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भगवई
श. ८ : उ. ९ : सू. ३८७-३९१ सरीरप्पयोगबंधे? अवाउक्काइय- अवायुकायिक-एकेन्द्रियशरीरप्रयोगबन्धः? प्रयोग बंध है? अवायुकायिक एकेन्द्रिय एगिदियसरीरप्पयोगबंधे?
शरीर प्रयोग बंध है? एवं एएणं अभिलावेणं जहा ओगा. एवम् एतेन अभिलापेन यथा अवगाहन इसी प्रकार इस अभिलाप के अनुसार हणसंठाणे वेउब्वियसरीरभेदो तहा संस्थाने वैक्रिय-शरीरभेदः तथा भणितव्यः अवगाहन संस्थान नामक प्रज्ञापना के पद भाणियव्यो जाव पज्जत्तासव्वट्ठ-सिद्ध- यावत् पर्याप्तक-सर्वार्थसिद्ध-अनुत्तरोप- की भांति वैक्रिय शरीर का भेद वक्तव्य है अणुत्तरोववाइयकप्पातीयवेमाणियदेव- पातिककल्पातीत-वैमानिकदेवपञ्चेन्द्रिय- यावत् पर्याप्तक सर्वार्थसिद्ध, अनुत्तरोपपंचिंदियवेउब्बियसरीरप्पयोगबंधे य, वैक्रियशरीरप्रयोगबन्धश्च, अपर्याप्तक- पातिक और कल्पातीत वैमानिक देव अपज्जत्तासव्वट्ठ-सिद्धअणुत्तरोववाइय- सर्वार्थसिद्ध-अनुत्तरोप-पातिककल्पातीत- पंचेन्द्रियवैक्रियशरीरप्रयोग बंध, अपर्याप्तक कप्पातीयवेमा . णियदेवपंचिंदिय- वैमानिकदेवपञ्चेन्द्रियवैक्रिय-शरीरप्रयोग- सर्वार्थसिद्ध अनुत्तरोपपातिक कल्पातीतवेउब्वियसरीरप्पयोगबंधे य॥ बन्धश्च।
वैमानिकदेव पंचेन्द्रियवैक्रियशरीरप्रयोग
बंध।
भाष्य १.सूत्र ३८७
ओगाहण संठाणे-यह प्रज्ञापना का इक्कीसवां पद है। वैक्रिय शरीर की जानकारी के लिए द्रष्टव्य प्रज्ञापना पद २१/४९-५५।
३८८. वेउव्विसरीरप्पयोगबंधे णं भंते! वैक्रियशरीरप्रयोगबन्धः भदन्त! कस्य कस्स कम्मरस्स उदएण?
कर्मणः उदयेन? गोयमा! बीरिय-सजोग-सहव्वयाए गौतम! वीर्य-सयोग-सद्व्यतया प्रमाद- पमादपच्चया कम्मं च जोगं च भवं च प्रत्ययात् कर्म च योगं च भवं च आयुष्कं च आउयं च लद्धिं वा पडुच्च लब्धिं वा प्रतीत्य वैक्रियशरीरप्रयोगनाम्नः वेउब्वियसरीरप्पयोगनामाए कम्म-स्स कर्मणः उदयेन वैक्रियशरीरप्रयोगबन्धः। उदएणं वेउब्विय-सरीरप्पयोग-बंधे।।
३८८. भंते! वैक्रिय शरीर प्रयोग बंध किस कर्म के उदय से होता है? गौतम! वैक्रियशरीरप्रयोग बंध के तीन हेतु हैं-१. वीर्यसयोग सद्रव्यता, २. प्रमाद, ३. कर्म योग, भव. आयुष्य और लब्धि सापेक्ष वैक्रिय शरीर प्रयोग नाम कर्म।
३८९. वाउक्काइयएगिदियवेउब्वियसरीर- वायुकायिक-एकेन्द्रियवैक्रियशरीरप्रयोग- प्पयोगपुच्छा।
पृच्छा। गोयमा! वीरिय-सजोग-सद्दव्वयाए एवं गौतम ! वीर्य-सयोग-सद्व्यतया एवं चैव चेव जाव लद्धिं पडुच्च वाउ. यावत् लब्धिं प्रतीत्य वायुकायिकक्काइयएगिंदियवे उब्वियसरीरप्प. एकेन्द्रिय- वैक्रियशरीरप्रयोगबन्धः। योगबंधे॥
३८९. वायुकायिक एकेन्द्रिय वैक्रिय शरीर प्रयोग के बंध की पृच्छा। गौतम! वायुकायिक एकेन्द्रिय वैक्रिय शरीर प्रयोग बंध के तीन हेतु हैं-वीर्य सयोग सद्रव्यता यावत् लब्धि सापेक्ष वैक्रिय शरीर प्रयोग नाम कर्म।
३९०. रयणप्पभापुढविनेरइयपंचिंदिय- रत्नप्रभापृथिवीनरयिकपञ्चेन्द्रियवैक्रियशरीर- ३९०. भंते! रत्नप्रभा पृथ्वी नैरयिक
वेउव्वियसरीरप्पयोगबंधे णं भंते! प्रयोगबन्धः भदन्त कस्य कर्मणः उढयेन? पंचेन्द्रिय वैक्रियशरीरप्रयोग बंध किस कस्स कम्मस्स उदएणं?
कर्म के उदय से होता है? गोयमा! वीरिय-सजोग-सहव्वयाए गौतम! वीर्य-सयोग-सव्व्यतया यावत् । गौतम ! रत्नपप्रभा पृथ्वी नैरयिक पंचेन्द्रिय जाव आउयं वा पडुच्च रयणप्पभा- आयुष्कं वा प्रतीत्य रत्नप्रभापृथिवीनैरयिक- वैक्रिय शरीर प्रयोग बंध के तीन हेतु हैंपुढविनेरइयपंचिंदिय · वेउब्वियसरीर- पञ्चेन्द्रियवैक्रियशरीरप्रयोगबन्धः, एवं वीर्य सयोग सद्रव्यता यावत् आयुष्य प्पयोगबंधे, एवं जाव अहेसत्तमाए।। यावत् अधःसप्तम्याः।
सापेक्ष वैक्रिय शरीर प्रयोग नाम कर्म। इसी प्रकार यावत् अधःसप्तमी की वक्तव्यता।
३९१. तिरिक्खजोणियपंचिंदियवेउब्विय- तिर्यगयोनिकपञ्चेन्द्रियवैक्रियशरीरपृच्छा। ३९१. तिर्यक्योनिक पंचेन्द्रिय वैक्रिय शरीर सरीरपुच्छा ।
प्रयोग बंध की पृच्छा। गोयमा! वीरिय-सजोग-सद्दव्वयाए गौतम! वीर्य-सयोग-सद्व्यतया यथा- गौतम! तिर्यकयोनिक पंचेन्द्रिय वैक्रिय जहा वाउक्काइयाण। मणुस्सपंचिंदिय- वायुकायिकानाम्। मनुष्यपञ्चेन्द्रि-वैक्रिय।। शरीर प्रयोग बंध वीर्य सयोग सद्व्यता
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