भाष्य
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भदन्त ! कस्य
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एक समय कम द्रष्टव्य सूत्र ३७६-३७८ का भाष्य
एक समय कम जिसकी जितनी
| उत्कृष्ट स्थिति हैजैसे अपकाय की उत्कृष्ट स्थिति
| सात हजार वर्ष है।
१. भ. बृ. ८/४१५- तेजसशरीरस्यानादित्वान्न सर्वबंधोस्ति तस्य प्रथमतः पदलोपादानरूपत्वादिति ।
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जघन्य
सर्वबंध का अंतर उत्कृष्ट एक समय तीन पल्ल्योपम
देशबंध का अंतर उत्कृष्ट जघन्य उत्कृष्ट तीन समय एक समयाधिक एक समय तीन समयाकम क्षुल्लक सागर पूर्वकोटि द्रष्टव्य सूत्र धिक ३३ सागर भव द्रष्टव्य और ३३ सागर- ३७९-३८१ द्रष्टव्य सूत्र सूत्र ३७९का भाष्य ३७९-३८१ ३८१ का भाष्य।
द्रष्टव्य सूत्र ३७६-३७८ का भाष्य ।
द्रष्टव्य सूत्र ३७९-३८१ का भाष्य
भाष्य ।
एक समयाधिक द्रष्टव्य सूत्र
| ३७९-३८१ का
भाष्य
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भगवई
भांति वक्तव्य है यावत् पर्याप्तक सर्वार्थसिद्ध अनुत्तरोपपातिक, कल्पातीत वैमानिक देव-पंचेन्द्रिय तेजस शरीर प्रयोग बंध। अपर्यासक सर्वार्थसिद्धअनुत्तरोपपातिक कल्पातीत वैमानिकदेव पंचेन्द्रिय तैजस शरीर प्रयोग बंध।
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४१४. भंते! तैजस शरीर प्रयोग बंध किस कर्म के उदय से होता है ?
गौतम ! तैजस शरीर प्रयोग बंध के तीन हेतु हैं - १. वीर्य सयोग सद्द्रव्यता २. प्रमाद ३. कर्म, योग, भव और आयुष्य सापेक्ष तैजस शरीर प्रयोग नामकर्म का उदय ।
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४१५. भंते! तैजस शरीर प्रयोग बंध क्या देश बंध है ? सर्व बंध है ?
गौतम ! देशबंध है, सर्वबंध नहीं है ?
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अंतरकाल
एक समयाधिक | जिसकी जितनी उत्कृष्ट है।
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अन्तर्मुहूर्त३७९-३८१ का भाष्य |
तीन समय
द्रष्टव्य सूत्र
३७१ का भाष्य ।
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