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________________ श.८ : उ. ८ : सू. ३३३-३३९ पड़प्पन्न खेत्तं ओभासंति, नो अणागयं खेत्तं ओभासंति॥ प्रत्युत्पन्न क्षेत्रम् अवभासयतः, नो अनागतं क्षेत्रम् अवभासयतः। भगवई को अवभासित नहीं करते, वर्तमान क्षेत्र को अवभासित करते हैं, अनागत क्षेत्र को अवभासित नहीं करते। ३३४. तं भंते! किं पुढे ओभासंति ? अपुटुं ओभासंति? तत् भदन्त ! किं स्पृष्टम् अवभासयन्ति अस्पृष्टम् अवभासयन्ति? गोयमा! पुढे ओभासंति, नो अपुढे ओभासंति जाव नियमा छद्दिसिं।। गौतम ! स्पृष्टम् अवभासयन्ति, नो अस्पृष्टम् अवभासयन्ति यावत् नियमात् षइदिशम्। ३३४. भंते! क्या सूर्य स्पृष्ट क्षेत्र को अवभासित करते हैं ? अथवा अस्पृष्ट क्षेत्र को अवभासित करते हैं? गौतम! सूर्य स्पृष्ट क्षेत्र को अवभासित करते हैं, अस्पृष्ट क्षेत्र को अवभासित नहीं करते यावत् नियमतः छहों दिशाओं को अवभासित करते हैं। ३३५. जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे सूरिया किं तीयं खेत्तं उज्जोवेंति? एवं चेव जाव नियमा छद्दिसिं॥ जम्बूद्वीपे भदन्त! द्वीपे सूर्यों किम् अतीतं क्षेत्रम् उद्योतयतः? एवं चैव यावत् नियमात् षड्दिशम्। ३३५. भंते! क्या जंबद्वीप द्वीप में सूर्य अतीत क्षेत्र को उद्योतित करते हैं ? गौतम! इसी प्रकार यावत् नियमतः छहों दिशाओं को उद्योतित करते हैं। ३३६. एवं तवेंति, एवं भासंति जाव नियमा छद्दिसिं॥ एवं तपयतः एवं भासयतः यावत् नियमात् षदिशम्। ३३६. इसी प्रकार तप्त और प्रभासित की वक्तव्यता यावत् नियमतः छहों दिशाओं को तप्त और प्रभासित करते हैं। ३३७. जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे सूरियाणं किं जम्बूद्वीपे भदन्त! द्वीपे सूर्याभ्यां किम् तीए खेत्ते किरिया कज्जइ? पडुप्पन्ने अतीते क्षेत्रे क्रिया क्रियते ? प्रत्युत्पन्ने क्षेत्रे खेते किरिया कज्जइ? अणागए खेत्ते क्रिया क्रियते? अनागते क्षेत्रे क्रिया क्रियते? किरिया कज्जइ? गोयमा! नो तीए खेत्ते किरिया कज्जइ, गौतम! नो अतीते क्षेत्रे क्रिया क्रियते, पड़प्पन्ने खेत्ते किरिया कज्जइ, नो प्रत्युत्पन्ने क्षेत्रे क्रिया क्रियते ? नो अनागते अणागए खेत्ते किरिया कज्जइ॥ क्षेत्रे क्रिया क्रियते। ३३७. भंते! क्या जंबूद्वीप द्वीप में सूर्य अतीत क्षेत्र में क्रिया करते हैं ? वर्तमान क्षेत्र में क्रिया करते हैं? अनागत क्षेत्र में क्रिया करते हैं? गौतम ! जंबूद्वीप द्वीप में सूर्य अतीत क्षेत्र में क्रिया नहीं करते, वर्तमान क्षेत्र में क्रिया करते हैं, अनागत क्षेत्र में क्रिया नहीं करते। ३३८. सा भंते! किं पुट्ठा कज्जइ? अपुट्ठा कज्जइ? गोयमा ! पुट्ठा कज्जइ, नो अपुट्ठा कज्जइ जाव नियमा छद्दिसिं॥ सा भदन्त ! किं स्पृष्टा क्रियते? अस्पृष्टा क्रियते? गौतम! स्पृष्टा क्रियते, नो अस्पृष्टा क्रियते यावत् नियमात् षड्दिशम्। ३३८. भंते! क्या वह क्रिया स्पृष्ट होती है ? अस्पृष्ट होती है? गौतम! वह क्रिया स्पृष्ट होती है, अस्पृष्ट नहीं होती यावत् नियमतः छहों दिशाओं में स्पृष्ट होती है। ३३९. भंते ! जंबूद्वीप द्वीप में सूर्य कितने ऊर्ध्व क्षेत्र में तपते हैं? कितने अधो क्षेत्र में तपते हैं? कितने तिर्यक् क्षेत्र में तपते ३३९. जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे सूरिया जम्बूद्वीपे भदन्त ! द्वीपे सूर्यौ कियन्तं क्षेत्रम् केवतियं खेत्तं उहुं तवंति ? केवतियं उर्ध्वं तपतः ? कियन्तं क्षेत्रम् अधः तपतः? खेत्तं अहे तवंति? केवतियं खेत्तं तिरियं कियन्तं क्षेत्रं तिर्यग तपतः? तवंति? गोयमा! एगं जोयणसयं उर्दु तवंति. गौतम! एकं योजनशतम् उर्ध्वं तपतः, अट्ठारस जोयणसयाई अहे तवंति, अष्टादश योजनशतानि अधः तपतः, सीयालीसं जोयणसहस्साइं दोणि य सप्तचत्वारिंशत् योजनशतानि द्वे च वैशष्टे तेवढे जोयणसए एक्कवीसं च सद्विभाए योजनशते एकविंशति च षष्टिभागान गौतम! जंबूद्वीप द्वीप में सूर्य ऊर्ध्व क्षेत्र में एक सौ योजन में तपते है, अधो क्षेत्र में अठारह सौ योजन में तपते हैं, तिर्यक् क्षेत्र में सैंतालीस हजार दो सौ तिरसठ योजन www.jainelibrary.org For Private & Personal Use Only Jain Education International
SR No.003595
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages600
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size15 MB
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