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भगवई
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श. ८ : उ.८ : सू. ३३९-३४४
जोयणस्स तिरियं तवंति॥
योजनस्य तिर्यग तपतः।
इक्कीस/साठ (४७२६३ २१/६०) योजन क्षेत्र में तपते हैं।
जोइसियाणं उववत्ति-पदं
ज्योतिष्काणाम् उपपत्ति-पदम् ३४०. अंतो णं भंते! माणुसुत्तर- अन्तः भदन्त! मानुषोत्तरपर्वतस्य ये पव्वयस्स जे चंदिम-सूरिय-गह- चन्द्रमस्सूर्य ग्रहगण-नक्षत्र-तारारूपाः ते गणणक्खत्ततारारुवा ते णं भंते! देवा. भदन्त ! देवाः किम् उर्वोपपन्नकाः? किं उड्ढोववन्नगा?
यथा जीवाभिगमे तथैव निरवशेषं यावत्जहा जीवाभिगमे तहेव निरवसेसं जाव
ज्योतिष्कों का उपपत्ति-पद ३४०. भंते ! मानुषोत्तर पर्वत के अंतर्वर्ती जो
चंद्र, सूर्य, ग्रहगण, नक्षत्र और तारा रूप हैं, भंते ! वे देव क्या ऊर्ध्व उपपन्नक हैं? जीवाभिगम की भांति निरवशेष रूप में वक्तव्य है यावत्
३४१. इंदट्ठाणे णं भंते! केवतियं कालं विरहिए उववाएणं? गोयमा! जहण्णेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं छम्मासा॥
इन्द्रस्थानं भदन्त ! कियन्तं कालं विरहितम् उपपातेन? गौतम! जघन्येन एकं समयम्, उत्कर्षण षण्मासान्।
३४१. भंते! इन्द्रस्थान उपपात से कितने काल तक विरहित रहता है ? गौतम! जघन्यतः एक समय, उत्कृष्टतः छह मास।
३४२. बहिया णं भंते! माणुसुत्तर- पव्वयस्स जे चंदिय-सूरिय-गह-गण- णक्खत्त-तारारूवा ते णं भंते! देवा किं उड्ढोववन्नगा? जहा जीवाभिगमे जाव
बहिः भदन्त! मानुषोत्तरपर्वतस्य ये चन्द्रमस्सूर्य-ग्रहगण-नक्षत्र-तारारूपाः ते भदन्त ! देवाः किम उोपपन्नकाः?
३४२. भंते! मानुषोत्तर पर्वत के बाह्यवर्ती
चंद्र, सूर्य, ग्रहगण, नक्षत्र और तारा रूप हैं। भंते ! वे क्या ऊर्ध्व उपपन्नक हैं ?
यथा जीवाभिगमे यावत्
जीवाभिगम की भांति वक्तव्यता यावत्
३४३. इंदट्ठाणे णं भंते! केवतियं कालं । इन्द्रस्थानं भदन्त! कियन्तं कालम् उववाएणं विरहिए पण्णत्ते?
उपपातेन विरहितं प्रज्ञप्तम् ? गोयमा! जहण्णेणं एक्कं समयं, गौतम! जघन्येन एकं समयम् उत्कर्षण उक्कोसेणं छम्मासा॥
षण्मासान्।
३४३. भंते! इन्द्रस्थान उपपात से कितने काल तक विरहित प्रज्ञप्त है? गौतम! जघन्यतः एक समय, उत्कृष्टतः छह मासा
३४४. सेवं भंते! सेवं भंते! ति॥
तदेवं भदन्त ! तदेवं भदन्त ! इति !
३४४. भंते ! वह ऐसा ही है। भंते ! वह ऐसा
ही है।
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