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________________ नहीं dow कर Fone ke ntosh गुणांश नहीं नहीं नहीं नहीं भगवई श.८: उ.९: सू. ३५३ बंध के संबंध में सभी परम्पराएं सदृश नहीं हैं। द्रष्टव्य-यंत्र तत्त्वार्थभाष्यानुसारिणी टीका ५/३५ के अनुसार क्रमांक गुणांश सदृश विसदृश जधन्य+जघन्य जघन्य+ऐकाधिक नहीं जघन्य+व्याधिक जघन्य+त्र्यादिअधिक जघन्येतर+समजघन्येतर जघन्येतर+एकाधिकजघन्येतर जघन्येतर+व्यधिकजघन्येतर जघन्येतर+अधिकजघन्येतर दिगम्बर-ग्रंथ सर्वार्थसिद्धि के अनुसार क्रमांक सदृश विसदृश जघन्य+जघन्य नहीं नहीं जघन्य+एकाधिक जघन्य+व्याधिक जघन्य+त्र्यादिअधिक नहीं जघन्येतर+समजघन्येतर नहीं नहीं जघन्येतर+एकाधिकजघन्येतर जघन्येतर+व्यधिकजघन्येतर जघन्येतर+त्र्यादि अधिकजघन्येतर नहीं दिगम्बर-ग्रंथ षड्खण्डागम के अनुसार क्रमांक गुर्णाश सदृश विसदृश जधन्य+जघन्य नहीं नहीं जघन्य+ऐकाधिक जघन्येतर+समजघन्येतर जघन्येतर+एकाधिकजघन्येतर जघन्येतर+व्यधिकजघन्येतर जघन्येतर+त्र्यादि अधिकजघन्येतर तत्त्वार्थसूत्र के अनुसार क्रमांक गुणांश सदृश विसदृश जघन्य+जघन्य नहीं नहीं जघन्य+एकादिअधिक जघन्येतर+समजघन्येतर नहीं जघन्येतर+ एकाधिकजघन्येतर नहीं जघन्येतर+व्यधिकजघन्येतर जघन्येतर+व्यादि अधिकजघन्येतर नहीं नहीं भाजन प्रत्ययिक बंध परिणाम प्रत्ययिक भाजन में रखी हुई वस्तु का स्वरूप दीर्घकाल में बदल जाता है, परमाणु स्कंधों का बादल आदि अनेक रूपों में परिणमन होता वह भाजन प्रत्ययिक बंध है। जैसे पुरानी मदिरा अपने तरल रूप को है, वह परिणाम प्रत्ययिक बंध है। छोड़कर गाढ़ी बन जाती है, जीर्ण गुड़ और जीर्ण तंदुल पिण्डीभूत हो द्रष्टव्य ८/१ का भाष्य। FFFFFFFFF .... नहीं नहीं नहीं stointent नहीं नहीं नहीं कर नहीं नहीं जाते हैं। १. भ. वृ. ८/३५२-तत्र जीर्ण सुरायाः स्त्यानीभवनलक्षणो बंध: जीर्णगुडस्य, जीर्ण तंदुलानां च पिण्डीभवनलक्षणः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003595
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages600
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size15 MB
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