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________________ श.८ : उ.९ : सू. ३५३ भगवई का परस्पर स्वभाविक संबंध है। वह अनादिकालीन है। इसका हेतु परमाणुओं का परस्पर बंध होता है। प्रज्ञापना में विसदृश और सदृश यह है-ये तीनों अस्तिकाय व्यापक हैं। प्रत्येक अस्तिकाय के प्रदेश दोनों प्रकार के बंधनों का निर्देश है। प्रस्तुत आगम में विसदृश बंध व्यवस्थित हैं। उनका संकोच विस्तार नहीं होता। वे अपने स्थान को कभी का विवरण नहीं है। नहीं छोड़ते। सदृश बंध का नियम-प्रज्ञापना के अनुसार स्निग्ध परमाणुओं बंध दो प्रकार का होता है-देश बंध और सर्व बंध। सांकल की। का स्निग्ध परमाणुओं के साथ, रूक्ष परमाणुओं का रूक्ष परमाणुओं के कड़ियों का देश बंध होता है। एक कड़ी दूसरी कड़ी से जुड़ी रहती है साथ संबंध दो अथवा उनसे अधिक गुणों का अंतर मिलने पर होता किन्तु अंतर्भूत नहीं होती। क्षीर और नीर का संबंध सर्व बंध है। है। उनका समान गुण वाले अथवा एक गुण अधिक वाले परमाणु के धर्मास्तिकाय के प्रदेशों में परस्पर संस्पर्शात्मक संबंध है। साथ संबंध नहीं होता। अधर्मास्तिकाय और आकाशास्तिकाय के प्रदेशों का भी यही नियम स्निग्ध के साथ स्निग्ध के बंध का नियम-स्निग्ध का दो गुण है। यदि इनके प्रदेशों का सर्व बंध हो तो एक प्रदेश में दूसरे प्रदेशों का अधिक स्निग्ध के साथ बंध होता है। अंतर्भाव हो जाएगा। इस स्थिति में प्रदेशों की स्वतंत्र अवस्थिति नहीं रूक्ष के साथ रूक्ष के बंध का नियम-रूक्ष का दो गुण अधिक रह सकती।' यह संबंध अनादि अनंत है। रूक्ष के साथ बंध होता है। सादि स्वाभाविक बंध के तीन प्रकार बतलाए गए हैं-- उत्तराध्ययन चूर्णि में इसे उदाहरण के द्वारा स्पष्ट किया गया १.बंधन प्रत्ययिक है-एक गुण स्निग्ध का तीन गुण स्निग्ध के साथ बंध होता है। तीन २. भाजन प्रत्ययिक गुण स्निग्ध का पांच गुण स्निग्ध के साथ बंध होता है। पांच गुण ३. परिणाम प्रत्ययिक स्निग्ध का सात गुण स्निग्ध के साथ बंध होता है। इस सदृश बंध में बंधन प्रत्ययिक जघन्य वर्जन का नियम लागू नहीं है। रूक्ष के सदृश बंध का भी यही यह स्कंध निर्माण का सिद्धांत है। दो परमाणु मिलकर नियम है। द्विप्रदेशी स्कंध का निर्माण करते हैं। इसी प्रकार तीन परमाणु विसदृश बंध के नियम-स्निग्ध के साथ रूक्ष के बंध का मिलकर तीन प्रदेशी, चार परमाणु मिलकर चार प्रदेशी यावत् अनंत नियम-जघन्य गुण का बंध नहीं होता-एक गुण स्निग्ध का एक गुण परमाणु मिलकर अनंत प्रदेशी स्कंध का निर्माण करते हैं। इस बंधन रूक्ष के साथ बंध नहीं होता। द्विगुण स्निग्ध का द्विगुण रूक्ष के साथ के तीन हेतु बतलाए गए हैं संबंध हो सकता है। यह सम गुण का बंध है। द्विगुण स्निग्ध का १. विमात्र स्निग्धता त्रिगुण, चतुर्गुण रूक्ष आदि के साथ संबंध होता है। यह विषम गुण का २. विमात्र रूक्षता बंध है।' विसदृश संबंध में सम का संबंध और विषम का संबंध-ये ३. विमात्र स्निग्ध रूक्षता दोनों नियम मान्य है। समगुण स्निग्ध का समगुण स्निग्ध परमाणु के साथ बंध नहीं षड्खण्डागम में प्रयोग बंध और विरसा बंध का वर्णन होता। समगुण रूक्ष परमाणु का समगुण रूक्ष परमाणु के साथ बंध व्यवस्थित रूप में मिलता है। नहीं होता। स्निग्धता और रूक्षता की मात्रा विषम होती है, तब प्रज्ञापना पद (१३), उत्तराध्ययन चूर्णि पृ. १७ और भगवती जोड़ खण्ड-२ ढाल १५४ के अनुसार स्वीकृत यंत्रक्रमांक गुणांश सदृश विसदृश जघन्य+एकाधिक नहीं नहीं जघन्य+जघन्य जघन्य+व्याधिक जघन्य+त्र्यादिअधिक जघन्येतर+समजघन्येतर जघन्येतर+एकाधिकतर जघन्येतर+व्यधिकतर जघन्येतर+त्र्यादि अधिकतर १. भ. वृ. ८/३८४-देशबंधेत्ति देशतो देशापेक्षया बंधो देशबंधो यथा ३. पण्ण. १३/२१/२२। संकलिकाकटिकानां सव्वबंधेत्ति सर्वतः सर्वात्मना बंध सर्वबंधो यथा क्षीर- ४. उत्तरा, चू. पृ. १७-एक गुण णिद्धो तिगुणणिद्रेणं बज्झति, तिगुणणिद्धो पंच नीरयोः देशबंधे नो सव्वबंधेत्ति धर्मास्तिकायस्य प्रदेशानां परस्पर संस्पर्शन गुणनिदेन पंचगुणो सप्तगुणणि ण एवं दुयाहिएण बंधो भवति, नहा दुगुण व्यवस्थितत्वादेशबंध एव न पुनः सर्वबंधः तत्र हि एकस्य प्रदेशस्य गिद्धो चउगुणणिद्रेण चउगुणणिद्धो छगुणणिद्रेण, छगुणणिन्द्रो अगुणप्रदेशान्तरः सर्वथा बंधे अन्योन्यान्तभविनैक प्रदेशत्वमेव स्यात् णिन्द्रेण, एवं णेयं लुक्खेवि एवं चेव। नासंख्येयप्रदेशत्वमिति। ५. पण्ण. १३/२१-२२ तथा प्रज्ञा. व. प. २८८। २.वही.८/३५१। ६. ष. खं. पु. १४, खं.५, भा. ४-५.६.२६-३७। नहीं TFree] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003595
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages600
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size15 MB
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