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________________ भगवई कालओ केवच्चिरं होइ ? गोमा ! सव्वबंधे एक्कं समयं, देसबंधे जहणेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसे व अंतोमुहुत्तं ॥ ४१०. आहारगसरीरप्पयोगबंधंतरं णं भंते! कालओ केवच्चिरं होइ ? गोयमा ! सव्वबंधंतरं जहणणेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं अनंतं कालं - अणताओ ओसप्पिणीओ उस्सप्पिओकालओ, खेत्तओ अणंता लोगाअवडपोग्गलपरियट्टं देसूणं । एवं देसबंधंतरं पि ॥ ४११. एएसि णं भंते! जीवाणं आहारगसरीरस्स देसबंधगाणं, सव्वबंधगाणं अबंधगाण य कयरे कयरेहिंतो अप्पा वा? बहुया वा ? तुल्ला वा ? विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवा जीवा आहारगसरीरस्स सव्वबंधगा, देसबंधगा संखेज्जगुणा, अबंधगा अनंत गुणा ।। तेयासरीरप्पयोगं पडुच्च ४१२. तेयासरीरप्पयोगबंधे णं भंते! कतिविहे पण्णत्ते ? गोयमा ! पंचविहे पण्णत्ते, तं जहाएगिंदियतेयासरीरप्पयोगबंधे, बेइंदियतेयासरीरप्पयोगबंधे जाव पंचिंदिय तेयासरीरप्पयोगबंधे ॥ ४१३. एगिंदियतेयासरीरप्पयोगबंधे णं भंते! कतिविहे पण्णत्ते ? एवं एएणं अभिलावेण भेदो जहा ओगाहणसंठाणे जाव पज्जत्ता सव्वट्ठसिद्धअणुत्तरोववाइय - कप्पातीतवेमाणिय १. भ. वृ. ८/४०८-४१०। १५७ कियच्चिरं भवति ? गौतम ! सर्वबन्धः एकं समयं देशबन्धः, जघन्येन अन्तर्मुहूर्त्तम्, उत्कर्षेणापि अन्तमुहूर्त्तम् । १. सूत्र ४०८-४११ आहारक शरीर की जघन्य और उत्कृष्ट अवधि अंतर्मुहूर्त है। आहारक शरीर का निर्माण करने वाला जीव प्रथम समय में सर्वबंधक Jain Education International आहारकशरीरप्रयोगबन्धान्तरं कालतः कियच्चिरं भवति ? भदन्त ! गौतम! सर्वबन्धान्तरं जघन्येन अन्तमुहूर्तम् उत्कर्षेण अनन्तं कालम् अनन्ताः अवसर्पिणीः उत्सर्पिणीः कालतः, क्षेत्रतः अनन्ताः लोकाः- अपार्धपुद्गलपरिवर्त देशोनम् । एवं देशबन्धान्तरमपि । एतेषां भदन्त ! जीवानाम् आहारक- शरीरस्य देशबन्धकानां सर्वबन्धकानाम्, अबन्धकानां च कतरे कतरेभ्यः अल्पाः वा? बहुकाः वा? तुल्याः वा? विशेषाधिकाः वा ? गौतम! सर्वस्तोकाः जीवाः आहारकशरीरस्य सर्वबन्धकाः, देशबन्धकाः संख्येयगुणाः, अबन्धकाः अनन्तगुणाः । भाष्य तैजसशरीरप्रयोगं प्रतीत्यतैजसशरीरप्रयोगबन्धः भदन्त ! कतिविधः प्रज्ञसः ? गौतम! पञ्चविधः प्रज्ञप्तः, तद्यथाएकेन्द्रियतैजसशरीरप्रयोगबन्धः, द्वीन्द्रियतैजसशरीरप्रयोगबन्धः यावत् पञ्चेन्द्रियतैजसशरीरप्रयोगबन्धः । एकेन्द्रियतैजसशरीरप्रयोगबन्धः भदन्त ! कतिविधः प्रज्ञप्तः ? एवम् एतेन अभिलापेन भेदः यथा अवगाहनासंस्थाने यावत् पर्याप्तसर्वार्थसिद्धअनुत्तरौपपातिककल्पातीतवैमानिक श. ८ : उ. ९ : सू. ४०९-४१३ काल की अपेक्षा कितने काल का है ? गौतम! सर्वबंध एक समय, देशबंध जघन्यतः अन्तर्मुहूर्त्त, उत्कृष्टतः भी अंत - है। For Private & Personal Use Only ४१०. भंते! आहारक शरीर प्रयोग के बंध का अंतर काल की अपेक्षा कितने काल का है ? गौतम! सर्वबंध का अंतर जघन्यतः अंतर्मुहूर्त, उत्कृष्टतः अनंत काल - अनंत अवसर्पिणी उत्सर्पिणी काल की अपेक्षा, क्षेत्र की अपेक्षा अनंत लोक-देशोन अपार्ध पुल परिवर्त। इसी प्रकार देशबंध के अंतर की वक्तव्यता । और उत्तरकाल में देश बंधक होता है। अंतर्मुहूर्त पश्चात् उसे अवश्य औदारिक शरीर में आना होता है, इसलिए देश बंध का जघन्य और उत्कृष्ट अंतर काल अन्तर्मुहूर्त होता है। ' ४११. भंते! इन आहारक शरीर के देश बंधक, सर्वबंधक और अबंधक जीवों में कौन किनसे अल्प, बहु, तुल्य अथवा विशेषाधिक है ? गौतम! आहारक शरीर के सर्वबंधक जीव सबसे अल्प हैं, देशबंधक संख्येय गुण हैं, अबंधक अनंतगुण हैं। तैजस शरीर प्रयोग की अपेक्षा४१२. भंते! तैजस शरीर प्रयोग बंध कितने प्रकार का प्रज्ञप्त है ? गौतम! तैजस शरीर प्रयोग बंध पांच प्रकार का प्रज्ञप्त है, जैसे- एकेन्द्रिय तैजस शरीरप्रयोग बंध, द्वीन्द्रिय तैजस शरीर प्रयोग बंध यावत् पंचेन्द्रिय तैजस शरीर प्रयोग बंध | ४१३. भंते! एकेन्द्रिय तैजसशरीर प्रयोग बंध कितने प्रकार का प्रज्ञप्त है ? इस प्रकार इस अभिलाप के अनुसार एकेन्द्रिय तैजस शरीर प्रयोग बंध के भेद प्रज्ञापना के अवगाहन संस्थान पद की www.jainelibrary.org
SR No.003595
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages600
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size15 MB
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