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भगवई
श.८ : उ.९ : सू. ३६८.३७२ पुढविक्काइय . एगिदियओरालिय- पृथिवीकायिक-एकेन्द्रिय-औदारिकशरीरसरीरप्पयोगबंधे, एवं एएणं अभि-लावेणं प्रयोग-बन्धः, एवम् एतेन अभिलापेन भेदः भेदो जहा ओगाहणसंठाणे ओरालिय- यथा अवगाहनासंस्थाने औदारिकशरीरस्य सरीरस्स तहा भाणियव्वो जाव पज्जत्ता तथा भणितव्यः यावत् पर्याप्तकगर्भावगन्भवक्कंतियमणुस्सपंचिंदियओरालिय- क्रान्तिक- मनुष्यपंचेन्द्रिय-औदारिकशरीरसरीरप्पयोगबंधे य, अप्पज्जत्तागब्भ- प्रयोगबन्ध-श्च, अपर्याप्तकगर्भावक्रान्तिकवक्कंतिय-मणुस्सपंचिंदियओरालिय- मनुष्य-पञ्चेन्द्रिय-औदारिकशरीरप्रयोगसरीरप्प-योगबंधे य॥
बन्धश्च।
बंध पांच प्रकार का प्रज्ञप्त है, जैसे-पृथ्वीकायिकएकेन्द्रिय औदारिक शरीरप्रयोग बंध--इस प्रकार इस अभिलाप के अनुसार एकेन्द्रिय औदारिकशरीरप्रयोगबंध के भेद प्रज्ञापना के अवगाहना संस्थान (नामक पद २१/३२०) में वर्णित औदारिकशरीर की भांति वक्तव्य हैं यावत् पर्याप्तक गर्भावक्रांतिकमनुष्यपंचेन्द्रियऔदारिकशरीरप्रयोग बंध, अपर्याप्तक गभावक्रांतिक मनुष्यपंचेन्द्रिय औदारिकशरीरप्रयोग बंध।
३६९. ओरालियसरीरप्पयोगबंधे णं भंते! औदारिकशरीरप्रयोगबन्धः भदन्त ! कस्य कस्स कम्मस्स उदएणं?
कर्मणः उदयेन? गोयमा! वीरिय-सजोग-सहव्वयाए गौतम! वीर्य-सयोग-सव्व्यतया प्रमादपमादपच्चया कम्मं च जोगं च भवं च प्रत्ययात् कर्म च योगं च भवं च आयुष्कं च आउयं च पडुच्च ओरालिय- प्रतीत्य औदारिकशरीरप्रयोगनामकर्मण: सरीरप्पयोगनाम-कम्मस्स उदएणं उदयेन औदारिकशरीरप्रयोगबन्धः । ओरालियसरीर-प्पयोगबंधे।।
३६९. भंते ! औदारिकशरीरप्रयोग बंध किस कर्म के उदय से होता है? गौतम ! औदारिकशरीरप्रयोग बंध के तीन हेतु हैं१. वीर्यसयोगसव्व्यतावीर्ययोग तथा तथाविध पुगल सामग्री। २. प्रमाद-प्रमादहेतुक। ३. कर्म-(एकेन्द्रिय जाति आदि का उदयवर्ती कर्म), योग, (काय आदि योग) भव (तिर्यंच आदि का अनुभूयमान जन्म) और आयुष्य (उदयवर्ती आयुष्य) सापेक्ष औदारिक शरीरप्रयोग नाम कर्म का उदय।
३७० एगिदियओरालियसरीरप्प-योगबंधे एके न्द्रिय औदारिक शरीरप्रयोगबन्धः ३७०.भंते! एकन्द्रिय औदारिकशरीरप्रयोग कस्स कम्मरस उदएणं? भन्ते! कस्य कर्मणः उदयेन ?
बंध किस कर्म के उदय से होता है? एवं चेव। पुढविक्काइयएगिदिय- एवं चैव। पृथिवीकायिक-एकेन्द्रिय- औदारिकशरीरप्रयोगबंध की भांति ओरालियसरीरप्पयोगबंधे एवं चेव, एवं औदारिक-शरीरप्रयोगबन्धः एवं चैव, एवं वक्तव्यता। इसी प्रकार पृथ्वीकायिक जाव वण-स्सइकाइया। एवं बेइंदिया, यावत वन-स्पतिकायिकाः। एवं द्वीन्द्रियाः, एकेन्द्रियऔदारिकशरीरप्रयोगबंध की एवं तेइंदिया, एवं चउरिदिया। एवं त्रीन्द्रियाः, एवं चतुरिन्द्रियाः।
वक्तव्यता यावत् वनस्पतिकायिक एकेन्द्रियऔदारिकशरीरप्रयोगबंध की वक्तव्यता। इसी प्रकार द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय
और चतुरिन्द्रिय औदारिकशरीरप्रयोगबंध की वक्तव्यता।
३७१. तिरिक्खजोणियपंचिंदियओरालिय- तिर्यग्योनिकपञ्चेन्द्रिय-औदारिकशरीर- ३७१. भंते ! तिर्यंचयोनिकपंचेन्द्रिय औदारिक
सरीरप्पयोगबंधे णं भंते! कस्स प्रयोगबन्धः भदन्त ! कस्य कर्मणः उदयेन? शरीरप्रयोगबंध किस कर्म के उदय से कम्मस्स उदएण? एवं चैव।
होता है? एवं चेव॥
औदारिकशरीरप्रयोगबंध की भांति वक्तव्यता।
३७२. मणुस्सपंचिंदियओरालियसरीर- मनुष्यपचेन्द्रिय-औदारिकशरीरप्रयोगबन्धः प्पयोगबंधे णं भंते! कस्स कम्मस भदन्त! कस्य कर्मणः उदयेन?
३७२. भंते! मनुष्य पंचेन्द्रिय औदारिक शरीरप्रयोगबंध किस कर्म के उदय से
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