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नवमो उद्देशक : नौवां उद्देशक
मूल
संस्कृत छाया
हिन्दी अनुवाद
बंध-पदं ३४५. कतिविहे णं भंते! बंधे पण्णत्ते!
बन्ध-पदम् कतिविधः भदन्त ! बन्धः प्रज्ञप्तः ?
बंध-पद ३४५. भंते! बंध कितने प्रकार का प्रज्ञप्त
गोयमा! दुविहे बंधे पण्णत्ते, तं जहा-पयोगबंधे य, वीससाबंधे य॥
गौतम ! द्विविधः बन्धः प्रज्ञप्सः, तद्यथाप्रयोगबन्धश्च, विस्रसाबन्धश्च।
गौतम! दो प्रकार का प्रज्ञप्त है, जैसे-प्रयोग बंध, विरसा बंध।
वीससाबंध-पदं
विस्रसाबंध-पदम् ३४६. वीससाबंधे णं भंते! कतिविहे विस्रसाबन्धः भदन्त ! कतिविधः प्रज्ञप्तः ? पण्णते? गोयमा! दुविहे पण्णत्ते, तं जहा- गौतम ! द्विविधः प्रज्ञप्तः, तद्यथा-सादिकसादीयवीससाबंधे य, अणादीय. विस्रसाबन्धश्च, अनादिकविस्रसाबन्धश्च। वीससाबंधे य॥
विस्रसा बंध-पद ३४६. भंते! विरसा बंध कितने प्रकार का प्रज्ञाप्त है? गौतम! दो प्रकार का प्रज्ञप्त है जैसेसादिक विस्रसा बंध, अनादिक विस्रसा बंध।
३४७. अणादियवीससाबंधे णं भंते! कतिविहे पण्णत्ते? गोयमा! तिविहे पण्णत्ते, तं जहाधम्मत्थिकायअण्णमण्णअणादीयवीससाबंधे, अधम्मत्थिकायअण्णमण्णअणादीयवीससाबंधे,आगासत्थिकायअण्णमण्णअणादीयवीससाबंधे॥
अनादिकविस्रसाबन्धः भदन्त ! कतिविधः ३४७. भंते! अनादिक विस्रसा बंध कितने प्रज्ञप्तः?
प्रकार का प्रज्ञप्त है ? गौतम! त्रिविधः प्रज्ञप्तः, तद्यथा- गौतम! तीन प्रकार का प्रज्ञप्त है, जैसेधर्मास्तिकाय-अन्योन्य-अनादिकविससा- धर्मास्तिकाय-अन्योन्य-अनादिकविससा बन्धः, अधर्मास्तिकाय-अन्योन्यअनादिक बंध, अधर्मास्तिकाय-अन्योन्य-अनादिक विस्रसा-बन्धः,आकाशास्तिकायअन्योन्य- विस्रसा बंध, आकाशास्तिकाय अन्योन्यविस्रसाबन्धः।
अनादिक विस्रसा बंध।
३४८. धम्मत्थिकायअण्णमण्णअणा- धर्मास्तिकाय-अन्योन्य-अनादिकविस्रसा- ३४८. भंते! धर्मास्तिकाय अन्योन्य दीयवीससाबंधे णं भंते ! किं देस-बंधे? बन्धः भदन्त ! किं देशबन्धः? सर्वबन्धः? अनादिक विस्रसा बंध क्या देश बंध है? सव्वबंधे?
सर्व बंध है? गोयमा! देसबंधे, नो सव्वबंधे। एवं गौतम! देशबन्धः, नो सर्वबन्धः। एवम् गौतम ! देश बंध है, सर्व बंध नहीं है। इसी अधम्मत्थिकायअण्णमण्णअणादीय- धर्मास्तिकाय-अन्योन्य-अनादिकविससा- प्रकार अधर्मास्तिकाय अन्योन्य अनादिक वीससाबंधे वि, एवं आगासत्थि- बन्धोऽपि, एवम् आकाशास्तिकाय- विस्रसा बंध की वक्तव्यता। इसी प्रकार कायअण्णमण्णअणादीयवीससाबंचे अन्योन्य-अनादिकविस्रसाबन्धोऽपि। आकाशास्तिकाय अन्योन्य अनादिक वि॥
विस्रसा बंध की वक्तव्यता।
३४९. धम्मत्थिकायअण्णमण्णअणा- धर्मास्तिकाय-अन्योन्य-अनादिकविस्रसा- ३४९. भंते! धर्मास्तिकाय-अन्योन्यदीयवीससाबंधे णं भंते! कालओ बन्धः भदन्त ! कालतः कियच्चिरं भवति? अनादिक विस्रसा बंध काल की अपेक्षा केवच्चिरं होइ?
कितने काल तक रहता है ? गोयमा! सव्वद्धं। एवं अधम्मत्थि- गौतम ! सर्वाद्धम्। एवम् अधर्मास्तिकाय- गौतम! सर्व काल तक। इसी प्रकार
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