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________________ श. ८ : उ. ९ : सू. ३५८-३६२ १४० ३५८. से किं तं उच्चयबंधे? उच्चय- अथ किं तत् उच्चयबन्धः? बंधे-जण्णं तणरासीण वा, कट्टरा-सीण उच्चयबन्धः-यत् तृणराशीनां वा, काष्ठवा, पत्तरासीण वा, तुसरा-सीण वा, राशीनां वा, पत्रराशीनां वा, तुषराशीनां वा, भुसरासीण वा गोमय-रासीण वा, अव- बुशराशीनां वा, गोमयराशीनां वा, अवकरगररासीण वा, उच्चत्तेणं बंधे राशीनां वा, उच्चत्वेन बन्धः समुत्पद्यते, समुप्पज्जइ, जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, जघन्येन अन्तर्मुहूर्तम, उत्कर्षेण संख्येयं उक्कोसेणं संखेज्जं कालं। सेत्तं कालम्। सः एषः उच्चयबन्धः। उच्चयबंधे। भगवई ३५८. वह उच्चय बंध क्या है? उच्चयबंध-तृण, काठ, पत्र, तुष, भूषा, गोबर और कचरे की राशि (ढेर या पुंज) की जाती है, वह ऊंचाई के कारण उच्चय बंध कहलाता है। इसका कालमान जघन्यतः अन्तर्मुहूर्त्त उत्कृष्टतः संख्येय काल है। यह है उच्चय बंधा ३५९. से किं तं समुच्चयबंधे? अथ किं तत् समुच्चयबन्धः? समुच्चयबंधे-जण्णं अगड-तडाग-नदी. समुच्चयबन्धः-यत् अगड-तडाग-नदी- दहवावी - पुक्खरिणी - दीहियाणं द्रह-वापी-पुष्करिणी-दीर्घिकानां गुंजालि- गुंजालियाणं, सराणं,सरपंति-याणं, कानां, सरसो, सर:पंक्तीनां, सरस्सरःसरसरपंति-याणं, बिलपंति-याणं पंक्तीनां, बिलपंक्तीनां देवकुल-सभा-प्रपादेवकुल-सभ-प्पव-थूभ-खाइ-याणं, स्तूप-खातिकानां परिखाना, प्राकाराफरिहाणं, पागार-ट्टालग-चरिय - दार · डालक - चरिका - द्वार - गोपुर - तोरणानां, गोपुर • तोरणाणं, पासाय-घर-सरण- प्रासाद - गृह - शरण - लयन - आपणानां, लेण-आवणाणं, सिंघाडग-तिय- शृंगाटक - त्रिक - चतुष्क-चत्वर-चतुर्मुखचउक्क-चच्चर • चउम्मुह - महापह- महापथ-पथादीनां, सुधा-चिक्खल्लपहमादीणं, छुहा-चिक्खल्ल-सिला- शिलासमुच्चयेन बन्धः समुत्पद्यते, समुच्चएणं बंधे समुप्पज्जइ, जहण्णेणं जघन्येन अन्तर्मुहूर्त्तम्, उत्कर्षेण संख्येयं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं संखेज्जं कालं। कालम्। सः एष : समुच्चयबन्धः। सेत्तं समुच्चयबंधे। ३५९. वह समुच्चय बंध क्या है? समुच्चय बंध-कूप, तालाब, नदी, द्रह बावड़ी, पुष्करणी, दीर्घिका, गुंजालिका, सर, सरपंक्ति, सर सर की पंक्ति, बिल की पंक्ति, देवकुल, सभा, प्रपा, स्तूप, खाई, परिघा, प्राकार, अट्टालक (बुर्ज), चरिका, द्वार, गोपुर, तोरण, प्रासाद, घर, कुटीर, पर्वतगृह, दुकान, दुराहा, तिराहा, चौक, चौराहा, चारों ओर दरवाजे वाला देवल, महापथ और पथ आदि का चूना, चिकनी मिट्टी और शिला के समुच्चय से जो बंध किया जाता है, वह समुच्चय बंध है। इसका कालमान जधन्यतः अंतर्मुहूर्त, उत्कृष्टतः संख्येय काल है। यह है समुच्चय बंध। ३६०. से किं तं साहणणाबंधे? साहणणाबंधे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-देससाहणणाबंधे य, सव्व- साहणणाबंधे य॥ अथ किं तत् संहननबन्धः? संहननबन्धः द्विविधः प्रज्ञप्तः, तद्यथादेशसंहननबन्धश्च, सर्वसंहननबन्धश्च। ३६०. वह संहनन बंध क्या है? संहनन बंध दो प्रकार का प्रज्ञप्त है, जैसेदेश संहनन बंध, सर्व संहनन बंध। ३६१. से किं तं देससाहणणाबंधे ? अथ किं तत् देशसंहननबन्धः ? देससाहणणाबंधे-जण्णं सगड-रह- देशसंहननबंधः-यत शकट-रथ-यान-युग्म- जाण-जुग्ग-गिल्लि-थिल्लि-सीय- संद- गिल्लि-थिल्लि-शिविका-स्यन्दमानिकमाणी - लोही - लोह-कडाह-कडच्छ्य • लौही-लोहकटाह-कडच्छ्य -आसन-शयनआसण-सयण खंभ-भंडमत्तोवगरण- स्तम्भ-भाण्डमात्रोपकरणादीनां देशसंहननमादीणं देस-साहणणाबंधे समुप्पज्जइ, बन्धः समुत्पद्यते, जघन्येन अन्तमुहूर्तम्, जहणणेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं उत्कर्षेण संख्येयं कालम् । संखेनं कालं। सेत्तं देससाहणणाबंधे। सः एषः अल्लियावणबन्धः । ३६१. वह देश संहनन बंध क्या है ? देश संहनन बंध-शकट, रथ, यान, युग्य गिल्लि, थिल्लि, शिबिका, स्यंदमानिका, तवा, लोह-कटाह, करछी, आसन, शयन, स्तंभ, भांड, पात्र, उपकरण आदि का देश संहनन बंध होता है। इसका कालमान जघन्यतः अंतर्मुहूर्त, उत्कृष्टतः संख्येय काल है। यह है देश संहनन बंध। ३६२. से किं तं सव्वसाहणणाबंधे? अथ किं तत् सर्वसंहननबन्धः ? सव्वसाहणणाबंधे-से णं खीरोदग- सर्वसंहननबन्धः-सः क्षीरोदकादीनाम्। स माईणं। सेत्तं सव्वसाहणणाबंधे। सेत्तं एषः सर्वसंहननबन्धः। स एषः संहननसाहणणाबंधे। सेत्तं अल्लिया-वणबंधे॥ बन्धः। सः एषः अल्लियावणबन्धः। ३६२. वह सर्व संहनन बंध क्या है? सर्व संहनन बंध-क्षीर का उदक आदि से संबंध सर्व संहनन बंध है। यह है सर्व संहनन बंध। यह है संहनन बंध। यह है आलीनकरण बंध। www.jainelibrary.org For Private & Personal Use Only Jain Education International
SR No.003595
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages600
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size15 MB
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